दिल्ली की तीस हज़ारी अदालत ने कहा छात्रों का इकट्ठा होकर नारेबाज़ी करना अभिव्यक्ति की आज़ादी में आता है और इससे ये साफ़ नहीं होता कि उनका मक़सद फ़साद फैलाना था.
तीस हज़ारी अदालत ने रामजस कॉलेज विवाद पर सुनवाई करते हुए इस बात को स्पष्ट किया है कि नारेबाज़ी करना अभिव्यक्ति की आज़ादी में ही आता है और बिना किसी ठोस सबूत के यह कहना गलत है कि छात्र वहां फ़साद फैलने की मंशा से एकत्र हुए थे.
इस साल 22 फरवरी को दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज में एक कार्यक्रम को लेकर हुए विवाद में छात्रों के दो गुट आपस में भिड़ गए थे.
अमर उजाला में छपी ख़बर के अनुसार, अदालत में महानगर दंडाधिकारी अभिलाष मल्होत्रा के सामने याचिकाकर्ता वकील विवेक गर्ग ने पक्ष रखते हुए कहा कि इतनी बड़ी संख्या में रामजस कॉलेज के बाहर वामपंथी छात्रों का एकत्र होना सोची समझी घटना थी, जिसका मकसद फ़साद फैलाना था. उन्होंने पुलिस की रिपोर्ट का हवाला देते हुए रामजस में हुए विवाद के दौरान देश विरोधी नारे लगने की पुष्टि की.
क्राइम ब्रांच एसपी पंकज सिंह ने कहा कि उनके पास लगभग 30 रॉ फुटेज हैं जिसके आधार पर जांच चल रही है. साथ ही एटीआर (एक्शन टेकेन रिपोर्ट) और 22 फरवरी को दर्ज एफआईआर के आधार पर भी मामले की जांच चल रही है.
इससे पहले भी मेट्रोपोलिटन मेजिस्ट्रेट ने कहा जेएनयू का आरोप पत्र रामजस कॉलेज विवाद के मामले में प्रासंगिक नहीं है. ये दो अलग मामले हैं. मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट अभिलाष मल्होत्रा ने कहा था, दिल्ली पुलिस की प्राथमिकी मेरे लिए नज़ीर नहीं है. यह इस मामले में बाध्यकारी नहीं है, न ही यह सर्वोच्च न्यायालय का फैसला है. जेएनयू का आरोप पत्र इस मामले में प्रासंगिक नहीं है. यह दो अलग मामले हैं. जेएनयू मामले को डीयू के मामले के साथ नहीं मिलाइए.
इससे पहले अगस्त के महीने में दिल्ली की एक अदालत ने कहा कि बिना सत्यापन वाले अविश्वसनीय वीडियो के आधार पर देशद्रोह के आरोप नहीं लगाए जा सकते. अदालत ने यह टिप्पणी उस समय की जब उसे यहां रामजस कॉलेज में कथित राष्ट्रविरोधी नारेबाजी के फुटेज दिखाए गए.
अदालत ने शिकायतकर्ता विवेक गर्ग से कहा था, वीडियो की सत्यता स्थापित नहीं हुई. इस वीडियो का स्रोत क्या है अविसनीय सामग्री के आधार पर हम देशद्रोह का आरोप कैसे लगा सकते हैं आपको वीडियो की सत्यता को लेकर भरोसा होना चाहिए. अदालत ने कहा कि छेड़छाड़ वाले कई वीडियो चल रहे हैं जिनकी सत्यता स्थापित करने की जरूरत है.
इसी साल मई के महीने में दिल्ली उच्च न्यायालय ने पुलिस को रामजस कॉलेज में हुई हिंसा के लिए ज़िम्मेदार अपराधियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई का निर्देश दिया था.
इस साल 22 फ़रवरी को रामजस कॉलेज के अंग्रेज़ी विभाग ने ‘कल्चर ऑफ प्रोटेस्ट’ या ‘प्रतिरोध की संस्कृति’ नाम का एक कार्यक्रम आयोजित किया था, जिसमें अलग छात्र- छात्राओं, प्रोफेसरों और रंगकर्मियों को बुलाया गया था.
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के छात्रों को जेएनयू के छात्र और शोधकर्ता उमर ख़ालिद को बुलाने पार आपत्ति थी. जिसको लेकर छात्रों के दो गुटों में झड़प हो गई थी. कार्यक्रम रद्द होने के बाद छात्र-छात्राओं ने विश्वविद्यालयों के अन्य विद्यार्थियों और प्रोफेसरों के साथ मिलकर लंबा मार्च निकाला.