सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को प्रवासी बच्चों और उनकी स्थिति की जानकारी देने का निर्देश दिया

सुप्रीम कोर्ट ने ये निर्देश उस याचिका पर दिया, जिसमें कोविड-19 वैश्विक महामारी के बीच प्रवासी बच्चों के मौलिक अधिकारों के संरक्षण का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है. याचिका में कहा गया कि केंद्र सरकार द्वारा किए गए राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के दौरान प्रवासी बच्चे सबसे अधिक प्रभावित हुए और सबसे संवेदनशील स्थिति में हैं.

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(फोटो: रॉयटर्स)

सुप्रीम कोर्ट ने ये निर्देश उस याचिका पर दिया, जिसमें कोविड-19 वैश्विक महामारी के बीच प्रवासी बच्चों के मौलिक अधिकारों के संरक्षण का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है. याचिका में कहा गया कि केंद्र सरकार द्वारा किए गए राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के दौरान प्रवासी बच्चे सबसे अधिक प्रभावित हुए और सबसे संवेदनशील स्थिति में हैं.

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को मंगलवार को निर्देश दिया कि वे प्रवासी बच्चों की संख्या और उनकी स्थिति से उसे अवगत कराएं.

न्यायालय ने ये निर्देश उस याचिका पर दिया, जिसमें कोविड-19 वैश्विक महामारी के बीच प्रवासी बच्चों के मौलिक अधिकारों के संरक्षण का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है.

सीजेआई एसए बोबडे और जस्टिस एएस बोपन्ना एवं जस्टिस वी. रामासुब्रमणियन ने मामले में पक्षकार बनाए गए सभी राज्यों को जवाब देने का निर्देश दिया है.

याचिकाकर्ताओं की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता जायना कोठारी पेश हुईं.

शीर्ष अदालत ने सभी राज्यों को आठ मार्च को मामले में पक्षकार बनाया था और चाइल्ड राइट्स ट्रस्ट तथा बेंगलुरु के एक निवासी की ओर से दाखिल याचिका पर नोटिस जारी किया था, जिसमें कोविड-19 वैश्विक महामारी के बीच प्रवासी बच्चों के मौलिक अधिकारों के संरक्षण का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था.

याचिका में कहा गया कि कोविड-19 संकट की गंभीरता के चलते केंद्र सरकार ने राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की थी और इस दौरान प्रवासी बच्चे सबसे अधिक प्रभावित हुए और सबसे संवेदनशील स्थिति में हैं.

इसमें कहा गया, ‘भले ही प्रवासी मजदूरों के कल्याण के लिए प्रतिवादियों के प्रयासों की जानकारी है, लेकिन जिलों में बने राहत शिविरों एवं पृथकवास केंद्रों में रहे बच्चों एवं महिलाओं के लिए उठाए गए कदमों पर केंद्र या राज्यों की तरफ से कोई रिपोर्ट जारी नहीं की गई है.’

याचिका में कहा गया, ‘अभूतपूर्व लॉकडाउन ने प्रवासी संकट पैदा किया और प्रवासी बच्चों पर भी इसका प्रभाव पड़ा है और उनके मौलिक एवं मानवाधिकार पर पड़े प्रभाव तथा जारी संकट साफ तौर पर दिख रहा है.’

इसमें कहा गया कि लॉकडाउन से प्रवासी बच्चों पर कहर बरपा है और अब तक प्रवासी बच्चों, शिशुओं, गर्भवती या स्तनपान कराने वाली प्रवासी महिलाओं की संख्या और उनकी जरूरतों का कोई आकलन नहीं किया गया है.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, कोविड-19 के कारण प्रभावित प्रवासी बच्चे अभी भी ईंट-भट्टों, स्टोन क्रेशर इकाइयों, निर्माण स्थलों, राइस मिलों और अन्य क्षेत्रों में काम कर रहे हैं, जहां पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चे अपने माता-पिता को दिहाड़ी कमाने में मदद करने के लिए हाथ बंटाते हैं.

प्रवासी बच्चों की कमजोरियों को अस्थायी रूप से बढ़ाने वाले अनुपातहीन और भेदभावपूर्ण प्रभाव का हवाला देते हुए याचिका में प्रवासी बच्चों के संबंध में चार-पांच मुख्य प्रभावों पर चिंता जताई गई, जिसमें रहने की खतरनाक स्थिति, खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य आवश्यकताएं, शिक्षा और सुरक्षा शामिल हैं.

उपरोक्त चिंताओं के प्रभाव में याचिका में सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया गया कि वह कोविड-19 महामारी के मद्देनजर प्रवासी बच्चों और प्रवासी परिवारों के बच्चों के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए निर्देश पारित करे.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)