अदालत ने कोविड-19 से मौत पर पीड़ित परिवारों को मुआवज़े संबंधी याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा

शीर्ष अदालत दो अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. इन याचिकाओं में केंद्र तथा राज्यों को 2005 के आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत संक्रमण के कारण जान गंवाने वाले लोगों के परिवार को चार लाख रुपये अनुग्रह राशि देने और मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने के लिए समान नीति अपनाने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है.

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दिल्ली के लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल के बाहर कोविड-19 से एक महिला की मौत के बाद शोक संतप्त परिवार. (फोटोः राॅयटर्स)

शीर्ष अदालत दो अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. इन याचिकाओं में केंद्र तथा राज्यों को 2005 के आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत संक्रमण के कारण जान गंवाने वाले लोगों के परिवार को चार लाख रुपये अनुग्रह राशि देने और मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने के लिए समान नीति अपनाने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है.

दिल्ली के लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल के बाहर कोविड-19 से एक महिला की मौत के बाद शोक संतप्त परिवार. (फोटोः राॅयटर्स)
दिल्ली के लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल के बाहर कोविड-19 से एक महिला की मौत के बाद शोक संतप्त परिवार. (फोटोः राॅयटर्स)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना वायरस संक्रमण के कारण जान गंवाने वाले लोगों के परिवार को चार लाख रुपये अनुग्रह राशि दिए जाने का अनुरोध करने वाली याचिका पर केंद्र सरकार से सोमवार को जवाब मांगा और कहा कि घातक वायरस से मरने वालों के मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने के लिए एक समान नीति अपनाई जाए.

जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एमआर शाह की अवकाशकालीन पीठ ने केंद्र को कोविड-19 से मरने वाले लोगों के मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने के भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के दिशा-निर्देशों की जानकारी उपलब्ध कराने का निर्देश दिया. पीठ ने कहा कि इसके लिए समान नीति अपनाई जाए.

शीर्ष अदालत दो अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. इन याचिकाओं में केंद्र तथा राज्यों को 2005 के आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत संक्रमण के कारण जान गंवाने वाले लोगों के परिवार को चार लाख रुपये अनुग्रह राशि देने और मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने के लिए समान नीति अपनाने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है.

पीठ ने कहा कि जब तक कोई आधिकारिक दस्तावेज या मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने के लिए एक समान नीति नहीं होगी, जिसमें कहा गया हो कि मृत्यु का कारण कोविड था, तब तक मृतक के परिवार वाले किसी भी योजना के तहत, अगर ऐसी कोई है, मुआवजे का दावा नहीं कर पाएंगे.

जस्टिस शाह ने मामले में केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल ऐश्वर्या भाटी से पूछा कि क्या मृत्यु प्रमाण पत्र पर कोई समान नीति है, क्योंकि मृत्यु की कई स्थितियां हैं, जहां कारण कोविड नहीं बताया गया है.

पीठ ने कहा कि राज्य सरकार के अधिकारी कह रहे हैं कि वे आईसीएमआर के दिशानिर्देशों का पालन कर रहे हैं.

पीठ ने कहा, ‘तो आप (केंद्र) हमारे समक्ष आईसीएमआर का दिशानिर्देश प्रस्तुत करें और हमें कोविड-19 से मरने वालों के मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने पर किसी भी समान नीति के बारे में बताएं.’

जस्टिस शाह ने कहा कि कई मामलों में मौत फेफड़ों के संक्रमण या हृदय की समस्या के कारण होती है लेकिन हो सकता है कि यह कोविड-19 के कारण हुआ हो और मृत्यु प्रमाण पत्र में इसका उल्लेख नहीं होता है.

पीठ ने कहा, ‘कोविड-19 से जान गंवाने वाले लोगों के परिजनों को यदि कोई मुआवजा दिए जाने की व्यवस्था होती है, तो ऐसे में लोगों को दर-दर भटकना पड़ेगा. यह परिवार के लिए उचित नहीं है, क्योंकि मौत का कारण अक्सर अलग बताया जाता है, जबकि मौत वास्तव में कोविड के कारण हुई होती है.’

पीठ ने केंद्र को अपना रुख स्पष्ट करने का निर्देश देते हुए मामले की आगे की सुनवाई के लिए 11 जून की तारीख तय की.

सुनवाई की शुरुआत में अधिवक्ता गौरव कुमार बंसल ने कहा कि आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 12 (iii) के तहत प्रत्येक परिवार जिसके सदस्य की आपदा के कारण मृत्यु हुई है, वह चार लाख रुपये की अनुग्रह राशि का हकदार है.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, उन्होंने कहा कि गृह मंत्रालय ने अधिनियम की धारा 12 (iii) को ध्यान में रखते हुए 8 अप्रैल 2015 को एक आदेश जारी किया है, जिसके द्वारा राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष और राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष से मानदंडों और सहायता की संशोधित सूची जारी की गई थी.

बंसल ने कहा कि चूंकि कोविड-19 को आपदा घोषित किया गया है और 8 अप्रैल 2015 के आदेश के अनुसार, प्रत्येक परिवार जिसके सदस्य की इस आपदा के कारण मृत्यु हुई है, वह चार लाख रुपये की अनुग्रह राशि का हकदार है.

याचिकाकर्ता रीपक कंसल की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एसबी उपाध्याय, जिन्होंने भी इसी तरह की याचिका दायर की है, ने कहा कि कोविड-19 के कारण बड़ी संख्या में मौतें हो रही हैं. मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने की आवश्यकता है और उसके बाद वे धारा 12 (iii) के तहत मुआवजे का दावा कर सकते हैं.

पीठ ने उपाध्याय से पूछा कि क्या किसी राज्य द्वारा ऐसा कोई भुगतान किया गया है.

उपाध्याय ने जवाब दिया कि ऐसा कोई भुगतान नहीं किया गया है, क्योंकि मुआवजे की योजना पिछले साल खत्म हो गई और इसी तरह की योजना को लागू करने की आवश्यकता है, क्योंकि बहुत से परिवारों को महामारी के कारण नुकसान हुआ है.

उन्होंने कहा कि 14 मार्च 2020 को एक पत्र जारी किया गया था, जिसमें कहा गया था कि आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत लाभ देने के लिए आपदा को प्राकृतिक होना चाहिए और कोविड को आपदा के रूप में अधिसूचित किया गया है.

इसके बाद पीठ ने कहा कि सरकार को इस संबंध में एक योजना के साथ आना चाहिए.

कंसल ने अपनी याचिका में यह भी कहा है कि राज्यों को निर्देश दिया जाना चाहिए कि वे कोविड-19 के पीड़ितों और उनके परिवार के सदस्यों की देखभाल करने के अपने दायित्व को पूरा करें.

याचिका में आरोप लगाया गया है कि अस्पताल उन लोगों का पोस्टमॉर्टम नहीं कर रहे हैं, जिनकी कोविड-19 से मौत हो रही है.

याचिका में कहा गया है, ‘समाज के लोगों के अभिभावक होने के तौर पर राज्य और उसके विभिन्न अंगों पर आपदा के पीड़ितों और उनके परिवार के सदस्यों की देखभाल करने के लिए एक संवैधानिक और कानूनी दायित्व है.’

मालूम हो कि देश में बीते एक दिन में कोविड-19 के 222,315 नए मामले सामने आने के बाद संक्रमण के कुल मामलों की संख्या बढ़कर 26,752,447 हो गई. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, देश में संक्रमण से 4,454 और लोगों की मौत के बाद मृतक संख्या बढ़कर 303,720 हो गई.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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