झूठे मामलों में फंसाए गए लोगों को मुआवज़े के दिशानिर्देश को लेकर अदालत का केंद्र को नोटिस

शीर्ष अदालत ने कहा कि इस तरह के झूठे आपराधिक मामलों में शिकायतकर्ता के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई सुनिश्चित की जाए. अदालत में दायर याचिकाओं में कहा है कि फ़र्ज़ी दुर्भावनापूर्ण मुकदमों और उत्पीड़न के शिकार निर्दोष लोगों को मुआवज़ा देने का कोई कानूनी प्रावधान नहीं है. बिना किसी ग़लती के जेल में बंद करना उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है.

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(फोटो: पीटीआई)

शीर्ष अदालत ने कहा कि इस तरह के झूठे आपराधिक मामलों में शिकायतकर्ता के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई सुनिश्चित की जाए. अदालत में दायर याचिकाओं में कहा है कि फ़र्ज़ी दुर्भावनापूर्ण मुकदमों और उत्पीड़न के शिकार निर्दोष लोगों को मुआवज़ा देने का कोई कानूनी प्रावधान नहीं है. बिना किसी ग़लती के जेल में बंद करना उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है.

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नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने गलत अभियोजन के पीड़ितों को मुआवजे के लिए दिशानिर्देश बनाने का सरकार को निर्देश देने का अनुरोध करने वाली दो याचिकाओं पर मंगलवार को केंद्र से जवाब मांगा.

न्यायालय ने इसके साथ ही कहा कि इस तरह के झूठे आपराधिक मामलों में शिकायतकर्ता के खिलाफ सख्त कार्रवाई सुनिश्चित की जाए.

जस्टिस यूयू ललित की पीठ ने भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय और कपिल मिश्रा की याचिकाओं पर केंद्र, कानून एवं न्याय मंत्रालय, विधि आयोग और सभी राज्यों को नोटिस जारी किए.

अधिवक्ता उपाध्याय ने सरकारी मशीनरी के माध्यम से गलत अभियोजन के पीड़ितों को मुआवजे के लिए दिशानिर्देश बनाने और उसे लागू करने के लिए केंद्र, सभी राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश देने का अनुरोध किया.

मिश्रा ने अपनी याचिका के जरिये केंद्र को यह निर्देश देने का अनुरोध किया है कि आपराधिक मामलों में झूठी शिकायतों के खिलाफ सख्त कार्रवाई सुनिश्चित करने के लिए और इस तरह के गलत अभियोजन के पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए दिशानिर्देश बनाए जाएं.

पीठ ने उपाध्याय की याचिका में किए गए एक अनुरोध पर केंद्र को नोटिस जारी किया, लेकिन राज्यों और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को नोटिस जारी करने से इनकार कर दिया.

न्यायालय अब 26 अप्रैल को इन विषयों की आगे की सुनवाई करेगा.

शीर्ष अदालत में ये याचिकाएं इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मामले के मद्देनजर दायर की गई हैं.

गौरतलब है कि उच्च न्यायालय ने बलात्कार के मामले में दोषी ठहराए गए और करीब 20 से जेल में कैद एक व्यक्ति को जनवरी में बेकसूर करार देते हुए कहा था कि प्राथमिकी दर्ज कराने के पीछे का मकसद भूमि विवाद था.

लाइव लॉ के मुताबिक उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा है कि फर्जी दुर्भावनापूर्ण मुकदमों और उत्पीड़न के शिकार निर्दोष लोगों को मुआवजा देने का ऐसा कोई कानूनी प्रावधान नहीं है. बिना किसी गलती के जेल में बंद करना उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है.

बिना किसी गलती के लंबे समय तक जेल में काटने वाले बेगुनाह लोगों को मुआवजा मिलना चाहिए. उन्होंने याचिका में यह भी कहा है कि फर्जी मुकदमों दर्ज होने से कई बार निर्दोष व्यक्ति आत्महत्या तक कर लेते हैं.

याचिका में कहा गया है कि नागरिकों के प्रति अपनी जवाबदेही से सरकार पीछे नहीं हट सकती.

वहीं, कपिल मिश्रा ने अपनी याचिका में कहा है कि झूठे शिकायत कर कानून का दुरुपयोग हो रहा है.

उन्होंने कहा कि झूठी शिकायतों के पीड़ितों को अनिवार्य मुआवजा राहत प्रदान करने के लिए प्रभावी कानूनी योजना के अभाव में फर्जी शिकायतकर्ताओं के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाती है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)