केंद्र के तीन नए कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ लगभग सात महीनों से किसान दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं. 40 यूनियनों के प्रधान संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा कि सिंघू, टिकरी और गाज़ीपुर बॉर्डर पर किसान 26 जून को ‘कृषि बचाओ, लोकतंत्र बचाओ दिवस’ के रूप में मनाएंगे.
नई दिल्ली: संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने गुरुवार को कहा कि पिछले साल लागू किए गए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ उनके आंदोलन के 26 जून को सात महीने पूरे होने पर उत्तर प्रदेश के किसानों सहित बड़ी संख्या में कृषकों के दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शनकारियों के बीच शामिल होने की उम्मीद है.
एसकेएम ने बयान में कहा गया है कि सिंघू, टिकरी और गाजीपुर बॉर्डर पर किसान 26 जून की तैयारी कर रहे हैं और वे इसे ‘कृषि बचाओ, लोकतंत्र बचाओ दिवस’ के रूप में मनाएंगे.
पिछले साल सितंबर में लागू किए गए केंद्रीय कानूनों के खिलाफ आंदोलन की अगुवाई कर रहे 40 किसान संघों के सामूहिक संगठन ने कहा, ‘पूरे देश में 26 जून को ‘कृषि बचाओ, लोकतंत्र बचाओ दिवस’ के रूप में मनाने की तैयारी चल रही है.’
किसान नवंबर से दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डालकर कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं. साथ ही उनकी मांग है कि फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी के लिए एक नया कानून बनाया जाए.
बयान में कहा गया, ‘ग्रामीण किसान मजदूर समिति (जीकेएस) के नेतृत्व में प्रदर्शनकारियों का एक बड़ा काफिला राजस्थान के गंगानगर से शाहजहांपुर सीमा के लिए रवाना हुआ है. इसी तरह, बीकेयू (टिकैत) के नेतृत्व में बागपत और सहारनपुर के किसानों के गाजीपुर बॉर्डर पर आने की उम्मीद है.’
बयान में कहा गया है कि 26 जून को देश भर में किसान, यूनियनों के नेतृत्व में कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन करेंगे. इससे पहले गुरुवार को विभिन्न विरोध स्थलों पर किसानों ने 15 वीं शताब्दी के भारतीय कवि और संत कबीर दास की जयंती मनाई.
एसकेएम ने बयान में कहा, ‘सांप्रदायिक सद्भाव इस आंदोलन की पहचान है और संत कबीर की जयंती बड़े सम्मान के साथ मनाई गई.’
बयान में कहा गया है कि किसान ‘सामाजिक बहिष्कार और विभिन्न स्थानों पर भाजपा व सहयोगी दलों के नेताओं को काले झंडे दिखाते हुए विरोध’ जारी रखे हुए हैं.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, हाल ही में हरियाणा भाजपा नेता सोनाली फोगट को हिसार में स्थानीय ग्रामीणों के काले झंडों के साथ विरोध और नारेबाजी का सामना करना पड़ा था, जहां किसान महीनों से विरोध कर रहे हैं.
गौरतलब है कि केंद्र सरकार की ओर से कृषि से संबंधित तीन विधेयक– किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक, 2020, किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्य आश्वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक, 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020 को बीते साल 27 सितंबर को राष्ट्रपति ने मंजूरी दे दी थी, जिसके विरोध में छह महीने से अधिक समय से किसान प्रदर्शन कर रहे हैं.
किसानों को इस बात का भय है कि सरकार इन अध्यादेशों के जरिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) दिलाने की स्थापित व्यवस्था को खत्म कर रही है और यदि इसे लागू किया जाता है तो किसानों को व्यापारियों के रहम पर जीना पड़ेगा.
दूसरी ओर केंद्र में भाजपा की अगुवाई वाली मोदी सरकार ने इन अध्यादेशों को ‘ऐतिहासिक कृषि सुधार’ का नाम दे रही है. उसका कहना है कि वे कृषि उपजों की बिक्री के लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था बना रहे हैं.
अब तक किसानों यूनियनों और सरकार के बीच 11 दौर की वार्ता हो चुकी है, लेकिन गतिरोध जारी है, क्योंकि दोनों पक्ष अपने-अपने रुख पर कायम हैं.
पिछले महीने किसानों के विभिन्न 40 संगठनों को मिलाकर बनाए गए संयुक्त किसान मोर्चा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गतिरोध पर बातचीत शुरू करने का आग्रह करते हुए पत्र लिखा था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)