संयुक्त किसान मोर्चा ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में आंदोलन को तेज़ करने के लिए चार चरणों में आंदोलन की योजना बनाई है. पहले चरण में राज्यों में आंदोलन में सक्रिय संगठनों के साथ संपर्क और समन्वय स्थापित किया जाएगा. दूसरे चरण में मंडलवार किसान कन्वेंशन और ज़िलेवार तैयारी बैठक होगी. तीसरे चरण में पांच सितंबर को मुज़फ़्फ़रनगर में किसानों की महापंचायत आयोजित की जाएगी और चौथे चरण में मंडल मुख्यालयों पर महापंचायत होगी.
लखनऊ: बीते आठ महीनों से कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर किसान आंदोलन की अगुवाई कर रहे संयुक्त किसान मोर्चा ने बीते सोमवार को राज्यों में आंदोलन को तेज करने के लिए ‘मिशन यूपी’ और ‘मिशन उत्तराखंड’ कार्यक्रमों की घोषणा की, जहां अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं.
मोर्चा ने पांच सितंबर को मुजफ्फरनगर में महारैली और उत्तर प्रदेश राज्य के सभी मंडल मुख्यालयों पर महापंचायत आयोजित करने की घोषणा की है. ‘मिशन यूपी’ पांच सितंबर को मुजफ्फरनगर में एक महापंचायत के साथ शुरू होगा.
किसान नेताओं का कहना है कि मोर्चा का उद्देश्य किसानों और लोगों तक पहुंचना है और भाजपा के खिलाफ अभियान चलाना है. संयुक्त किसान मोर्चा ने उत्तर प्रदेश में अपने आंदोलन के लिए चार चरणों की रणनीति बनाई है.
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ स्थित प्रेस क्लब में संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले आयोजित पत्रकार वार्ता में भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत, जय किसान आंदोलन के प्रोफेसर योगेंद्र यादव, राष्ट्रीय किसान मजदूर महासंघ के शिवकुमार कक्का जी, जगजीत सिंह दल्लेवाल और डॉक्टर आशीष मित्तल समेत कई नेताओं ने सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और उसके सहयोगी दलों के कार्यक्रमों का विरोध और उनके नेताओं का बहिष्कार करने के ऐलान के साथ आंदोलन के अगले कार्यक्रमों पर विस्तार से चर्चा की.
राकेश टिकैत ने कहा, ‘तीन किसान विरोधी कानूनों को रद्द करने तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी की मांग को लेकर चल रहा ऐतिहासिक किसान आंदोलन आठ माह पूरे कर चुका है. इन आठ महीनों में किसानों के आत्मसम्मान और एकता का प्रतीक बना यह आंदोलन अब किसान ही नहीं देश के सभी संघर्षशील वर्गों का लोकतंत्र बचाने और देश बचाने का आंदोलन बन चुका है.’
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, राकेश टिकैत ने कहा कि ‘मिशन यूपी’ 5 सितंबर को मुजफ्फरनगर में एक महापंचायत के साथ शुरू होगा.
उन्होंने आरोप लगाया कि उत्तर प्रदेश एक पुलिस राज्य बनने की ओर बढ़ रहा है और चेतावनी दी कि अगर सरकार ने ठीक से काम नहीं किया तो प्रदर्शनकारी दिल्ली की तरह लखनऊ को घेर लेंगे.
संयुक्त किसान मोर्चा ने पुष्टि की कि वह किसी भी राज्य में चुनाव नहीं लड़ेगा और कहा कि उसके नेताओं का राजनीतिक मकसद नहीं है.
किसान नेताओं ने कहा कि अब आंदोलन को और तीव्र, सघन तथा असरदार बनाने के लिए संयुक्त किसान मोर्चा ने इसे राष्ट्रीय आंदोलन के अगले पड़ाव के रूप में मिशन उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड से शुरू करने का फैसला किया है.
उन्होंने दावा किया कि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में आंदोलन की धार तेज होगी और इस मिशन का उद्देश्य होगा कि पंजाब और हरियाणा की तरह उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भी हर गांव किसान आंदोलन का केंद्र बने, कोने-कोने में किसान पर हमलावर कॉरपोरेट सत्ता के प्रतीकों को चुनौती दी जाए और किसान विरोधी भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगियों का हर कदम पर विरोध हो.
उनका कहना था कि आज भारतीय खेती और किसानों को कॉरपोरेट और उनके राजनीतिक दलालों से बचाना है.
संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं ने आह्वान किया कि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में सभी टोल प्लाजा को नि:शुल्क किया जाए, पूंजीपतियों के व्यावसायिक प्रतिष्ठानों पर विरोध प्रदर्शन आयोजित किए जाएं तथा भाजपा और उसके सहयोगी दलों के कार्यक्रमों का विरोध और उनके नेताओं का बहिष्कार किया जाए.
उन्होंने बताया कि इस मिशन को कार्य रूप देने के लिए पूरे उत्तर प्रदेश में बैठकों, यात्राओं और रैलियों का सिलसिला शुरू किया जाएगा.
संयुक्त किसान मोर्चा ने चार चरणों में आंदोलन को विभक्त किया है जिसके तहत पहले चरण में राज्यों में आंदोलन में सक्रिय संगठनों के साथ संपर्क और समन्वय स्थापित किया जाएगा और दूसरे चरण में मंडलवार किसान कन्वेंशन और जिलेवार तैयारी बैठक होगी.
तीसरे चरण में पांच सितंबर को मुजफ्फरनगर में देश भर से किसानों की ऐतिहासिक महापंचायत आयोजित की जाएगी और चौथे चरण में सभी मंडल मुख्यालयों पर महापंचायत का आयोजन किया जाएगा.
संयुक्त किसान मोर्चा ने यह भी फैसला किया है कि इस मिशन के तहत राष्ट्रीय मुद्दों के साथ-साथ किसानों के स्थानीय मुद्दे भी उठाए जाएंगे.
गौरतलब है कि केंद्र सरकार की ओर से कृषि से संबंधित तीन विधेयक- किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक, 2020, किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्य आश्वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक, 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020 को बीते साल 27 सितंबर को राष्ट्रपति ने मंजूरी दे दी थी, जिसके विरोध में पिछले आठ महीने से किसान प्रदर्शन कर रहे हैं.
किसानों को इस बात का भय है कि सरकार इन अध्यादेशों के जरिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) दिलाने की स्थापित व्यवस्था को खत्म कर रही है और यदि इसे लागू किया जाता है तो किसानों को व्यापारियों के रहम पर जीना पड़ेगा.
दूसरी ओर केंद्र में भाजपा की अगुवाई वाली मोदी सरकार ने इन अध्यादेशों को ‘ऐतिहासिक कृषि सुधार’ का नाम दे रही है. उसका कहना है कि वे कृषि उपजों की बिक्री के लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था बना रहे हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)