यूपी: जल निगम के दस हज़ार कर्मियों, 15 हज़ार सेवानिवृत्तों को पांच महीने से नहीं मिला वेतन-पेंशन

उत्तर प्रदेश जल निगम द्वारा बीते पांच महीनों से इंजीनियर्स समेत दस हज़ार कर्मचारियों को वेतन और क़रीब पंद्रह हजार रिटायर कर्मियों को पेंशन का भुगतान नहीं किया गया है. इससे परेशान जल निगम संघर्ष समिति ने 12 फरवरी से पूरे प्रदेश में चरणबद्ध आंदोलन की घोषणा की है.

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(फोटो साभार: संबंधित वेबसाइट)

उत्तर प्रदेश जल निगम द्वारा बीते पांच महीनों से इंजीनियर्स समेत दस हज़ार कर्मचारियों को वेतन और क़रीब पंद्रह हजार रिटायर कर्मियों को पेंशन का भुगतान नहीं किया गया है. इससे परेशान जल निगम संघर्ष समिति ने 12 फरवरी से पूरे प्रदेश में चरणबद्ध आंदोलन की घोषणा की है.

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गोरखपुर: उत्तर प्रदेश जल निगम के दस हजार अभियंताओं-कर्मचारियों और करीब 15 हजार रिटायर कर्मियों को पांच महीने से वेतन और पेंशन नहीं मिल पा रही है. यही नहीं रिटायर कर्मचारियों के देयकों का भी भुगतान चार वर्ष से अधिक समय से नहीं हो रहा है.

इससे परेशान होकर उत्तर प्रदेश जल निगम संघर्ष समिति ने 12 फरवरी से पूरे प्रदेश में चरणबद्ध आंदोलन की घोषणा की है.

उत्तर प्रदेश जल निगम में यह संकट इसलिए पैदा हुआ है क्योंकि प्रदेश सरकार ने इसके गठन के 45 वर्ष बाद भी अन्य विभागों व एजेंसियों के तरह इसके कर्मियों के वेतन-पेंशन देने की जिम्मेदारी स्वंय नहीं ली है.

जल निगम अपने काम से होने वाली आमदनी से वेतन-पेंशन का भुगतान करता है. उत्तर प्रदेश जल निगम का प्रदेश सरकार पर करीब 2,100 करोड़ रुपये बकाया है जिसका वह भुगतान नही कर रही हैं.

एक तरफ प्रदेश सरकार जल निगम की कमाई को उसको वापस नहीं दे रही है तो दूसरी तरफ उसके काम को दूसरे एजेंसियों को दे रही है.

इससे जल निगम को दोहरा नुकसान हुआ है. उसकी कमाई काफी कम हो गई है और वह एक तरह से लगातार ‘बेरोजगारी’ की तरफ बढ़ रहा है.

उत्तर प्रदेश जल निगम का गठन 1975 में किया था. इसके पहले यह 1927 में जन स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग नाम से कार्य कर रहा था जिसे 1946 में स्वायत शासन अभियंत्रण विभाग में बदल दिया गया. तब यह राजकीय विभाग था.

18 जून 1975 को विश्व बैंक से ऋण लेने के लिए उप्र जल संभरण तथा सीवर व्यवस्था अधिनियम 1975 ( यूपी वाटर सप्लाई एंड सीवरेज एक्ट 1975 ) के तहत इसे उप्र जल निगम में परिवर्तित कर दिया गया.

जल निगम को नगरीय और ग्रामीण पेयजल, सीवरेज, ड्रेनेज एवं नदी प्रदूषण नियंत्रण सम्बन्धी कार्यों का दायित्व सौंपा गया. जल निगम को इन कार्यों के लिए विशेषज्ञ एजेंसी के रूप में मान्यता मिली.

जल निगम के लिए व्यवस्था की गई कि वह प्रदेश सरकार, केंद्र सरकार या दूसरी एजेंसियों के लिए जो भी कार्य करेगा उसे 22 प्रतिशत सेंटेज यानि शतांश मिलेगा जिससे वह वेतन, पेंशन व अन्य खर्चों का वहन करेगा.

अब तक इसी व्यवस्था के तहत जल निगम अपने काम से होने वाली कमाई से अभियंताओं-कर्मचारियों को वेतन व रिटायर कर्मचारियों को पेंशन देता रहा है.

एक अप्रैल 1997 से जल निगम को अपने कार्यों के लिए मिलने वाला सेंटेज 22 प्रतिशत से घटाकर 12.5 फीसदी कर दिया गया. इससे जल निगम की आमदनी प्रभावित हुई. जल निगम की आमदनी में 41 फीसदी की कमी आई.

जल निगम बोर्ड ने प्रदेश सरकार से इसे संशोधित करने का अनुरोध कई बार किया लेकिन इसे अनसुना कर दिया गया. जल निगम की आर्थिक स्थिति उस समय और खराब हो गई जब जवाहर रोजगार योजना, सांसद व विधायक निधि (क्षेत्रीय विकास निधि) के कार्यों पर सेंटेज शून्य कर दिया गया.

यही नहीं हाल के वर्षों में जल निगम के कार्यों को दूसरी एजेंसियों को भी दिया जाने लगा.

उत्तर प्रदेश जल निगम संघर्ष समिति का कहना है कि प्रदेश सरकार उप्र वाटर सप्लाई एवं सीवरेज अधिनियम-1975 में निहित व्यवस्था को अतिक्रमित कर पेयजल तथा जल जीवन मिशन ( हर घर नल से जल) जैसे महत्वपूर्ण कार्यों को लघु सिंचाई विभाग, प्रोजेक्ट कार्पोरेशन, यूपी सीएलडीएफ आदि को आवंटित कर रही है जो इन कार्यों के लिए सक्षम नहीं हैं.

सेंटेज को कम करने, सेंटेज राशि का भुगतान न करने और जल निगम के कार्यो को दूसरी एजेंसियों को देने का परिणाम यह हुआ कि आज जल निगम अपने कर्मियों को वेतन-पेंशन देने लायक भी नहीं रहा.

जल निगम द्वारा किए गए कार्यों के बदले मिलने वाला सेंटेज लंबे समय से नहीं दिया गया है.

उत्तर प्रदेश जल निगम संघर्ष समिति के संयोजक रिटायर एक्जीक्यूटिव इंजीनियर डीपी मिश्र ने बताया कि  सरकार पर इस वक्त जल निगम को सेंटेज के एवज में बकाया 2,100 करोड़ है जबकि जल निगम में कार्य करने वाले अभियंताओं-कर्मचारियों के वेतन व रिटायर कर्मचारियों के पेंशन मद में बकाया 1,100 करोड़ है. यदि सरकार सेंटेज का पैसा जल निगम को दे दे, तो वेतन-पेंशन का भुगतान आसानी से हो जाएगा.

जल निगम में आर्थिक संकट के कारण सितंबर 2020 से अभियंताओं-कर्मचारियों को वेतन और रिटायर कर्मचारियों को पेंशन नहीं मिला है. इससे जल निगम कर्मी बहुत परेशान हैं. सबसे ज्यादा दिक्कत रिटायर कर्मियों को हो रही है जिनका खर्चा पेंशन से ही चलता है.

मिश्र ने बताया कि जल निगम में मृतक आश्रितों को नौकरी देने पर भी 2018 से रोक लगी हुई है जबकि जल निगम ने मृतक आश्रित नियमावली को स्वीकार किया है.  इससे जल निगम के 150 दिवगंत कर्मियों के आश्रितों को नौकरी नहीं मिल पा रही है.

यही नहीं रिटायर अभियंताओं व कर्मियों को रिटायर होने के बाद मिलने वाले देयकों का भुगतान वर्ष 2016 से नहीं हुआ है.

उन्होंने बताया कि जल निगम का प्रशासनिक विभाग नगर विकास विभाग है जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में उसके कार्य ग्राम्य विकास विभाग के अंतर्गत होते हैं. अब इसे जल शक्ति विभाग के अंतर्गत कर दिया गया है. दो विभागों के अधीन होने के कारण भी दिक्कतें आ रही है.

उन्होंने बताया कि समिति ने वेतन-पेंशन की तत्काल भुगतान की मांग को लेकर 12 फरवरी से चरणबद्ध आंदोलन की घोषणा की है.

पहले चरण में 12 फरवरी को सभी जिला मुख्यालयों पर जल निगम कर्मी डीएम को ज्ञापन देंगे. इसके बाद 16 से 20 फरवरी तक जल निगम मुख्यालयों पर क्रमिक अनशन व प्रदर्शन किया जाएगा. एक सप्ताह बाद 23 फरवरी से जन निगम कर्मी आमरण अनशन करेंगे.

समिति के मीडिया प्रभारी अजय पाल सिंह सोमवंशी द्वारा 10 फरवरी को जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि जल निगम कर्मियों को राज्य कर्मियों के अनुसार सभी लाभ मिलने चाहिए लेकिन उन्हें सातवें वेतनमान का लाभ नहीं दिया गया.

उन्होंने बताया कि उप्र जल संभरण तथा सीवर व्यवस्था अधिनियम-1975 की धारा-37 में यह प्राविधान है कि जल निगम कर्मियों को पारिश्रमिक, भत्ते, सेवा शर्त, अधिकार, विशेषाधिकार, पेंशन, उपादान आदि सब कुछ राजकीय कर्मियों के समतुल्य होगा. इस अधिनियम में जल निगम को राज्य सरकार के पूर्ण स्वामित्व वाला निगम घोषित किया गया है जिसका संचालन शासन द्वारा नियुक्त अध्यक्ष, प्रबंध निदेशक, वित्त निदेशक एवं शासकीय बोर्ड द्वारा किया जाता है लेकिन इसके बावजूद जल निगम कर्मियों को न तो सातवें वेतनमान का लाभ दिया गया है और न ही दिनांक 01.01.2006 से 11.03. 2010 तक काछठे वेतनमान का एरियर.

उनके मुताबिक, जल निगम कर्मियों को 10 वर्षों से बोनस का भुगतान और पेंशनरों को 164 के स्थान पर 142 प्रतिशत महंगाई राहत का ही भुगतान किया जा रहा है. जल निगम में सुधार के नाम पर नई प्रशासनिक व्यवस्था स्थापित की गई लेकिन न तो इसका कार्यभार बढ़ाया गया और न ही चल रहे कार्यों में किसी प्रकार की तेजी लाई गई.

समिति ने मांग की है कि सितंबर 2020 से अब तक बकाया 5 माह का वेतन एवं पेंशन, वर्ष 2016 से बकाया सभी पेंशनरी देयों का तत्काल भुगतान किया जाए, वेतन व पेंशन का नियमित भुगतान ट्रेजरी से कराया जाए और मृतक कार्मिकों के आश्रित परिवार के सदस्य की वर्ष 2018 से अवैधानिक रूप से अवरूद्ध अनुकंपा नियुक्ति तत्काल शुरू की जाए.

(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)