साल 2018 में राज्य में भाजपा के सत्ता में आने के बाद से ही पत्रकारों पर हमले हो रहे हैं और बीते सितंबर में मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब के पत्रकारों को धमकी देने के बाद से इसमें इज़ाफ़ा हुआ है. 2020 में पत्रकारों पर हमले के 17 मामले दर्ज किए हुए जबकि 2021 में अब तक ऐसे सात मामले दर्ज किए गए हैं.
अगरतलाः त्रिपुरा पुलिस का कहना है कि उन्होंने 2020 के बाद से राज्य में पत्रकारों पर हमलों के संबद्ध में 24 मामले दर्ज किए हैं.
इसके साथ ही पुलिस ने हमलावरों के खिलाफ कार्रवाई करने और मीडियाकर्मियों को सुरक्षा प्रदान कराने का वादा किया है.
राज्य में 2018 के बाद से ही भाजपा में सत्ता के आने के बाद से ही पत्रकारों पर हमले हो रहे हैं और पिछले साल 11 सितंबर को मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब के पत्रकारों को धमकी देने के बाद से ही इसमें इजाफा हुआ है.
असेंबली ऑफ जर्नलिस्ट्स (एओजे) के अनुमानों के मुताबिक, 2020 से मीडियाकर्मियों पर 28 हमले हुए हैं.
हाल ही में स्थिति का जायजा लेते हुए पुलिस सहायक निरीक्षक (कानून एवं व्यवस्था) सुब्रत चक्रबर्ती ने प्रेस बयान में कहा कि पिछले कुछ दिनों में मीडिया के कुछ वर्गों में पत्रकारों और मीडियाकर्मियों के खिलाफ हिंसा की बढ़ती घटनाओं और अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई करने में पुलिस की असफलता पर चिंता व्यक्त करने वाली खबरें सामने आई.
चक्रवर्ती ने कहा कि पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) ने इस तरह की खबरों को गंभीरता से लिया है और जिला पुलिस अधीक्षकों के साथ स्थिति की समीक्षा की है.
चक्रवर्ती ने कहा, ‘पुलिस महानिदेशक वीएस यादव ने ऐसी खबरों को काफी गंभीरता से लिया है. पांच जून को डीजीपी की अध्यक्षता में सभी जिला पुलिस अधीक्षकों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये हुई बैठक में ऐसे मामलों की विस्तृत समीक्षा की गई है. जिला पुलिस अधीक्षकों के साथ हुई चर्चा के दौरान पता चला कि 2020 में 17 मामले दर्ज हैं और अब तक 2021 में ऐसे सात मामले दर्ज हो चुके हैं.’
उन्होंने कहा कि दर्ज किए गए 24 मामलों में से 16 मामलों में चार्जशीट दाखिल की गई, तीन में विभिन्न पक्षों के बीच समझौता हो गया जबकि बाकी बचे पांच की अभी भी जांच जारी है.
पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘इनमें से कुछ मामलों में जिनमें पीड़ित शरारती तत्वों की पहचान करने में सक्षम नहीं थे, पुलिस द्वारा उनकी पहचान कराने के लिए हरसंभव प्रयास किए गए और परिणामस्वरूप जांच के दौरान 15 से अधिक लोगों की पहचान की गई और उनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल किए गए.’
हालांकि, उन मामलों में गिरफ्तारी की गई, जहां निर्धारित प्रक्रिया और आरपीसीसी की लागू धाराओं के अनुसार सजा सात साल से अधिक थी. उन्होंने कहा कि अन्य मामलों में नोटिस जारी किए गए हैं.
बयान के मुताबिक, ‘मीडिया के मामलों से निपटने के लिए कोई अलग कानून नहीं है और इन सभी मामलों में केवल संहिताबद्ध प्रक्रिया का पालन किया गया था. किसी भी मीडियाकर्मी ने कभी भी मामलों के उचित तरीके से रजिस्ट्रेशन नहीं होने या जांच के बारे में शिकायत नहीं की. इससे पता चलता है कि शिकायतकर्ता पुलिस की कार्रवाई से संतुष्ट है.’
बयान में कहा गया, ‘यहां तक कि उन मामलों में जहां शिकायतें प्रथमदृष्टया अतिशयोक्तिपूर्ण पाई गई, ऐसे मामलों में शिकायत के कंटेंट के अनुरूप आईपीसी की संबद्ध धाराओं में मामले दर्ज किए गए. सभी जिलों के पुलिस अधीक्षकों ने बैठक के दौरान अवगत कराया कि जब भी मामला उनके संज्ञान में लाया गया, जिला पुलिस ने त्वरित कार्रवाई की है.’
पुलिस का यह बयान वरिष्ठ पत्रकार और एओजे के उपाध्यक्ष समीर धर पर 29 मई को भाजपा समर्थकों के हमले के बाद आया है.
पिछले साल 11 सितंबर को मुख्यमंत्री बिप्लब देब ने दक्षिण त्रिपुरा के सबरूम में पहले विशेष आर्थिक जोन (एसईजेड) की नींव रखते हुए पत्रकारों पर कोरोना के प्रसार पर रिपोर्टिंग के बारे में लोगों को भ्रमित करने और अति उत्साहित होने का आरोप लगाया था.
उन्होंने कहा था, ‘कुछ अखबार लोगों को भ्रमित करने की कोशिश कर रहे हैं. इतिहास उन्हें माफ नहीं करेगा. त्रिपुरा के लोग उन्हें माफ नहीं करेंगे और मैं बिप्लब देब उन्हें माफ नहीं करूंगा.’
उनके इस बयान की राज्य के पत्रकारों ने निंदा की थी और चेतावनी दी थी कि इस तरह के बयानों से मीडियाकर्मियों के खिलाफ हमले हो सकते हैं. ठीक इसी तरह सरकार के खिलाफ आवाज उठा रहे पत्रकारों पर भी हमले हुए.
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