यौन उत्पीड़न के फ़र्ज़ी मामले दर्ज कराना ट्रेंड बन गया है: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली के वसंत कुंज में पार्किंग संबंधी विवाद के सिलसिले में दो पक्षों ने एक दूसरे के ख़िलाफ़ यौन उत्पीड़न के आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज करवाई थी. इन्हें रद्द करने की मांग की याचिका सुनते हुए अदालत ने कहा कि समय आ गया है कि इन धाराओं के तहत झूठी शिकायतें दर्ज कराने वालों पर कार्रवाई की जाए.

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(फोटो: पीटीआई)

दिल्ली के वसंत कुंज में पार्किंग संबंधी विवाद के सिलसिले में दो पक्षों ने एक दूसरे के ख़िलाफ़ यौन उत्पीड़न के आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज करवाई थी. इन्हें रद्द करने की मांग की याचिका सुनते हुए अदालत ने कहा कि समय आ गया है कि इन धाराओं के तहत झूठी शिकायतें दर्ज कराने वालों पर कार्रवाई की जाए.

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(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्लीः दिल्ली हाईकोर्ट का कहना है कि महिलाओं के खिलाफ यौन अपराधों से संबंधित प्रावधानों के तहत एफआईआर दर्ज कराना एक प्रवृत्ति बन गया है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने कहा कि ऐसा या तो उनके खिलाफ दर्ज शिकायत को वापस लेने या किसी पक्ष पर दबाव बनाने के लिए किया जाता है.

जस्टिस सुब्रमणियम प्रसाद ने कहा, ‘आईपीसी की धारा 354, 354एस 354बी, 354सी, 354डी के तहत अपराध गंभीर अपराध है. इस तरह के आरोपों से उस शख्स की छवि धूमिल होती है, जिसके खिलाफ ये आरोप लगाए जाते हैं. इस तरह के अपराधों में आरोप तत्काल नहीं लगाए जा सकते.’

इसे कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करार देते हुए अदालत ने कहा कि पुलिसबल बहुत सीमित है और उन्हें फिजूल मामलों की जांच में समय बिताना पड़ता है.

अदालत ने आदेश में कहा, ‘उन्हें (पुलिस) अदालत की कार्यवाही में शामिल होना पड़ता है और स्टेटस रिपोर्ट आदि तैयार करनी पड़ती है. इसका नतीजा यह होता है कि गंभीर अपराधों में जांच बाधित होती है और इस तरह से आरोपी बचकर भाग निकलने में कामयाब हो जाता है. अब समय आ गया है कि इन धाराओ के तहत झूठी शिकायतें दर्ज कराने वाले लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जाए.’

इस आदेश को अदालत द्वारा पारित कर दिया गया है. दरअसल वसंत कुंज के कुछ स्थानीय लोगों ने एक दूसरे के खिलाफ इस तरह की एफआईआर दर्ज की थी, जिन्हें रद्द करने की मांग को लेकर अदालत में याचिकाएं दायर की गई थी. साझा दोस्तों, संबंधियों और परिवार के सदस्यों के हस्तक्षेप के बाद इन पक्षों के बीच सुलह हो गई थी.

अदालत ने आपसी समझौते की मंजूरी देते हुए स्थानीय निवासियों द्वारा दर्ज कराई गई दो याचिकाओं के लिए 30,000-30,000 रुपये का जुर्माना लगाया था और इस तरह के झूठे और मनगढंत मामले दर्ज नहीं कराने की चेतावनी दी थी.

अदालत ने आदेश में कहा, ‘तात्कालिक मामला एक क्लासिक उदाहरण है कि किस तरह विभिन्न पक्षों ने एक-दूसरे के खिलाफ आईपीसी की धारा 354 और 354ए के तहत झूठे आरोप लगाए हैं. पार्किंग को लेकर हुई एक छोटे विवाद की वजह से बात को इतना बढ़ा दिया गया कि महिला के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए गए.’