ये मामला तीन जुलाई 2020 को किए गए एक फेसबुक पोस्ट से जुड़ा हुआ है, जिसमें शिलॉन्ग टाइम्स की संपादक पैट्रिशिया मुखीम ने ग़ैर-आदिवासी युवाओं पर हुए हमले को लेकर सवाल उठाया था. राज्य सरकार का कहना था कि ऐसा करके मुखीम ने मामले को सांप्रदायिक रंग दिया है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने फेसबुक पोस्ट के जरिये कथित तौर पर सांप्रदायिक वैमनस्य फैलाने के लिए द शिलॉन्ग टाइम्स की संपादक और वरिष्ठ पत्रकार पैट्रिशिया मुखीम के खिलाफ दर्ज एफआईआर गुरुवार को रद्द कर दी.
जस्टिस एल. नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली पीठ ने मेघालय हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ मुखीम की याचिका पर सुनवाई की. मेघालय उच्च न्यायालय ने मुखीम के खिलाफ प्राथमिकी रद्द करने से इनकार कर दिया था.
पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा, ‘हमने अपील को मंजूर कर लिया है.’ न्यायालय ने 16 फरवरी को मामले में सुनवाई पूरी की थी और कहा था फैसला बाद में सुनाया जाएगा.
मुखीम के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी थी कि तीन जुलाई 2020 को एक जानलेवा हमले से जुड़ी घटना के संबंध में किए गए पोस्ट के जरिये वैमनस्य या संघर्ष पैदा करने का कोई इरादा नहीं था.
BREAKING: Supreme Court allows the appeal filed by Shillong Times Editor #PatriciaMukhim to quash criminal proceedings against her over a Facebook post on violence against non-tribal people in State.
“We have allowed the appeal and quashed the FIR”. @meipat @ShillongTimesIn https://t.co/x2inoFpSDW
— Live Law (@LiveLawIndia) March 25, 2021
मेघालय सरकार के वकील ने उच्चतम न्यायालय में पहले दावा किया था कि नाबालिग लड़कों के बीच झगड़े को ‘साम्प्रदायिक रंग’ दिया गया और मुखीम के पोस्ट दिखाते हैं कि यह आदिवासी और गैर आदिवासी लोगों के बीच एक सांप्रदायिक घटना थी.
पिछले साल 10 नवंबर को मेघालय उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने एक पारंपरिक संस्थान लॉसोहतुन दरबार शोन्ग द्वारा दायर प्राथमिकी रद्द करने से इनकार कर दिया था.
मुखीम ने एक बास्केटबॉल कोर्ट में पांच लड़कों पर हमले के बाद ‘जानलेवा हमला करने वाले लोगों’ की पहचान करने में नाकाम रहने के लिए फेसबुक पर लॉसोहतुन गांव की परिषद ‘दरबार’ पर निशाना साधा था.
‘दरबार’ या ‘दोरबार शोन्ग’ खासी गांवों की प्रशासनिक इकाई है, जो पारंपरिक शासन चलाती है. इस घटना में कथित रूप से दो समूह- आदिवासी एवं गैर-आदिवासी शामिल थे. इस मामले में 11 लोगों को पुलिस ने हिरासत में लिया था और दो लोगों को गिरफ्तार किया गया था.
इस बारे में मुखीम ने अपनी पोस्ट में लिखा था, ‘बास्केटबॉल खेल रहे कुछ गैर-आदिवासी युवाओं पर धारदार हथियार से हमला किया गया और वे अब अस्पताल में हैं, यह एक सरकार एवं पुलिस वाले राज्य में स्वीकार नहीं किया जा सकता है.’
फेसबुक पोस्ट में आगे लिखा गया था, ‘मेघालय में गैर-आदिवासियों पर इस तरह के हमले की निंदा की जानी चाहिए. इसमें से कई के पूर्वज दशकों से यहां पर रह रहे हैं, कुछ तो ब्रिटिश काल से ही यहां पर हैं. और क्षेत्र के दोरबार शोन्ग के बारे में क्या? क्या उनकी आंखें और कान जमीन पर नहीं हैं? क्या वे अपने अधिकार क्षेत्र के आपराधिक तत्वों को नहीं जानते हैं? क्या उन्हें इसमें आगे नहीं आना चाहिए और उन हमलावरों की पहचान करनी चाहिए?’
इसे लेकर गांव की परिषद ने पिछले साल छह जुलाई को मुखीम के फेसबुक पोस्ट के लिए उनके खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराते हुए आरोप लगाया था कि उनके बयान ने सांप्रदायिक तनाव बढ़ाया और संभवत: सांप्रदायिक संघर्ष भड़काया.
मुखीम पर आईपीसी की धारा 153ए (धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने), 505 (किसी भी वर्ग या समुदाय को भकड़ाने के इरादे से बयान देना) और 499 (मानहानि) के तहत मामला दर्ज किया गया था.
हाईकोर्ट में दायर अपनी याचिका में मुखीम ने मांग की थी कि उनके खिलाफ शिकायत और शुरू की गई कार्यवाही को रद्द कर दिया जाए.
हालांकि मामले को सुनते हुए जस्टिस डब्ल्यू. दिएंगदोह ने कहा था कि उन्होंने अपने पोस्ट में ‘आदिवासी एवं गैर-आदिवासी की सुरक्षा एवं अधिकारों की तुलना की है और उनका झुकाव एक तरफ रहा है. इसके चलते यह दो समुदायों के बीच सांप्रदायिक तनाव को भड़काने वाली प्रवृत्ति का है.’
हालांकि अब सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले को खारिज कर दिया है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)