सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को यूएपीए के आरोपों के तहत गिरफ़्तार केरल के पत्रकार सिद्दीक कप्पन को बेहतर इलाज के लिए राज्य से बाहर स्थानांतरित करने का निर्देश देते हुए कहा कि एक विचाराधीन क़ैदी को भी जीने का अधिकार है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को बुधवार को निर्देश दिया कि पिछले साल गिरफ्तार किए गए केरल के पत्रकार सिद्दीक कप्पन को बेहतर इलाज के लिए राज्य से बाहर स्थानांतरित कर दिया जाए. न्यायालय ने कहा कि एक विचाराधीन कैदी को भी ‘जीने का अधिकार’ है.
प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना, जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस एएस बोपन्ना की तीन सदस्यीय पीठ ने यह राहत प्रदान करते हुए राज्य सरकार को केरल के पत्रकार को इलाज मुहैया कराने का निर्देश दिया.
पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि स्वस्थ होने के बाद कप्पन को मथुरा की जेल भेजा जाए. पीठ कप्पन की रिहाई के लिए केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स (केयूडब्ल्यूजे) द्वारा दायर बंदी-प्रत्यक्षीकरण याचिका सुन रही थी.
शीर्ष अदालत ने केयूडब्ल्यूजे की याचिका सुनते हुए कप्पन को आजादी दी कि वह उनकी गिरफ्तारी के खिलाफ या किसी भी अन्य राहत के लिए उचित फोरम का रुख कर सकते हैं. अदालत ने स्वस्थ होने के बाद कप्पन को मथुरा की जेल भेज दिया जायेगा.
बुधवार रात को न्यायालय की वेबसाइट पर अपलोड किए गए इस आदेश में पीठ ने कहा, ‘हमारा मानना है कि गिरफ्तार शख्स की अस्थिर सेहत को देखते हुए उन्हें पर्याप्त और प्रभावी चिकित्सा सहायता मुहैया कराने और उनकी सेहत से जुड़ी सभी आशंकाओं को खत्म करने की आवश्यकता है.’
उसने कहा, ‘सिद्दीक कप्पन को उचित इलाज के लिए राम मनोहर लोहिया अस्पताल या अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) या दिल्ली के किसी अन्य सरकारी अस्पताल में भर्ती कराना न्याय के हित में होगा. इस संबंध में जरूरी कार्रवाई जल्द से जल्द की जानी चाहिए.’
योगी सरकार की तरफ से पेश हुए मेहता ने इससे पहले शीर्ष अदालत के सुझाव का यह कहते हुए पुरजोर विरोध किया कि इसी तरह के कई आरोपियों का राज्य के अस्पतालों में इलाज हो रहा है और कप्पन को खास तवज्जो महज इसलिए नहीं मिलनी चाहिए कि मामले में याचिकाकर्ता पत्रकारिता संबंधी एक निकाय है.
उन्होंने कहा कि जिन लोगों के कई अंग काम नहीं कर रहे, मथुरा जेल का अस्पताल उन लोगों का भी इलाज कर रहा है.
इस पर पीठ ने कहा, ‘हम स्वास्थ्य के मुद्दे तक सीमित हैं. यह राज्य के हित में भी है कि आरोपी को बेहतर इलाज मिले.’
पीठ ने कहा कि वह कप्पन के लिए बेहतर स्वास्थ्य सुविधा देने के सीमित अनुरोध पर सुनवाई कर रही है. अदालत ने यह भी कहा, ‘हमारा कहना है कि एक विचाराधीन कैदी को भी बिना किसी शर्त के ‘जीने का मौलिक अधिकार’ सबसे कीमती है.’
पीठ ने कहा, ‘चूंकि जेल के अन्य कैदियों को भी ऐसा ही इलाज मिल रहा है जैसा कि गिरफ्तार पत्रकार को, तो यह हमें रोक नहीं सकता. यह कहने की जरूरत नहीं है कि जैसे ही सिद्दीक कप्पन स्वस्थ हो जाएंगे और डॉक्टर उन्हें फिट घोषित कर देंगे तो उन्हें अस्पताल से छुट्टी दी जाए, उन्हें वापस मथुरा जेल भेजा जाएगा.’
शीर्ष न्यायालय ने कप्पन की मेडिकल रिपोर्टों पर गौर करने के बाद यह आदेश दिया. मेडिकल रिपोर्टों में कहा गया है कि कप्पन 21 अप्रैल 2021 को कोरोना वायरस से संक्रमित पाए गए, उन्हें बुखार था और बाथरूम में गिरने के कारण उन्हें चोटें भी आई.
इसमें कहा गया है कि कप्पन को केएम मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया जहां पता चला कि उन्हें मधुमेह, दिल की बीमारी, रक्तचाप की समस्या हैं और उन्हें चोट भी आई है. हालांकि इसके बाद पेश की गई मेडिकल रिपोर्ट में बताया कि वह कोविड-19 से संक्रमित नहीं हैं.
गौरतलब है कि बीते सप्ताह कप्पन की पत्नी रैहांथ कप्पन की ओर से उनके वकील ने नए मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना को पत्र लिखकर कप्पन को मथुरा मेडिकल कॉलेज से तत्काल रिहा कर मथुरा जेल भेजने की मांग की है. उन्होंने कहा है कि सिद्दीक कप्पन को कोरोना पॉजिटिव पाए गए थे और उनकी हालत काफी गंभीर है.
पत्रकार की पत्नी ने दावा किया था कि कप्पन को मथुरा के मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल में ‘जानवर की तरह खाट से बांधा गया है और न तो वे खाना खा पा रहे हैं और न ही टॉयलेट जा सके हैं.’ उन्होंने यहां तक कहा था कि यदि तत्काल कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया जाता है तो उनकी असमय मृत्यु हो सकती है.
बुधवार को केयूडब्ल्यूजे और कप्पन की पत्नी की तरफ से पेश अधिवक्ता विल्स मैथ्यूज ने कहा कि कप्पन को समुचित दवा और उपचार के निर्देश के साथ मामले में अंतरिम जमानत दी जा सकती है.
इस दौरान उत्तर प्रदेश सरकार ने कप्पन को जंजीर से बांध कर रखने के आरोपों से इनकार किया.
इससे पहले मेहता ने शीर्ष अदालत के कप्पन को इलाज के लिए बाहर भेजने के सुझाव का यह कहते हुए कड़ा विरोध किया था कि 42 वर्षीय कप्पन कोविड-19 से पीड़ित नहीं हैं और उन्हें मथुरा की जेल के अस्पताल में इलाज दिया जा सकता है.
उन्होंने पीठ से अपने आदेश में यह भी जिक्र करने को कहा कि दिल्ली में कप्पन के लिए अस्पताल का बेड खाली किया जाए क्योंकि सारे अस्पताल पहले ही मरीजों से भरे हुए हैं. हालांकि शीर्ष अदालत ने इस मुद्दे पर कुछ भी कहने से इनकार कर दिया.
ज्ञात हो कि कप्पन को पिछले साल पांच अक्टूबर को हाथरस जाते समय गिरफ्तार किया गया था. हाथरस में एक दलित युवती से चार लोगों ने कथित तौर पर बलात्कार किया था और उपचार के दौरान उनकी मौत हो गई थी.
पुलिस ने तब कहा था कि उसने चार लोगों को मथुरा में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के साथ कथित संबंध के आरोप में गिरफ्तार किया और चारों की पहचान केरल के मलप्पुरम के सिद्दीक कप्पन, उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के अतीक-उर-रहमान, बहराइच के मसूद अहमद और रामपुर के मोहम्मद आलम के तौर पर हुई है.
उनके खिलाफ मांट थाने में आईपीसी की धारा 124ए (राजद्रोह), 153ए (दो समूहों के बीच वैमनस्य बढ़ाने), 295 ए (धार्मिक भावनाएं आहत करने), यूएपीए की धारा 65, 72 और आईटी एक्ट की धारा 76 के तहत मामला दर्ज किया गया था.
उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर दावा किया है कि सिद्धीक कप्पन पत्रकार नहीं हैं, बल्कि ‘अतिवादी’ संगठन पीएफआई के सदस्य हैं.
यूपी सरकार का कहना है कि कप्पन पत्रकारिता की आड़ में जातीय तनाव पैदा करने और कानून व्यवस्था बिगाड़ने की निश्चित योजना के तहत हाथरस जा रहे थे.
केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स ने बीते 20 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर मांग की थी कि कप्पन की मौजूदा स्वास्थ्य हालात को ध्यान में रखते हुए उन्हें दिल्ली के एम्स में ट्रांसफर किया जाए.
पत्र में कहा गया है कि हैरानी की बात ये है कि पिछले साल छह अक्टूबर 2020 को दायर याचिका को सात बार सूचीबद्ध किया गया है, लेकिन अभी तक उन्हें रिहा करने पर सुनवाई नहीं हुई और ये लंबित ही है.
पिछले साल 16 नवंबर को शीर्ष अदालत ने पत्रकार की गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका पर उत्तर प्रदेश से जवाब दाखिल करने को कहा था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)