टैक्सी और ट्रांसपोर्टर यूनियन के बाद आंदोलन कर रहे किसानों को बिजली इंजीनियरों ने दिया समर्थन

ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन की ओर से कहा गया है कि कृषि क़ानूनों की वापसी के साथ बिजली (संशोधन) विधेयक-2020 को वापस लेने की भी मांग की गई है. इसके ज़रिये बिजली का निजीकरण करने की योजना है, जिसके बाद बिजली की दरें किसानों की पहुंच से दूर हो जाएंगी.

दिल्ली के सिंघू बॉर्डर पर डटे किसान. (फोटो: पीटीआई)

ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन की ओर से कहा गया है कि कृषि क़ानूनों की वापसी के साथ बिजली (संशोधन) विधेयक-2020 को वापस लेने की भी मांग की गई है. इसके ज़रिये बिजली का निजीकरण करने की योजना है, जिसके बाद बिजली की दरें किसानों की पहुंच से दूर हो जाएंगी.

(फोटो: पीटीआई)
(फोटो: पीटीआई)

लखनऊ: ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन ने कृषि कानूनों और बिजली (संशोधन) विधेयक को वापस लेने की मांग कर रहे किसानों को अपना समर्थन देने का फैसला किया है.

फेडरेशन के अध्यक्ष शैलेंद्र दुबे ने बृहस्पतिवार को बताया, ‘किसान संयुक्त मोर्चा के आह्वान पर चल रहे आंदोलन में कृषि कानूनों की वापसी के साथ बिजली (संशोधन) विधेयक-2020 को वापस लेने की भी मांग की गई है. फेडरेशन ने इन किसानों को समर्थन देने का फैसला किया है.’

उन्होंने कहा कि बिजली (संशोधन) विधेयक का मसौदा जारी होते ही बिजली इंजीनियरों ने इसका पुरजोर विरोध किया था. विधेयक में इस बात का प्रावधान है कि किसानों को बिजली पर मिल रही सब्सिडी समाप्त कर दी जाए और बिजली की लागत से कम मूल्य पर किसानों सहित किसी भी उपभोक्ता को बिजली न दी जाए.

मालूम हो कि बिजली वितरण के निजीकरण के विरोध में उत्तर प्रदेश के विद्युत कर्मचारी और इंजीनियर कई दिनों तक विरोध प्रदर्शन और हड़ताल किया था.

दुबे ने कहा, ‘हालांकि विधेयक में इस बात का प्रावधान है कि सरकार चाहे तो किसानों को सब्सिडी की रकम उनके खाते में डाल सकती है, लेकिन इसके पहले किसानों को बिजली बिल का पूरा भुगतान करना पड़ेगा जो सभी किसानों के लिए संभव नहीं होगा.’

उन्होंने कहा, ‘किसानों का मानना है कि बिजली (संशोधन) विधेयक 2020 के जरिये बिजली का निजीकरण करने की योजना है, जिससे बिजली निजी घरानों के पास चली जाएगी. निजी क्षेत्र मुनाफे के लिए काम करते हैं, लिहाजा बिजली की दरें किसानों की पहुंच से दूर हो जाएंगी. फेडरेशन ने इसी आधार पर किसान आंदोलन का समर्थन करने का फैसला किया है.’

दुबे ने कहा, ‘किसानों की आशंकाएं निराधार नहीं हैं. बिजली (संशोधन) विधेयक 2020 और बिजली वितरण के निजीकरण के लिए जारी स्टैंडर्ड बिडिंग डॉक्यूमेंट बिजली के निजीकरण के उद्देश्य से लाए गए हैं. ऐसे में सब्सिडी समाप्त हो जाने पर बिजली की दरें 10 से 12 रुपये प्रति यूनिट हो जाएंगी और किसानों को आठ से 10 हजार रुपये प्रति माह का न्यूनतम भुगतान करना पड़ेगा.’

बता दें कि किसानों के समर्थन में ट्रांसपोर्टरों ने भी उत्तर भारत में परिचालन बंद करने की चेतावनी दी है.

ट्रांसपोर्टरों के शीर्ष संगठन ऑल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस (एआईएमटीसी) ने आंदोलनकारी किसानों का समर्थन करते हुए आठ दिसंबर से दिल्ली, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान सहित पूरे उत्तर भारत में आपूर्ति रोकने की बात कही है.

इसके अलावा ऑल इंडिया टैक्सी यूनियन ने चेतावनी दी थी कि अगर नए कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसानों की मांगें नहीं मानी गईं तो वे हड़ताल पर जाएंगे.

बता दें कि नए कृषि कानून के खिलाफ पिछले नौ दिनों (26 नवंबर) से दिल्ली की सीमाओं पर हजारों की संख्या में किसान विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. किसानों का कहना है कि वे निर्णायक लड़ाई के लिए दिल्ली आए हैं और जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं हो जातीं, तब तक उनका विरोध प्रदर्शन जारी रहेगा.

मालूम हो कि केंद्र सरकार की ओर से कृषि से संबंधित तीन विधेयक– किसान उपज व्‍यापार एवं वाणिज्‍य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक, 2020, किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्‍य आश्‍वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक, 2020 और आवश्‍यक वस्‍तु (संशोधन) विधेयक, 2020 को बीते 27 सितंबर को राष्ट्रपति ने मंजूरी दे दी थी, जिसके विरोध में किसान प्रदर्शन कर रहे हैं.

किसानों को इस बात का भय है कि सरकार इन अध्यादेशों के जरिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) दिलाने की स्थापित व्यवस्था को खत्म कर रही है और यदि इसे लागू किया जाता है तो किसानों को व्यापारियों के रहम पर जीना पड़ेगा.

दूसरी ओर केंद्र में भाजपा की अगुवाई वाली मोदी सरकार ने बार-बार इससे इनकार किया है. सरकार इन अध्यादेशों को ‘ऐतिहासिक कृषि सुधार’ का नाम दे रही है. उसका कहना है कि वे कृषि उपजों की बिक्री के लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था बना रहे हैं. 

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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