सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना काल में अभिभावक को खोने वाले या बेसहारा, अनाथ हुए बच्चों की देखभाल और सुरक्षा के लिए कई निर्देश जारी करते हुए कहा कि अनाथ बच्चों को गोद लिए जाने का आमंत्रण देना कानून के प्रतिकूल है, क्योंकि केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण की भागीदारी के बिना गोद लेने की अनुमति नहीं है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को कोविड-19 महामारी के दौरान अनाथ हुए बच्चों को अवैध तौर पर गोद लिए जाने में संलिप्त गैर-सरकारी संगठनों और व्यक्तियों के खिलाफ ‘कड़ी कार्रवाई’ करने का निर्देश दिया है.
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने शीर्ष अदालत को बीते सोमवार को सूचित किया था कि एक अप्रैल 2020 से पांच जून 2021 तक विभिन्न राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा सौंपे गए आंकड़ों के मुताबिक कोरोना काल में 30,071 बच्चों के माता या पिता या माता-पिता दोनों की मौत हो गई है.
आयोग ने कहा कि महामारी के चलते इनमें से 26,176 बच्चों ने अपने माता-पिता में से किसी एक को खो दिया और 3,621 बच्चे अनाथ हो गए, जबकि 274 को उनके रिश्तेदारों ने भी त्याग दिया.
न्यायालय ने अभिभावक को खोने वाले या बेसहारा, अनाथ हुए बच्चों की देखभाल और सुरक्षा के लिए कई निर्देश जारी करते हुए कहा कि अनाथ बच्चों को गोद लिए जाने का आमंत्रण देना कानून के प्रतिकूल है, क्योंकि केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (सीएआरए) की भागीदारी के बिना गोद लेने की अनुमति नहीं है.
जस्टिस एलएन राव और जस्टिस अनिरूद्ध बोस की पीठ ने कहा कि किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) कानून, 2015 के प्रावधानों और केंद्र, राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के कार्यक्रमों का व्यापक प्रचार करना चाहिए, जिससे प्रभावित बच्चों का फायदा हो.
The break-up given in the affidavit filed by the NCPCR is that there are 3,621 orphans, 26,176 children who have lost one parent and 274 children who have been abandoned. pic.twitter.com/zsksKlEbtL
— The Leaflet (@TheLeaflet_in) June 8, 2021
शीर्ष अदालत ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को कोविड-19 या किसी अन्य कारण से पिछले साल मार्च से अपने अभिभावकों को खो देने वाले या अनाथ हो गए बच्चों की पहचान करने का काम जारी रखने तथा बिना किसी देरी के इस संबंध में आंकड़े एनसीपीसीआर की वेबसाइट पर मुहैया कराने का आदेश दिया है.
दरअसल आयोग ने अदालत के समक्ष यह चिंता जाहिर की थी कि उसे पिछले कुछ महीनों में ऐसी कई शिकायतें मिली हैं, जिसमें कई निजी संगठनों और लोगों द्वारा ऐसे बच्चों का आंकड़ा एकत्र किए जाने के आरोप लगाए गए हैं. ऐसे संगठन और लोग द्वारा प्रभावित बच्चों और परिवारों को मदद की पेशकश की गई है.
एनसीपीसीआर ने कहा कि ऐसे लोग/संगठन गोद लेने संबंधी कानून का पालन किए बिना बच्चा गोद लेने के इच्छुक परिवारों को इन्हें सौंप रहे हैं.
आयोग ने कहा कि यहां किशोर न्याय अधिनियम, 2015 के तहत दी गई प्रक्रिया का पालन किए बिना ये सब किया जा रहा है. इस कानून के तहत बच्चे गोद लेने के लिए एक विस्तृत प्रक्रिया निर्धारित की गई है.
पीठ ने कहा, ‘बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) को सुनिश्चित करना चाहिए कि बच्चा जिस वित्तीय लाभ का हकदार है, वह उसे बिना किसी देरी के मुहैया कराया जाए. राज्य, केंद्रशासित प्रदेशों को अवैध तरीके से गोद लेने में संलिप्त पाए गए गैर सरकारी संगठन या व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया जाता है.’
कोर्ट ने राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेशों को यह भी निर्देश दिया कि वे ऐसे एनजीओ को अनाथ हुए बच्चों के नाम पर फंड इकट्ठा करने से रोकें, जो पीड़ित बच्चों की पहचान उजागर कर उन्हें गोद देने की योजना बना रहे हैं.
पीठ ने जिला बाल सुरक्षा इकाइयों (डीसीपीयू) को बच्चे के माता-पिता या अभिभावकों की मृत्यु के बारे में पता चलने पर प्रभावित बच्चों और उनके अभिभावकों से तुरंत संपर्क करने और बच्चे की देखभाल के लिए मौजूदा अभिभावक की इच्छा का पता करने को कहा है.
इससे पहले शीर्ष अदालत ने प्राधिकारियों को अनाथ बच्चों को भोजन और अन्य जरूरी सहायता तुरंत मुहैया कराने को कहा था.
पीठ ने डीसीपीयू से प्रभावित बच्चों को भोजन, दवा, कपड़े और अन्य जरूरतें पूरी करना सुनिश्चित करने को कहा.
इसके अलावा कोर्ट ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को सरकारी के साथ निजी स्कूलों में ऐसे बच्चों की शिक्षा जारी रखने के लिए प्रावधान करने का निर्देश दिया.
अदालत ने कहा कि बच्चों की पहचान का काम चाइल्डलाइन (1098), स्वास्थ्य अधिकारियों, पंचायती राज संस्थाओं, पुलिस प्राधिकार, गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) और अन्य के जरिये किया जा सकता है.
पीठ ने कोविड-19 के कारण अनाथ हुए बच्चों के लिए हाल में शुरू ‘पीएम-केयर्स फॉर चिल्ड्रेन’ योजना के विवरण के संबंध में केंद्र को चार हफ्ते के भीतर एक हलफनामा दाखिल करने का समय दिया.
वकील गौरव अग्रवाल द्वारा दाखिल एक अर्जी पर सुनवाई करते हुए पीठ ने ये निर्देश दिए. बाल देखभाल केंद्रों में बच्चों के बीच संक्रमण फैलने के संबंध में स्वत: संज्ञान लिए गए एक मामले में अग्रवाल न्याय मित्र (एमिकस क्यूरी) के तौर पर अदालत का सहयोग कर रहे हैं.
मालूम हो कि पिछले महीने 29 मई को केंद्र ने कोविड-19 महामारी से अनाथ बच्चों के लिए कई कल्याणकारी योजना की घोषणा की थी. ऐसे बच्चों को 18 साल की उम्र में मासिक छात्रवृत्ति और 23 साल की उम्र में पीएम केयर्स से 10 लाख रुपये का फंड मिलेगा.
इसके अलावा सरकार द्वारा उन बच्चों की नि:शुल्क शिक्षा भी सुनिश्चित की जाएगी. उच्च शिक्षा के लिए उन्हें शिक्षा ऋण दिलवाने में मदद की जाएगी और पीएम केयर्स फंड इस लोन पर ब्याज का भुगतान करेगा.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)