सिर पर मैला ढोने की प्रथा: सुप्रीम कोर्ट ने कहा, राज्यों को जवाब देने के लिए बाध्य नहीं कर सकते

साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से 1993 के बाद से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से काम पर रखे गए सिर पर मैला ढोने वाले लोगों की संख्या के बारे में स्थिति रिपोर्ट दायर करने को कहा था. हालांकि याचिकाकर्ता ने कहा कि 40 से अधिक राज्यों में से केवल 13 ने ही हलफ़नामा दाख़िल किया है.

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(फोटो: रायटर्स)

साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से 1993 के बाद से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से काम पर रखे गए सिर पर मैला ढोने वाले लोगों की संख्या के बारे में स्थिति रिपोर्ट दायर करने को कहा था. हालांकि याचिकाकर्ता ने कहा कि 40 से अधिक राज्यों में से केवल 13 ने ही हलफ़नामा दाख़िल किया है.

भारतीय सुप्रीम कोर्ट (फोटो: रायटर्स)
भारतीय सुप्रीम कोर्ट (फोटो: रायटर्स)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि वह सिर पर मैला ढोने की प्रथा के मुद्दे पर राज्यों को जवाब देने के लिए बाध्य नहीं कर सकता तथा वह इससे संबंधित याचिका पर सुनवाई करेगा.

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, जस्टिस ए एस बोपन्ना और जस्टिस वी. रामासुब्रमणियन की पीठ ने मामले को अगस्त के तीसरे सप्ताह में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया.

गैर सरकारी संगठन ‘क्रिमिनल जस्टिस सोसाइटी ऑफ इंडिया’ की ओर से अधिवक्ता आशिमा मंडला ने कहा कि हर पांच दिन में सिर पर मैला ढोने वाले एक व्यक्ति की मौत हो जाती है और मुद्दा राज्यसभा में भी उठ चुका है.

मंडला ने कहा कि फरवरी 2019 में मामले में नोटिस जारी किया गया था और 40 से अधिक प्रतिवादियों (राज्य) में से केवल 13 ने ही जवाबी हलफनामा दाखिल किया है.

पीठ ने कहा, ‘हम लोगों को जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए बाध्य नहीं कर सकते. हम इसके प्रतिकूल नतीजे निकालते हुए आगे बढ़ेंगे.’

शीर्ष अदालत ने आठ फरवरी 2019 को सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों से 1993 के बाद से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से काम पर रखे गए सिर पर मैला ढोने वाले लोगों की संख्या के बारे में स्थिति रिपोर्ट दायर करने को कहा था.

देश में पहली बार सिर पर मैला ढोने की प्रथा को वर्ष 1993 में अवैध घोषित किया गया था. इसके बाद 2013 में कानून बनाकर इस पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाया गया था. हालांकि आज भी समाज में मैला ढोने की प्रथा मौजूद है.

न्यायालय ने कहा था कि मामला गंभीर है और सभी राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों को चार सप्ताह के भीतर अपना जवाब दाखिल करना चाहिए.

याचिका में सिर पर मैला ढोने वाले उन लोगों की संख्या बताए जाने का भी आग्रह किया गया है जिनकी 1993 से बाद के वर्षों में मौत हुई है.

इसमें सभी राज्यों, केंद्रशासित प्रदेशों और भारतीय रेलवे को सिर पर मैला ढोने वाले लोगों की मौत की जांच करने और प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से लोगों से ऐसा काम कराने वाले अधिकारियों, एजेंसियों, ठेकेदारों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश देने का भी आग्रह किया गया है.

बता दें बीते 11 फरवरी को केंद्र सरकार ने सदन में बताया था कि देश में हाथ से मैला ढोने वाले (मैनुअल स्कैवेंजर) 66,692 लोगों की पहचान कर ली गई है. इनमें से 37,379 लोग उत्तर प्रदेश के हैं.

सामाजिक न्याय व अधिकारिता राज्यमंत्री रामदास अठावले द्वारा दिए गए आंकड़ों के मुताबिक हाथ से मैला ढोने वालों की सबसे अधिक संख्या उत्तर प्रदेश में है. इस मामले में महाराष्ट्र दूसरे स्थान पर है. यहां हाथ से मैला ढोने वाले 7,378 लोगों की पहचान की गई है, जबकि उत्तराखंड में ऐसे 4,295 लोग हैं. असम में 4,295 लोगों की पहचान की गई है.

उन्होंने कहा था कि पिछले पांच सालों में नालों और टैंकों की सफाई के दौरान 340 लोगों की जान गई है. जिन 340 लोगों की मौत हुई है, उनमें से 217 को पूरा मुआवजा दिया जा चुका है, जबकि 47 को आंशिक रूप से मुआवजा दिया गया है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)