असम विधानसभा में राज्य में मुठभेड़ों की बढ़ती संख्याओं पर विपक्ष के सवालों का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने बताया कि गत दो महीनों के दौरान पुलिस के साथ हुई मुठभेड़ में 15 कथित अपराधी मारे गए, जबकि 23 अन्य घायल हुए. ये मुठभेड़ कथित अपराधियों द्वारा पुलिस के हथियार छीनकर हमला करने और भागने की कोशिश के दौरान हुई.
गुवाहाटी: असम में हाल में हुई मुठभेड़ों की आलोचना पर पलटवार करते हुए मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने बृहस्पतिवार को कहा कि राज्य पुलिस को कानून के दायरे में रहकर अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई करने की पूरी आजादी है.
विधानसभा में शून्यकाल के दौरान नेता प्रतिपक्ष देबब्रत सैकिया ने हाल में राज्य में मुठभेड़ की बढ़ती संख्याओं के मुद्दे पर चर्चा की शुरुआत की. चर्चा का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री ने सभी विधायकों से अपील की कि वे संदेश दें कि सदन किसी भी प्रकार के अपराध के खिलाफ है.
उन्होंने कहा, ‘सदन का नेता होने के नाते मैं असम पुलिस को उसके कार्य, खासतौर पर मेरे कार्यकाल के कार्य के लिए बधाई देता हूं. मैं डीजीपी (पुलिस महानिदेशक) को कहना चाहता हूं कि वे निर्दोष लोगों को प्रताड़ित नहीं करे. जहां तक कानून के तहत अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई करने की बात है तो उसकी आपको पूरी आजादी है.’
मुख्यमंत्री ने सदन को अवगत कराया कि गत दो महीनों के दौरान पुलिस के साथ हुई मुठभेड़ में 15 कथित अपराधी मारे गए, जबकि 23 अन्य घायल हुए. ये मुठभेड़ कथित अपराधियों द्वारा पुलिस के हथियार छीनकर हमला करने और भागने की कोशिश के दौरान हुई.
उन्होंने कहा, ‘राज्य का मुख्यमंत्री होने के नाते मैं पूरी जिम्मेदारी से कहना चाहता हूं कि गो तस्करी, मादक पदार्थों का कारोबार, मानव तस्करी, महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध और हर अपराध के खिलाफ हमारी शून्य बर्दाश्त की नीति है और इनसे धर्म और जाति से परे जाकर निपटा जाएगा.’
असम के गृह विभाग का भी प्रभार संभाल रहे मुख्यमंत्री ने कहा कि अपराधियों को समझना होगा कि राज्य में ऐसी सरकार है, जो आत्मविश्वास से लबरेज है और अगर अपराधी हमला करने या भागने की कोशिश करते हैं तो वह कानून के दायरे में रहकर मुहतोड़ जवाब देने की इच्छाशक्ति रखती है.
शर्मा ने बताया कि गत दो महीने में मवेशियों की तस्करी के मामले में कुल 504 लोगों को गिरफ्तार किया गया है और इनमें से केवल चार आरोपी भागने की कोशिश के दौरान पुलिस की गोली से घायल हुए हैं.
उन्होंने कहा, ‘वह पुलिस है, जो इन अपराधियों को अस्पताल ले गई, इलाज कराया और उसके बाद अदालत में पेश किया. हमारी मुख्य कोशिश अपराधियों को सजा दिलाना है.’
उन्होंने कहा कि आलोचक कानून और मानवाधिकार का हवाला दे रहे हैं, लेकिन वही कानून और संविधान पुलिसकर्मियों को आत्मरक्षा करने और अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकार देता है.
शर्मा ने दावा किया कि दशकों से पुलिस मुठभेड़ हो रही हैं. उन्होंने कहा, ‘सहानुभूति अहम है लेकिन गलत जगह सहानुभूति बहुत ही घातक है. अगर यहां से संदेश गया कि पुलिस ने गलत किया तो वे फिर से सो जाएंगे.’
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, शर्मा कहा, ‘मैं डीजीपी से कहना चाहता हूं कि निर्दोष लोगों पर अत्याचार न करें. जब तक आप कानून के अनुसार अपराधियों के खिलाफ लड़ते हैं, तब तक आपको कार्रवाई करने की पूरी आजादी है.’
उन्होंने मुठभेड़ों की स्थिति का उदाहरण देते हुए कहा कि मारे गए लोगों में छह संदिग्ध दिमासा नेशनल लिबरेशन आर्मी (डीएनएलए) आतंकवादी और दो यूनाइटेड पीपुल्स रिवोल्यूशनरी फ्रंट (यूपीआरएफ) के कथित आतंकवादी थे, जो भारी हथियारों से लैस थे और पुलिस पर गोलियां चला रहे थे.
उन्होंने कहा, ‘एक आरपीएफ कर्मी था, जो एक ड्रग नेटवर्क का सरगना था. जब पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया, तो वह जानता था कि यह उसकी जिंदगी का अंत है. इसलिए उसने एक पुलिसकर्मी की सर्विस रिवॉल्वर छीन ली और फिर पुलिस को उस पर गोली चलानी पड़ी.’
शर्मा ने कहा, ‘मोरीगांव में आरोपी ने नौ साल की बच्ची की बलात्कार करके हत्या कर दी. वह इंसान नहीं हैं. वह जानता था कि उसे कड़ी सजा दी जाएगी और इसलिए उसने भागने की कोशिश की. पुलिस को उस पर गोलियां चलानी पड़ीं.’
शर्मा ने कहा, ‘यह पुलिस ही है जो अपराधियों को फिर से अस्पताल ले जाती है, उनका इलाज करती है और फिर उन्हें अदालत में पेश करती है. हमारा मुख्य प्रयास अपराधियों को दोषी ठहराना और दंडित करना है.’
उन्होंने कहा कि आलोचक कानूनों और मानवाधिकारों का हवाला दे रहे हैं, लेकिन एक ही कानून और संविधान एक पुलिस वाले को खुद का बचाव करने और अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई करने की शक्ति देता है.
इससे पहले सैकिया ने मीडिया रिपोर्ट को रेखांकित करते हुए कहा कि मुठभेड़ में कथित अपराधियों की मौत होने के बाद कानून के तहत जांच के आदेश नहीं दिए गए.
उन्होंने कहा, ‘हम अपराध को रोकने के लिए उठाए गए कदम का स्वागत करते हैं लेकिन कानून का पालन नहीं किया गया तो संवैधानिक व्यवस्था ध्वस्त होने जैसा होगा. पुलिस को प्राथमिकी दर्ज करनी चाहिए और जरूरी फौजदारी प्रक्रिया का अनुपालन करना चाहिए. मुख्यमंत्री का पुलिस सम्मेलन में दिया गया बयान संविधान विरोधी था.’
गौरतलब है कि पांच जुलाई को सभी पुलिस थानों के प्रभारी अधिकारियों के साथ पहली आमने-सामने की हुई बैठक में मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने कहा था कि अगर अपराधी हिरासत से भागने या पुलिस पर हमला करने के लिए हथियार छीनने की कोशिश करते हैं तो मुठभेड़ पैटर्न होना चाहिए.
इसके बाद असम मानवाधिकार आयोग ने स्वत: संज्ञान लेते हुए सात जुलाई को राज्य सरकार को गत दो महीने में हुईं उन मुठभेड़ों की परिस्थितियों की जांच कराने के आदेश दिए थे, जिनमें कथित अपराधी की या तो मौत हो गई थी या घायल हुए थे.
वहीं, असम के रहने वाले दिल्ली के एक वकील ने दो महीने पहले हिमंता बिस्वा शर्मा के नेतृत्व वाली सरकार के सत्ता में आने के बाद से हुईं कई मुठभेड़ों को लेकर असम पुलिस के खिलाफ राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) में शिकायत दर्ज कराई थी.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)