कांग्रेस की ओर से कहा गया है कि 2017 में जिन 12 विधायकों ने पाला बदला था, उन्हें मणिपुर में संसदीय सचिव बनाया गया, लेकिन बाद में उन्हें हटा दिया गया, क्योंकि वे ‘लाभ के पद’ पर थे. 2017 में कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत मिला था, लेकिन मार्च 2017 में ‘ख़रीद फ़रोख़्त और गंदी गतिविधियों’ द्वारा 28 विधायकों वाले स्पष्ट बहुमत को एक कृत्रिम अल्पमत में तब्दील कर दिया गया और भाजपा ने अपनी सरकार बना ली.
नई दिल्ली: चुनाव आयोग ने 2018 के ‘लाभ के पद मामले में’ संसदीय सचिव पदों पर रहने को लेकर अयोग्य ठहराए जान के खतरे का सामना कर रहे मणिपुर के 12 भाजपा विधायकों के पक्ष में विचार व्यक्त किया है. आयोग ने बीते मंगलवार को कहा कि वह किसी विशेषाधिकार संचार की कभी भी चर्चा नहीं करता.
मीडिया में आई खबर के अनुसार, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विधायक चुनाव आयोग द्वारा उल्लंघन करते नहीं पाए गए, क्योंकि उन्होंने राज्य में संसदीय सचिवों के पद दो कानूनों के तहत प्राप्त छूट के तहत संभाले थे.
इन कानूनों को बाद में उच्च न्यायालय द्वारा खारिज कर दिया गया था. ये दो कानून मणिपुर संसदीय सचिव (नियुक्ति, वेतन एवं भत्ते तथा विविध प्रावधान) अधिनियम, 2012 और मणिपुर संसदीय (नियुक्ति, वेतन एवं भत्ते तथा विविध प्रावधान) निरस्त अधिनियम, 2018 हैं.
अदालत द्वारा कानूनों को अमान्य घोषित किए जाने के बाद मणिपुर कांग्रेस ने राज्यपाल नजमा हेपतुल्ला से संपर्क करके भाजपा के 12 विधायकों को संसदीय सचिवों के पद संभालने के चलते अयोग्य घोषित करने की मांग की थी.
राज्यपाल ने पिछले साल अक्टूबर में इस मामले पर चुनाव आयोग के विचार मांगे थे.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, जनवरी में हेपतुल्ला को लिखे एक पत्र में चुनाव आयोग ने कहा है कि चूंकि दो कानून उस समय लागू थे, जब विधायकों ने संसदीय सचिवों के पद संभाले थे, इसलिए उन्हें लाभ का पद धारण करने के लिए अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता.
सवालों के जवाब में आयोग के एक प्रवक्ता ने एक ट्वीट में कहा, ‘चुनाव आयोग विशेषाधिकार प्राप्त संचार पर (किसी अन्य संवैधानिक प्राधिकार के साथ) चर्चा नहीं करता.’
संविधान में ‘लाभ के पद’ को परिभाषित किया गया है, जिसके तहत सांसद या विधायक ऐसा कोई पद नहीं स्वीकार कर सकते हैं, जिसका कोई वेतन मिलता हो. यहां तक कि कोई अन्य ऑफिस या कार वगैरह भी लेने पर रोक लगाई गई है. यदि इस नियम का उल्लंघन किया जाता है तो संबंधित सांसद या विधायक को बर्खास्त कर दिया जाता है.
भाजपा मणिपुर में ‘असंवैधानिक’ सरकार चला रही है: कांग्रेस
कांग्रेस ने बीते मंगलवार को सरकार पर मणिपुर में 12 विधायकों को अयोग्य घोषित नहीं कर राज धर्म त्यागने का आरोप लगाया और कहा कि भाजपा राज्य में असंवैधानिक सरकार चलाकर लोकतंत्र को विकृत कर रही है.
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि 12 विधायकों को लाभ के पद के मामले में अयोग्य ठहराया जाना चाहिए था, लेकिन संवैधानिक प्राधिकारी निर्णय नहीं ले रहे और विलंब कर रहे हैं.
12 BJP Manipur MLAs should have been disqualified in 2018 in office of profit case.
Now, ECI says that Manipur Governor has already been instructed about the same but no action has been taken yet.
Entirely unconstitutional of the Governor to protect BJP.
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) March 2, 2021
उन्होंने एक ट्वीट में कहा, ‘मणिपुर भाजपा के 12 विधायकों को लाभ के पद के मामले में 2018 में अयोग्य घोषित किया जाना चाहिए था. अब ईसीआई (चुनाव आयोग) का कहना है कि मणिपुर के राज्यपाल को पहले ही इस बारे में निर्देशित किया जा चुका है, लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है. राज्यपाल द्वारा भाजपा की रक्षा करना पूरी तरह से असंवैधानिक है.’
कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक सिंघवी ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि 2017 में जिन 12 विधायकों ने पाला बदला था, उन्हें मणिपुर में संसदीय सचिव बनाया गया, लेकिन बाद में उन्हें हटा दिया गया, क्योंकि वे ‘लाभ के पद’ पर थे.
उन्होंने कहा कि सितंबर 2020 में मणिपुर उच्च न्यायालय के फैसले के बाद भी विधायक अयोग्य नहीं ठहराए गए. उन्होंने आरोप लगाया कि राज्यपाल और चुनाव आयोग इस मुद्दे पर अपने फैसले में देरी कर रहे हैं.
सिंघवी के साथ मणिपुर के पूर्व मुख्यमंत्री इबोबी सिंह और पार्टी के अन्य नेता और विधायक भी थे. सिंघवी ने कहा कि भाजपा 12 विधायकों के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर ‘जान-बूझकर और असंवैधानिक देरी’ कर रही है.
उन्होंने आरोप लगाया कि 2017 में कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत आया था, लेकिन मार्च 2017 में ‘खरीद फरोख्त और गंदी गतिविधियों’ द्वारा 28 विधायकों वाले स्पष्ट बहुमत को एक कृत्रिम अल्पमत में तब्दील कर दिया गया और भाजपा ने अपनी सरकार बना ली.
उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार बनाने के तुरंत बाद भाजपा ने उन 12 विधायकों को पुरस्कृत किया, जिन्होंने पाला बदला था. उन्हें संसदीय सचिव पद दिए गए, लेकिन कुछ महीनों बाद उन्हें हटा दिया गया, क्योंकि उन्हें एहसास हुआ कि ये पद अवैध थे.
उन्होंने आरोप लगाया कि संसदीय या विधानसभा सचिव का पद लाभ का पद माना जाता है और यह अच्छी तरह से स्थापित नियम है.
उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय के सितंबर 2020 के फैसले- जो उच्चतम न्यायालय में अपील के अधीन है- के साढ़े पांच महीने बाद भी राज्यपाल ने निर्णय नहीं लिया है और चुनाव आयोग ने भी इस पर लंबे समय तक निर्णय नहीं लिया है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)