एक सोशल मीडिया पोस्ट में विहिप नेता चंपत राय पर ज़मीन हड़पने के आरोप लगाने वाले पत्रकार विनीत नारायण और अन्य के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया गया है. इस संबंध में दायर हलफनामे में लापरवाही का उल्लेख करते हुए अदालत ने पुलिस की आलोचना करते हुए कहा कि इससे पुलिस विभाग, विशेष रूप से उच्च अधिकारियों में गिरते मानकों का पता चलता है.
नई दिल्लीः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक पत्रकार के खिलाफ दर्ज एफआईआर के संबंध में दायर हलफनामे में लापरवाही का उल्लेख करते हुए इसके गिरते मानकों को लेकर उत्तर प्रदेश पुलिस की आलोचना की.
द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर प्रदेश पुलिस ने एक सोशल मीडिया पोस्ट के संबंध में 20 जून को स्वतंत्र पत्रकार विनीत नारायण और दो अन्य के खिलाफ मामला दर्ज किया था.
यह सोशल मीडिया पोस्ट नारायण ने लिखी थी, जिसमें विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के वरिष्ठ नेता के भाई पर बिजनौर में जमीन हड़पने का आरोप लगाया गया था. आईपीसी की कई धाराओं के तहत उन पर मामला दर्ज किया गया था.
दरअसल पत्रकार नारायण ने 19 जून को सोशल मीडिया पोस्ट में वीएचपी के उपाध्यक्ष और श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय के भाई संजय बंसल पर सामाजिक कार्यकर्ता अलका लाहोटी द्वारा संचालित गौशाला से 20,000 वर्ग मीटर जमीन हड़पने का आरोप लगाया था.
नारायण ने यूट्यूब शो लाउड क्राइसिस में इस कथित जमीन धोखाधड़ी पर बात की थी.
बंसल ने इस सोशल मीडिया पोस्ट को साजिश और झूठ बताते हुए पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी, जिसके बाद पुलिस ने नारायण, लाहोटी और रजनीश (नारायण के साथ कथित तौर पर गौशाला जाने वाला उसका दोस्त) के खिलाफ इस आधार पर मामला दर्ज किया था कि उनकी पोस्ट से धर्म के आधार पर घृणा पैदा हुई.
इसके अलावा उन पर झूठे साक्ष्य गढ़ने, धोखाधड़ी और अतिक्रमण का भी आरोप लगाया गया था. वहीं, इस मामले में बंसल को क्लीन चिट दे दी गई थी.
इस मामले की 28 जुलाई को हुई सुनवाई पर जस्टिस सूर्य प्रकाश केसरवानी और जस्टिस पीयूष अग्रवाल की पीठ ने बिजनौर के पुलिस अधीक्षक धर्मवीर सिंह को नोटिस जारी कर उन्हें हलफनामा दायर कर यह बताने को कहा था कि क्या आरोपियों के खिलाफ लगाए गए आरोप न्यायोचित हैं.
इसके बाद पुलिस द्वारा दायर हलफनामे पर प्रतिक्रिया देते हुए अदालत ने पांच अगस्त को कहा था, ‘पुलिस अधीक्षक का नोटरीकृत हलफनामा जवाबी हलफनामा है, जिसमें प्रतिवादी (एसपी) का नाम उजागर नहीं है और इसे बहुत ही लापरवाह तरीके से आज दायर किया गया है, जिससे प्रथमदृष्टया पुलिस विभाग विशेष रूप से उच्च अधिकारियों में गिरते मानकों का पता चलता है.’
अदालत ने कहा कि पुलिस का व्यवहार प्रथमदृष्टया निंदनीय है.