मणिपुर मानवाधिकार आयोग ने राज्य से ‘अशांत क्षेत्र’ का दर्जा वापस लेने के लिए कहा

मणिपुर मानवाधिकार आयोग की कार्यकारी अध्यक्ष ने कहा कि आयोग ने आफ्स्पा की आड़ में सुरक्षा बलों द्वारा किए गए मानवाधिकारों के घोर उल्लंघन को ध्यान में रखते हुए ‘अशांत क्षेत्र’ का दर्जा वापस लेने की सिफ़ारिश की है. ‘अशांत क्षेत्र’ का दर्जा दिए जाने से आफ्स्पा लागू करने की अनुमति मिलती है, जो कथित तौर पर सैन्य बलों को विशेष सुरक्षा देता है.

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(फाइल फोटो: रॉयटर्स)

मणिपुर मानवाधिकार आयोग की कार्यकारी अध्यक्ष ने कहा कि आयोग ने आफ्स्पा की आड़ में सुरक्षा बलों द्वारा किए गए मानवाधिकारों के घोर उल्लंघन को ध्यान में रखते हुए ‘अशांत क्षेत्र’ का दर्जा वापस लेने की सिफ़ारिश की है. ‘अशांत क्षेत्र’ का दर्जा दिए जाने से आफ्स्पा लागू करने की अनुमति मिलती है, जो कथित तौर पर सैन्य बलों को विशेष सुरक्षा देता है.

(फाइल फोटो: रॉयटर्स)

इम्फाल: मणिपुर मानवाधिकार आयोग (एमएचआरसी) ने जमीन पर कई मानवाधिकार उल्लंघनों का हवाला देते हुए मंगलवार को राज्य सरकार से पूरे राज्य से ‘अशांत क्षेत्र’ का दर्जा हटाने के लिए कहा.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, ‘अशांत क्षेत्र’ दर्जा वापस लेने की सिफारिश करते हुए आयोग ने मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) और विशेष सचिव (गृह) को तीन महीने के अंदर की गई कार्रवाई की रिपोर्ट जमा करने का निर्देश दिया.

यह प्रगति फॉरेंसिक स्टडी एंड प्लेसमेंट के अध्यक्ष टीएच. सुरेश द्वारा दायर की गई याचिका के फैसले के कारण हुई है. शिकायतकर्ता ने आयोग से ‘अशांत क्षेत्र’ का दर्जा हटाते हुए आफ्स्पा (सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून) को हटाने की सिफारिश की थी.

आयोग ने कहा कि शिकायत के आधार पर उसने जून 2020 में बचाव पक्ष (राज्य) को अपना जवाब दाखिल करने के लिए कहते हुए कार्यवाही शुरू की है. हालांकि, ऐसा देखा गया कि ऐसा करने के लिए लगातार याद दिलाए जाने के बावजूद राज्य जवाब दाखिल करने में विफल रहा.

कार्यवाही के दौरान आयोग ने कहा कि इसने केंद्र द्वारा गठित समितियों द्वारा प्रस्तुत की गईं सिफारिशों को रेखांकित किया है, जिन्होंने मणिपुर और अन्य पूर्वोत्तर क्षेत्रों में विवादास्पद सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (आफ्स्पा), 1958 को लागू करने के प्रतिकूल प्रभाव की ओर इशारा किया था.

इसके अलावा आयोग ने आफ्स्पा के खिलाफ जनता द्वारा विभिन्न विरोधों को भी नोट किया, जिसमें मणिपुर में कांगला पश्चिमी गेट के सामने महिलाओं द्वारा नग्न विरोध, इरोम शर्मिला द्वारा की गई भूख हड़ताल, मनोरमा के बलात्कार और नृशंस हत्या के खिलाफ विरोध, पेबम चितरंजन का आत्मदाह और मानवाधिकार समूहों और कार्यकर्ताओं द्वारा विभिन्न प्रदर्शन शामिल हैं.

आयोग की कार्यकारी अध्यक्ष खैदम मणि ने कहा कि आयोग ने आफ्स्पा की आड़ में सुरक्षा बलों द्वारा किए गए मानवाधिकारों के घोर उल्लंघन को ध्यान में रखते हुए ‘अशांत क्षेत्र’ का दर्जा वापस लेने की सिफारिश की है.

आफ्स्पा को कठोर और एक पुराना कानून करार देते हुए खैदम मणि ने कहा, ‘यह मणिपुर के लोगों को राजनीतिक तौर पर दबाने की कार्रवाई है. एक लोकतांत्रिक देश में ऐसी कार्रवाइयां जायज नहीं हो सकती हैं.’

अध्यक्ष ने यह भी कहा कि राज्य में व्याप्त उग्रवाद की समस्या का राजनीतिक समाधान निकालने की दिशा में आफ्स्पा को समाप्त करना एक बड़ी पहल होगी.

‘अशांत क्षेत्र’ का दर्जा दिए जाने से आफ्स्पा लागू करने की अनुमति मिलती है, जो कथित तौर पर सैन्य बलों को विशेष सुरक्षा देता है.

बता दें कि, दिसंबर 2020 में मणिपुर सरकार ने इम्फाल नगर पालिका क्षेत्र को छोड़कर पूरे राज्य में ‘अशांत क्षेत्र’ के दर्जे को एक साल के लिए बढ़ा दिया था.

सरकार के नोटिस के अनुसार, ‘अशांत क्षेत्र’ के दर्जे को बढ़ाने का फैसला इसलिए लिया गया था कि मणिपुर के राज्यपाल का यह विचार था कि विभिन्न उग्रवादी/विद्रोही समूहों की हिंसात्मक गतिविधियों के कारण मणिपुर ऐसी अशांत स्थिति में है कि नागरिक शक्ति में सैन्य बलों का इस्तेमाल आवश्यक है.

यह कानून राज्य में 1980 से लागू है और समय-समय पर आगे बढ़ाया जाता रहा है.

हालांकि, अगस्त 2004 में ओकरम इबोबी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के दौरान आफ्स्पा को इम्फाल नगर पालिका इलाके के सात विधानसभा क्षेत्रों से हटा लिया गया था. असम राइफल्स की हिरासत में थंगजाम मनोरमा के बलात्कार और हत्या के बाद राज्य में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन के बाद यह फैसला लिया गया था.