हत्या के मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने पति की सज़ा बरक़रार रखते हुए कहा-पत्नी कोई संपत्ति नहीं

दिसंबर 2013 में संतोष अख़्तर नाम के शख़्स ने चाय न बनाने पर अपनी पत्नी पर हथौड़े से हमला कर दिया था, जिससे उनकी मौत हो गई थी. अदालत ने कहा कि सामाजिक स्थितियों के कारण महिलाएं स्वयं को अपने पतियों को सौंप देती हैं, इसलिए इस प्रकार के मामलों में पुरुष स्वयं को श्रेष्ठतर और अपनी पत्नियों को ग़ुलाम समझने लगते हैं.

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बॉम्बे हाईकोर्ट (फोटो: पीटीआई)

दिसंबर 2013 में संतोष अख़्तर नाम के शख़्स ने चाय न बनाने पर अपनी पत्नी पर हथौड़े से हमला कर दिया था, जिससे उनकी मौत हो गई थी. अदालत ने कहा कि सामाजिक स्थितियों के कारण महिलाएं स्वयं को अपने पतियों को सौंप देती हैं, इसलिए इस प्रकार के मामलों में पुरुष स्वयं को श्रेष्ठतर और अपनी पत्नियों को ग़ुलाम समझने लगते हैं.

बॉम्बे हाईकोर्ट (फोटो: पीटीआई)
बॉम्बे हाईकोर्ट (फोटो: पीटीआई)

मुंबईः बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपनी पत्नी पर जानलेवा हमला करने के मामले में 35 वर्षीय एक व्यक्ति की दोषसिद्धि बरकरार रखते हुए कहा कि पति के लिए चाय बनाने से इनकार करना पत्नी को पीटने के लिए उकसाने का कारण स्वीकार नहीं किया जा सकता.

अदालत ने कहा कि पत्नी कोई संपत्ति या कोई वस्तु नहीं है.

जस्टिस रेवती मोहिते देरे ने इस महीने की शुरुआत में पारित आदेश में कहा, ‘विवाह समानता पर आधारित साझेदारी है लेकिन समाज में पितृसत्ता की अवधारणा अब भी कायम है और अब भी यह समझा जाता है कि महिला पुरुष की संपत्ति है, जिसकी वजह से पुरुष यह सोचने लगता है कि महिला उसकी गुलाम है.’

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने कहा, ‘इस तरह के मामले असामान्य नहीं है. इस तरह के मामले लैंगिक असंतुलन, पितृसत्ता और सामाजिक-सांस्कृतिक द्वंद्व को दर्शाते हैं, जिसमें हम पले-बढ़े हैं, जो अक्सर वैवाहिक रिश्ते में भी दिखाई देता है.’

अदालत के अनुसार, ‘लैंगिक भूमिकाओं में असंतुलन है, जहां घर संभाल रही पत्नी से सभी घरेलू काम करने की उम्मीद की जाती है. विवाह में भावनात्मक श्रम भी पत्नी द्वारा किए जाने की उम्मीद है. महिलाएं अपनी सामाजिक स्थितियों की वजह से भी खुद को अपने पतियों को सौंप देती हैं. इस तरह इन मामलों में पति खुद को अपनी पत्नी से ऊपर मानते हैं और अपनी पत्नियों को गुलाम समझते हैं.’

अदालत ने कहा कि दंपति की छह वर्षीय बेटी का बयान भरोसा करने लायक है.

अदालत ने 2016 में एक स्थानीय अदालत द्वारा 35 वर्षीय संतोष अख्तर को दी गई 10 साल की सजा बरकरार रखी. अख्तर को गैर इरादतन हत्या का दोषी ठहराया गया है.

आदेशानुसार, दिसंबर 2013 में अख्तर की पत्नी उसके लिए चाय बनाए बिना बाहर जाने की बात कर रही थी, जिसके बाद अख्तर ने हथौड़े से उसके सिर पर वार किया और वह गंभीर रूप से घायल हो गई.

मामले की विस्तृत जानकारी और दंपति की बेटी के बयान के अनुसार, ‘अख्तर ने इसके बाद घटनास्थल को साफ किया, अपनी पत्नी को नहलाया और उसे फिर से अस्पताल में भर्ती कराया.’

महिला की लगभग एक हफ्ते अस्पताल में भर्ती रहने के बाद मौत हो गई थी.

बचाव पक्ष ने दलील दी कि अख्तर की पत्नी ने उसके लिए चाय बनाने से इनकार कर दिया था, जिसके कारण उकसावे में आकर उसने यह अपराध किया.

अदालत ने यह तर्क स्वीकार करने से इनकार कर दिया.

अदालत ने कहा कि किसी भी तरह से यह बात स्वीकार नहीं की जा सकती कि महिला ने चाय बनाने से इनकार करके अपने पति को उकसाया, जिसके कारण उसने अपनी पत्नी पर जानलेवा हमला किया.

अदालत ने कहा कि महिलाओं की सामाजिक स्थितियों के कारण वे स्वयं को अपने पतियों को सौंप देती हैं, इसलिए इस प्रकार के मामलों में पुरुष स्वयं को श्रेष्ठतर और अपनी पत्नियों को गुलाम समझने लगते हैं.

जस्टिस देरे ने याचिका खारिज करते हुए कहा, ‘अगर याचिकाकर्ता घटना के तुरंत बाद सबूत नष्ट करने के बजाय अपनी पत्नी को तुरंत अस्पताल ले जाता तो शायद उनकी जान बच सकती थी.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)