हाईकोर्ट में अधिक महिला जजों की नियुक्ति की मांग लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा महिला वकीलों का संघ

सुप्रीम कोर्ट महिला वकील संघ ने वकील स्नेहा कलीता के ज़रिये दायर याचिका में न्यायपालिका में महिलाओं की उचित भागीदारी की मांग की है. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के बीते 71 सालों के कामकाज में 247 जजों में से सिर्फ आठ महिलाएं थीं. मौजूदा समय में जस्टिस इंदिरा बनर्जी सुप्रीम कोर्ट की एकमात्र महिला जज हैं.

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(फोटो: पीटीआई)

सुप्रीम कोर्ट महिला वकील संघ ने वकील स्नेहा कलीता के ज़रिये दायर याचिका में न्यायपालिका में महिलाओं की उचित भागीदारी की मांग की है. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के बीते 71 सालों के कामकाज में 247 जजों में से सिर्फ आठ महिलाएं थीं. मौजूदा समय में जस्टिस इंदिरा बनर्जी सुप्रीम कोर्ट की एकमात्र महिला जज हैं.

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नई दिल्लीः महिला वकीलों के एक संघ ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट का रुख कर हाईकोर्ट के जजों के तौर पर महिलाओं की उचित भागीदारी की मांग की.

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, महिला वकील संघ ने संवैधानिक अदालतों में महिलाओं की कम उपस्थिति का हवाला दिया.

सुप्रीम कोर्ट महिला वकील संघ ने वकील स्नेहा कलीता के जरिये दायर याचिका में कहा कि सुप्रीम कोर्ट के बीते 71 सालों के कामकाज में 247 जजों में से सिर्फ आठ महिलाएं थीं. मौजूदा समय में जस्टिस इंदिरा बनर्जी सुप्रीम कोर्ट में अकेली महिला जज हैं. पहली महिला जज फातिमा बीवी थी, जो 1987 में नियुक्त हुई थीं.

हाईकोर्ट जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया पूरी होने में देरी का सुप्रीम कोर्ट का जायजा लेने के लंबित मामले में हस्तक्षेप करने की मांग करते हुए संघ ने कहा कि हाईकोर्ट के 1,080 जजों की स्वीकृत क्षमता के विपरीत सिर्फ 661 की ही नियुक्ति की गई, जिनमें 73 महिलाएं हैं.

मद्रास हाईकोर्ट में 13 महिला जज हैं, जो किसी हाईकोर्ट में सबसे अधिक हैं. वहीं, मणिपुर, मेघालय, बिहार, त्रिपुरा और उत्तराखंड के हाईकोर्ट में कोई महिला जज नहीं हैं.

संघ ने कहा कि अमेरिका में महिला राज्य जजों की संख्या 6,056 है जो कुल 17,778 जजों का 34 फीसदी है जबकि अंतरराष्ट्रीय न्याय अदालत में 15 जजों में तीन महिलाएं थीं.

छह दिसंबर की इसी अख़बार की एक रिपोर्ट में कहा गया कि यहां तक कि अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने अधिक से अधिक महिला जजों को नियुक्त करने की सिफारिश करते हुए कहा था कि आदर्श स्थिति यह होगी कि कुल जजों के पदों में पचास फीसदी पदों पर महिलाओं की नियुक्ति हो.

उन्होंने कहा था कि न्यायपालिका में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी से यौन हिंसा से जुड़े मामलों में अधिक संतुलित और सशक्त दृष्टिकोण का मार्ग प्रशस्त होगा.

संघ ने कहा कि उनकी प्रमुख महालक्ष्मी पवानी ने हाल ही में सीजेआई एसए बोबडे को पत्र लिखकर संवैधानिक अदालतों में महिलाओं की पर्याप्त भागीदारी की जरूरत पर जोर दिया था.

आवेदक का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में प्रैक्टिस कर रही महिला वकीलों की प्रतिभाओं को भुनाना चाहिए और उन्हें हाईकोर्ट में जज पद पर उनका चुनाव करना चाहिए.

मौजूदा समय में किसी राज्य के हाईकोर्ट में उसी की नियुक्ति की जाती है, जहां से वह उम्मीदवार आता है.

अगर संघ के सुझाव को स्वीकार कर लिया जाता है तो सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस कर रही महिला वकीलों को हाईकोर्ट के जजों के रूप में नियुक्त किया जा सकता है.