केरल सरकार ने पुलिस अधिनियम को और प्रभावी बनाने के लिए इसमें धारा 118 ए जोड़ने का फैसला किया था. इसके तहत अगर कोई शख़्स सोशल मीडिया के ज़रिये कोई अपमानजनक सामग्री प्रकाशित करता है तो उसके ख़िलाफ़ 10 हज़ार रुपये का जुर्माना या तीन साल की क़ैद या दोनों का प्रावधान किया गया था.
कोच्चि: केरल सरकार ने सोमवार को संशोधित केरल पुलिस अधिनियम को लागू नहीं करने का फैसला किया, जो किसी भी सोशल मीडिया के दुरुपयोग या आपत्तिजनक साइबर पोस्ट के लिए जेल की सजा का प्रावधान करता है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, माकपा के राज्य सचिवालय की बैठक के बाद मुख्यमंत्री पिनारई विजयन ने कहा कि सरकार संशोधित अधिनियम को लागू नहीं करना चाहती है जो केरल पुलिस अधिनियम में धारा 118 (ए) को शामिल करता है.
विजयन ने सोमवार सुबह कहा, ‘संशोधन की घोषणा के साथ, विभिन्न तबकों से अलग-अलग राय सामने आई है. जो लोग एलडीएफ के साथ-साथ लोकतंत्र की सुरक्षा के लिए खड़े हैं, उन्होंने संशोधन को लेकर चिंता जताई है. इन परिस्थितियों में सरकार संशोधित अधिनियम को लागू नहीं करना चाहती है. राज्य विधानसभा में एक विस्तृत बहस के बाद और सभी पक्षों से राय सुनने के बाद ही आगे की कार्रवाई की जाएगी.’
माकपा के केंद्रीय नेतृत्व के हस्तक्षेप के बाद सरकार ने अपने रुख में यह बदलाव किया है. इसके अलावा अन्य वाम दलों ने भी, खासकर भाकपा ने बेहद सख्त माने जा रहे इस नियम को लेकर काफी नाराजगी जताई थी. माकपा और भाकपा, दोनों के ही सूत्रों ने कहा कि एलडीएफ (लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट) सरकार इस अध्यादेश को निरस्त होने देगी.
सोमवार सुबह ही माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा, ‘अध्यादेश पर पुनर्विचार किया जाएगा.’ उनसे पूछा गया कि क्या पुनर्विचार का मतलब यह है कि अध्यादेश को हल्का किया जाएगा, तो उन्होंने संकेत दिया कि इसका मतलब है कि अध्यादेश को रद्द किया जाएगा.
भाकपा महासचिव डी. राजा ने कहा है कि वह अध्यादेश से असहज हैं और पार्टी ने राज्य नेतृत्व को इस बारे में अपनी राय बता दी है. राजा ने कहा, ‘हमने अपनी राज्य इकाई से अध्यादेश पर पुनर्विचार करने को कहा है. हमने माकपा नेतृत्व से भी बात की है और दोनों की सहमति है कि अध्यादेश को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता है.’
बता दें कि केरल मंत्रिमंडल ने पिछले महीने पुलिस अधिनियम को और प्रभावी बनाने के लिए इसमें धारा 118 ए जोड़ने का फैसला किया था. इसके तहत अगर कोई शख्स सोशल मीडिया के जरिये किसी व्यक्ति की मानहानि या अपमान करने वाली किसी सामग्री का उत्पादन करता है, प्रकाशित करता है या प्रसारित करता है तो उस पर 10 हजार रुपये का जुर्माना या तीन साल की कैद या दोनों हो सकते हैं.
बीते शुक्रवार को केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने इस संबंध में एक अध्यादेश को मंजूरी दे दी थी.
जहां सरकार ने दावा किया था कि संशोधन का उद्देश्य सोशल मीडिया पर व्यक्ति विशेष को निशाना बनाने वालों पर लगाम लगाना है वहीं विपक्ष का कहना है कि यह ‘प्रेस की स्वतंत्रता के खिलाफ’ और ‘संविधान में निहित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार’ का उल्लंघन है.
विधानसभा में विपक्ष के नेता रमेश चेन्नीथाला ने आरोप लगाया था कि यह सरकार की उन लोगों को चुप कराने की कोशिश है जो उसकी आलोचना करते हैं. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के. सुरेंद्रन ने कहा था कि संशोधन सभी राजनीतिक विरोधों को चुप कराने के उद्देश्य से लाया गया है. मुख्यमंत्री विजयन ने ऐसी ‘आशंकाओं’ को ‘निराधार’ बताया था.
हालांकि, केरल पुलिस ने कहा था कि संशोधन के तहत कोई भी आगे की कार्रवाई करने से पहले यह सुनिश्चित करने के लिए कि अध्यादेश का किसी भी तरह से दुरुपयोग न हो कानूनी विशेषज्ञों की सलाह से एक मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) तैयार की जाएगी.
रविवार को विजयन ने दावा किया था कि कानून का इस्तेमाल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता या ‘निष्पक्ष पत्रकारिता’ के खिलाफ नहीं किया जाएगा.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)