असमः गो-संरक्षण विधेयक पेश, मंदिर व मठ के पास गोमांस की खरीद-बिक्री पर होगी रोक

असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा द्वारा पेश गो- संरक्षण विधेयक के तहत हिंदू, जैन, सिख बहुल्य इलाकों और गोमांस न खाने वाले अन्य समुदायों वाले क्षेत्रों में गोमांस की खरीद और बिक्री पर प्रतिबंध का प्रावधान है. साथ ही मंदिर या वैष्णव मठ के पांच किलोमीटर के दायरे में  गोमांस खरीदने-बेचने की मनाही है.

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मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा. (फोटो साभार: फेसबुक/Himanta Biswa Sarma)

असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा द्वारा पेश गो- संरक्षण विधेयक के तहत हिंदू, जैन, सिख बहुल्य इलाकों और गोमांस न खाने वाले अन्य समुदायों वाले क्षेत्रों में गोमांस की खरीद और बिक्री पर प्रतिबंध का प्रावधान है. साथ ही मंदिर या वैष्णव मठ के पांच किलोमीटर के दायरे में  गोमांस खरीदने-बेचने की मनाही है.

मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा. (फोटो साभार: फेसबुक/Himanta Biswa Sarma)

गुवाहाटीः असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने मवेशियों के संरक्षण के लिए सोमवार को विधानसभा में एक नया विधेयक पेश किया. इस विधेयक के तहत हिंदुओं, जैन, सिख बहुल्य इलाकों और गोमांस नहीं खाने वाले अन्य समुदायों वाले क्षेत्रों में गोमांस की खरीद और बिक्री पर प्रतिबंध का प्रावधान है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इस विधेयक के तहत मंदिर या वैष्णव मठ के पांच किलोमीटर के दायरे में भी गोमांस की खरीद एवं बिक्री पर मनाही है.

यह असम मवेशी संरक्षण विधेयक 2021 का बहुत ही अनूठा पहलू है, जिसका उद्देश्य मवेशियों के वध, सेवन, अवैध परिवहन को विनियमित करना है.

यदि यह विधेयक पारित हो जाता है, तो असम मवेशी संरक्षण अधिनियम, 1950, को निरस्त कर दिया जाएगा, जिसे लेकर हिमंता बिस्वा शर्मा ने पहले कहा था कि मवेशियों के वध, मांस के सेवन और परिवहन को विनियमित करने के लिए पर्याप्त कानूनी प्रावधानों का अभाव है.

बता दें कि कई राज्यों जहां मवेशी वध रोधी कानून हैं, वहां असम की तरह विशेष इलाकों में इनकी बिक्री और खरीद पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया है.

इस विधेयक पर प्रतिक्रिया देते हुए विपक्ष के नेता देबब्रत सैकिया ने कहा कि विधेयक में कई इलाकों को लेकर समस्याएं हैं और इनकी कानूनी विशेषज्ञों द्वारा जांच की जा रही है.

उन्होंने कहा, ‘उदाहरण के लिए बीफ को लेकर पांच किलोमीटर के दायरे का नियम. पत्थर रखकर आधारशिला रखी जा सकती है और मंदिर किसी के भी द्वारा कहीं भी बन सकता है इसलिए यह बहुत अस्पष्ट है. इससे सांप्रदायिक तनाव बढ़ सकता है.’ विपक्ष ने कहा कि वह इसमें संशोधनों पर जोर देंगे.

ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) के विधायक अमिनुल इस्लाम ने कहा, ‘यह गायों के संरक्षण और उनके सम्मानों को लेकर बिल नहीं है. ऐसा मुस्लिमों की भावनाएं आहत करने और समुदायों का ध्रुवीकरण करने के लिए किया गया. हम इसका विरोध करते हैं और इसमें संशोधन को लेकर जोर देंगे.’

असम का प्रस्तावित विधेयक विभिन्न प्रकार के मवेशियों के बीच अंतर नहीं करता. यह बैल, गाय, बछिया, बछड़ा, भैंस और उसके कटड़ों सहित सभी मवेशियों पर लागू होगा.

राजस्थान और मध्य प्रदेश में मवेशी वध रोधी अधिनियम के तहत सिर्फ गाय और उसकी संतानों को ही शामिल किया गया है, इसमें भैंस शामिल नहीं है.

असम का यह विधेयक बिना वैध दस्तावेजों के मवेशियों के अंतर्राज्यीय परिवहन को प्रतिबंधित करता है.

1950 के अधिनियम के मुताबिक, ‘राज्य में 14 वर्ष से अधिक आयु की या काम करने में अयोग्य या प्रजनन में अक्षम मवेशियों के वध की मंजूरी है. इस तरह के मवेशियों को स्थानीय पशु चिकित्सा अधिकारियों द्वारा वध के लिए उपयुक्त प्रमाण पत्र दिए जाने की जरूरत है. नए कानून के तहत सभी मवेशियों के लिए इसी तरह के मंजूरी प्रमाणपत्र की जरूरत होगी. हालांकि, इसमें कहा गया है कि उम्र की परवाह किए बिना गोकशी नहीं की जा सकती.’

विधेयक की धारा सात मवेशियों के परिवहन पर प्रतिबंध में कहा गया है कि बिना वैध परमिट के असम से अन्य राज्यों में मवेशियों के परिवहन पर प्रतिबंध है. मवेशियों को राज्य के भीतर भी बिना दस्तावेजों के लाया-ले जाया नहीं जा सकता.

हालांकि, जिले के भीतर चराई या अन्य कृषि या पशुपालन उद्देश्यों के साथ-साथ पंजीकृत पशु बाजारों से मवेशियों के परिवहन के लिए किसी अनुमति की जरूरत नहीं है.

प्रस्तावित विधेयक में पुलिसकर्मियों (सब इंस्पेक्टर की रैंक से नीचे नहीं) या सरकार द्वारा अधिकृत किसी भी शख्स को अपने अधिकारक्षेत्र में किसी भी परिसर में घुसकर जांच करने की शक्तियां दी गई हैं, जहां उस पुलिसकर्मी या अधिकारी को यह लगे कि इस विधेयक का उल्लंघन किया गया है.

इसका उल्लंघन करने पर न्यूनतम तीन साल की कैद (अधिकतम आठ साल) और तीन लाख रुपये (अधिकतम पांच लाख) तक का जुर्माना या दोनों लगाया जा सकता है. बार-बार इसका उल्लंघन करने वालों के लिए यह सजा दोगुनी कर दी जाएगी.

वहीं, 1950 के अधिनियम में यह शक्ति सिर्फ पशु चिकित्सक या सरकार द्वारा नियुक्त पंजीकृत अधिकारी को ही दी गई थी.