पद्मश्री से सम्मानित द शिलॉन्ग टाइम्स की संपादक मुखीम पर एक फेसबुक पोस्ट के लिए मामला दर्ज किया गया था. बीते 18 नवंबर को मुखीम ने इस मामले पर एडिटर्स गिल्ड की चुप्पी का हवाला देते हुए विरोध स्वरूप इस संगठन की सदस्यता से इस्तीफ़ा दे दिया था.
नई दिल्ली: एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने द शिलॉन्ग टाइम्स की संपादक पैट्रिशिया मुखीम पर आपराधिक मामले को लेकर गहरी चिंता जताते हुए कहा है कि यह मामला देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए बड़े खतरे को प्रदर्शित करता है.
मुखीम ने सोशल मीडिया पर आदिवासी और गैर आदिवासी युवकों के बीच झड़प को लेकर जुलाई में एक पोस्ट लिखी थी जिसके बाद उनके खिलाफ शिकायत दर्ज कराई गई थी.
गिल्ड ने एक बयान जारी कर कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रेस की स्वतंत्रता के विरुद्ध कानून के विभिन्न प्रावधानों को किस प्रकार इस्तेमाल किया जा सकता है, मुखीम का मामला इसका उदाहरण पेश करता है.
रविवार को जारी किए गए बयान में गिल्ड ने कहा कि पद्मश्री पुरस्कार प्राप्त शिलॉन्ग टाइम्स की संपादक मुखीम पर उनके द्वारा लिखी गई एक सोशल मीडिया पोस्ट पर दर्ज कराई गई शिकायत के आधार पर आपराधिक मामला चलाना चिंताजनक है.
गिल्ड ने कहा, ‘मुखीम का मामला भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बड़े स्तर पर खतरे को प्रदर्शित करता है, जो कानून के अस्पष्ट ढांचे के तहत संचालित होता है और जिसका अकसर असहमति को दबाने के लिए सरकार और एजेंसियों द्वारा दुरुपयोग किया जाता है.’
The Editors Guild of India has issued a statement on the criminal charges against Patricia Mukhim, editor of Shillong Times pic.twitter.com/ZWKEmIG5Nx
— Editors Guild of India (@IndEditorsGuild) November 22, 2020
गौरतलब है कि इस साल जुलाई में बास्केटबॉल कोर्ट में पांच लड़कों पर हमला हुआ था. हत्यारों का पता नहीं चलने के बाद मुखीम ने लावसोहतुन गांव के ‘दरबार’ (परिषद) पर फेसबुक के माध्यम से हमला बोला था.
‘दरबार’ या ‘दोरबार शोन्ग’ खासी गांवों की प्रशासनिक इकाई है, जो पारंपरिक शासन चलाती है. इस घटना में कथित रूप से दो समूह- आदिवासी एवं गैर-आदिवासी शामिल थे. इस मामले में 11 लोगों को पुलिस ने हिरासत में लिया था और दो लोगों को गिरफ्तार किया गया था.
पैट्रिशिया मुखीम द्वारा लिखी गई फेसबुक पोस्ट के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज कराया गया था. उनके खिलाफ धारा 153ए (धर्म, नस्ल, जन्म स्थान, निवास, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) और आईपीसी के अन्य प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया था.
उसके बाद पैट्रिशिया मुखीम ने मेघालय उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था, जिसने उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर को खारिज करने से इनकार करते हुए कहा था कि जांच एजेंसी को मामले की जांच करने की स्वतंत्रता दी जानी चाहिए.
अदालत ने मुखीम को उनके द्वारा जुलाई में लिखी फेसबुक से सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने का दोषी पाया था.
बता दें कि बीते 18 नवंबर को मुखीम ने इस मामले पर एडिटर्स गिल्ड की चुप्पी का हवाला देते हुए विरोध स्वरूप इस संगठन की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था.
उन्होंने कहा था कि एडिटर्स गिल्ड उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर को मेघालय हाईकोर्ट द्वारा रद्द किए जाने से इनकार और उन्हें फेसबुक पोस्ट के जरिये सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने का दोषी ठहराए जाने पर पूरी तरह चुप है.
मुखीम ने कहा था, ‘एडिटर्स गिल्ड ने उनके मामले पर चुप्पी साधे रखी जबकि गिल्ड के सदस्य न होने के बावजूद अर्णब गोस्वामी की गिरफ्तारी की निंदा करते हुए बयान जारी किया गया.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)