राज्य के तीन ज़िलों में अतिक्रमित भूमि से कई परिवारों को हाल में हटाए जाने का संदर्भ देते हुए मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने अल्पसंख्यक समुदाय से परिवार नियोजन अपनाने की अपील की थी. विपक्षी कांग्रेस, एआईयूडीएफ तथा अल्पसंख्यक छात्र निकाय ने इस बयान को दुर्भाग्यपूर्ण, तुच्छ व भ्रामक क़रार दिया है.
गुवाहाटी: विपक्षी कांग्रेस और एआईयूडीएफ तथा अल्पसंख्यक छात्र निकाय ने असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा की उस कथित टिप्पणी को शुक्रवार को दुर्भाग्यपूर्ण, तुच्छ एवं भ्रामक करार दिया जिसमें उन्होंने अल्पसंख्यक समुदाय को उचित परिवार नियोजन नीति अपनाने के लिए कहा था.
राज्य के तीन जिलों में अतिक्रमण की गई भूमि से कई परिवारों को हाल में हटाए जाने का संदर्भ देते हुए मुख्यमंत्री ने गुरुवार को अल्पसंख्यक समुदाय से यह नीति अपनाने की अपील की थी.
उन्होंने कहा था कि बढ़ती आबादी से गरीबी आती है, रहने के लिए क्षेत्र सीमित होता है और इसके परिणाम स्वरूप भूमि अतिक्रमण होता है.
प्रदेश कांग्रेस ने दावा किया कि असम में जनसंख्या विस्फोट पर शर्मा की टिप्पणी, निश्चित तौर पर गलत सूचना पर आधारित एवं भ्रामक है जबकि ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) ने दावा किया कि आबादी में बढ़ोतरी की दर अल्पसंख्यकों की तुलना में कुछ अन्य समुदायों में कहीं अधिक है.
ऑल असम अल्पसंख्यक छात्र संघ (एएएमएसयू) ने कहा कि जनसंख्या की समस्या को उचित शिक्षा एवं लोगों के लिए उचित स्वास्थ्य सुविधाओं को सुनिश्चित कर सुलझाया जा सकता है.
2011 की जनगणना के मुताबिक, असम की कुल 3.12 करोड़ की जनसंख्या में मुस्लिम आबादी 34.22 प्रतिशत है और वे कई जिलों में बहुसंख्यक हैं. जबकि ईसाइयों की आबादी राज्य के कुल लोगों की 3.74 प्रतिशत है. वहीं, सिख, बौद्धों और जैन की संख्या एक प्रतिशत से भी कम है.
असम प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने कहा कि यह किसी मुख्यमंत्री के लिए अत्यंत अशोभनीय है जिससे अपने राज्य के जनसांख्यिकी तथ्यों से भली-भांति परिचित होने की उम्मीद की जाती है.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, असम प्रदेश कांग्रेस कमेटी की प्रवक्ता बबिता शर्मा ने कहा कि केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा दिसंबर 2020 में जारी किए गए नवीनतम राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के अनुसार, पिछले पांच वर्षों में अधिकांश भारतीय राज्यों में प्रजनन दर (टीएफआर) में गिरावट आई है.
उन्होंने कहा कि एनएचएफएस के अनुसार, असम में महिलाओं की प्रजनन दर 2015-16 में 2.2 प्रतिशत थी, जो 2020-21 में घटकर 1.9 प्रतिशत हो गई है जिसका अर्थ है कि राज्य की भविष्य की जनसंख्या अभी की तुलना में कम होगी.
शर्मा ने कहा, ‘हालांकि, मुख्यमंत्री सीएए के लागू होने के कारण बांग्लादेश और पाकिस्तान के लोगों के अप्रवास के कारण भविष्य में होने वाले जनसंख्या विस्फोट का जिक्र कर रहे हैं, तो शायद उनकी चिंता जायज है.’
कांग्रेस गठबंधन के सहयोगी एआईयूडीएफ ने भी जनसंख्या विस्फोट के लिए अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने वाले मुख्यमंत्री के बयान को दुर्भाग्यपूर्ण और उस पद पर बैठे व्यक्ति के लिए अनुचित करार दिया.
एआईयूडीएफ के प्रवक्ता और विधायक अमीनुल इस्लाम ने कहा कि असम में जनसंख्या वृद्धि राष्ट्रीय विकास से कम है और कुछ अन्य राज्यों की तुलना में भी कम है.
उन्होंने दावा किया कि अध्ययनों से पता चला है कि कई अनुसूचित जातियों और जनजातियों की विकास दर अल्पसंख्यक समुदाय की तुलना में अधिक है.
इसके अलावा उन्होंने कहा कि सामाजिक वैज्ञानिकों ने बताया है कि गरीबी, अशिक्षा, जागरूकता की कमी मुख्य रूप से जनसंख्या वृद्धि के लिए जिम्मेदार थी और राज्य सरकार को एक विशेष समुदाय को लक्षित करने के बजाय इन मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘समुदाय के लोगों ने पंचायतों के चुनाव और सरकारी नौकरियों में दो बच्चों के मानदंड के मामले में सरकार का समर्थन किया है.’
इस्लाम ने कहा कि मुख्यमंत्री को जनसंख्या की समस्या को हल करने के लिए सभी समुदायों को विश्वास में लेना चाहिए और यह तभी हो सकता है जब सरकार शिक्षा सुविधाओं, रोजगार के अवसरों को सुनिश्चित करे और अन्य पिछड़े क्षेत्रों में सामाजिक जागरूकता पैदा करने के उपाय करे.
वहीं, एएएमएसयू के अध्यक्ष रेजाउल इस्लाम सरकार ने कहा कि मुख्यमंत्री का यह बयान कि अल्पसंख्यक महिलाओं को शिक्षित किया जाना चाहिए ताकि वे कई बच्चे पैदा न करें, इसमें ईमानदारी की कमी है और मूर्खतापूर्ण है.
उन्होंने कहा, ‘हम पिछले पांच वर्षों से समुदाय के सदस्यों के बीच जागरूकता पैदा करने के लिए काम कर रहे हैं और आजकल कोई भी 10 से 12 बच्चों को जन्म नहीं देता है. उचित शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं सुनिश्चित करके जनसंख्या की समस्या का समाधान किया जा सकता है.’
सरकार ने कहा, ‘शर्मा ने पहले शिक्षा मंत्री के रूप में काम किया था. अगर उनका वास्तव में इस मुद्दे को हल करने और विकास सुनिश्चित करने का इरादा था, तो वे निरक्षरता और गरीबी को दूर करने के उपाय शुरू कर सकते थे.’
एएमएसयू प्रमुख ने कहा कि मुख्यमंत्री को ब्रह्मपुत्र नदी के कटाव से बेघर हुए 30,000 से अधिक लोगों को भूमि उपलब्ध कराने पर भी ध्यान देना चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘यदि लोगों को भूमि प्रदान की जाती है, तो उन्हें मंदिर, जंगल या किसी अन्य भूमि पर कब्जा करने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ेगा, जहां से बाद में उन्हें बेदखल कर दिया जाएगा. कोई भी अतिक्रमण के पक्ष में नहीं है, लेकिन उनके पास रहने के लिए भूमि और एक घर होना चाहिए.’
परिवार नियोजन की नीति वाले बयान का कोई सांप्रदायिक उद्देश्य नहीं: शर्मा
असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को परिवार नियोजन की नीति अपनाने की सलाह देने वाले अपने बयान का बचाव करते हुए कहा कि यह गरीबी उन्मूलन के लिए जरूरी है और इसके पीछे कोई सांप्रदायिक उद्देश्य नहीं है.
शर्मा ने शुक्रवार को यहां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत से मुलाकात करने के बाद संवाददाताओं से यह बात कही.
उन्होंने कहा, ‘असम में प्रवासी मुसलमान बहुत गरीब हैं और आम तौर पर उनके पास जमीन भी कम होती है. लेकिन समस्या यह है कि एक या दो पीढ़ियों में एक परिवार में बच्चों का औसत अनुपात छह से 12 तक है. कई परिवारों में यह 20 तक भी है.’
शर्मा ने कहा कि पीढ़ी दर पीढ़ी बच्चों की संख्या अधिक होने से भविष्य की पीढ़ियों के हिस्से में बहुत ही कम जमीन आती है, जिस कारण गरीबी बढ़ती है और उसका प्रभाव स्कूलों और अस्पतालों पर पड़ता है.
मुख्यमंत्री ने कहा कि बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण गरीबी उन्मूलन का कार्यक्रम सफल नहीं हो पाता है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)