नॉर्थ ईस्ट डायरीः असम पुलिस गोलीबारी मामले की सीबीआई जांच के आदेश

इस हफ्ते नॉर्थ ईस्ट डायरी में असम, मणिपुर और मेघालय के प्रमुख समाचार.

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सामने आए वीडियो में असम पुलिस स्थानीयों पर फायरिंग करती दिख रही है. (साभार: स्क्रीनग्रैब)

इस हफ्ते नॉर्थ ईस्ट डायरी में असम, मणिपुर और मेघालय के प्रमुख समाचार.

असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा. (फोटो: पीटीआई)

गुवाहाटी/डिब्रूगढ़/शिलॉन्ग/इम्फाल: असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा शर्मा ने शनिवार को बताया कि दरांग जिले में हुई पुलिसिया गोलीबारी की घटना की सीबीआई जांच के आदेश दिए गए हैं.

समाचार एजेंसी एएनआई के अनुसार, पत्रकारों से बात करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा, ‘हमने मामले की सीबीआई जांच के आदेश दिए और हमें पता लगाना है कि शांति से अतिक्रमण हटाने को लेकर संगठन के साथ हुए एक स्पष्ट समझौते के बाद भी किसने दस हजार लोगों को जुटाया.’

उन्होंने आगे कहा, ’27 घायल पुलिसकर्मियों में दो या तीन मुस्लिम थे जो अस्पताल में भर्ती हैं. बेदखली का यह अभियान एक सहमति के साथ शुरू किया गया था कि भूमिहीनों को भूमि नीति के अनुसार प्रत्येक को 2 एकड़ प्रदान किया जाएगा और प्रतिनिधि राजी हुए थे. मैं वाम झुकाव वाले लोगों से अपील करता हूं कि वे असमिया लोगों की आवाज उठाएं.’

उन्होंने आगे कहा, ‘यह बेदखली अभियान जरूरी था. यह रातोंरात नहीं किया गया. कांग्रेस प्रतिनिधिमंडल मुझसे मिला था और उन्होंने भूमिहीनों को भूमि आवंटन पर सहमति व्यक्त की थी. 27,000 एकड़ भूमि का उपयोग सही तरीके से किया जाना था. एक मंदिर था, जिस पर भी लोगों ने अतिक्रमण किया था.’

उन्होंने आश्वासन दिया कि सरकार मामले को सुलझाएगी और उचित कार्रवाई करके राज्य में शांति और सद्भाव लाएगी.

इससे पहले दिन में दरांग जिले के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक रूपम फुकन ने मीडिया को संबोधित करते हुए बताया था कि स्थानीय लोगों द्वारा पुलिस पर पथराव शुरू करने के बाद ही उन्होंने कार्रवाई शुरू की.

इससे पहले हिमंता बिस्वा शर्मा ने दावा किया था कि अतिक्रमण हटाने के दौरान हुई हिंसा में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) शामिल था.

एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, मुख्यमंत्री ने इस घटना में सांप्रदायिक एंगल होने से इनकार करते हुए कहा कि घटना की वायरल हुई पुलिस फायरिंग की तस्वीरों से पूरी हकीकत का पता नहीं चलता है.

मुख्यमंत्री शर्मा ने कहा, ‘राज्य सरकार के पास स्पष्ट साक्ष्य हैं कि कुछ लोगों ने पिछले कुछ महीनों से गरीब लोगों से यह कहते हुए 28 लाख रुपये इकट्ठा किए कि वे बेदखली के खिलाफ सरकार को मनाएंगे. हमारे पास इन लोगों के नाम हैं. जब ये लोग अतिक्रमण अभियान का विरोध नहीं कर सकें तो उन्होंने लोगों को इकट्ठा कर हंगामा करना शुरू कर दिया. इस घटना में शामिल छह लोगों के नाम हमारे पास है.’

उन्होंने कहा, ‘घटना से एक दिन पहले बेदखल परिवारों के लिए खाद्य सामग्री ले जाने के नाम पर पीएफआई के सदस्यों ने अतिक्रमण वाली जगह का दौरा किया था. इसके सबूत सामने आ रहे हैं कि एक कॉलेज लेक्चरार सहित कुछ लोगों को फंसाया गया. इन्हें जांच के दायरे में लाया जाएगा. पीएफआई पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की मांग के लिए असम सरकार पहले ही केंद्र सरकार को डोजियर भेज चुकी है.’

राज्य सरकार ने गौहाटी हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त जज द्वारा घटना की न्यायिक जांच का ऐलान किया है. हालांकि जज के नाम की अभी घोषणा नहीं की गई है.

बता दें कि दरांग जिला प्रशासन ने सोमवार से लेकर अब तक 600 हेक्टेयर से अधिक जमीन खाली करा दी है और 800 परिवारों को यहां से बेदखल कर दिया है. इसके साथ ही सिपाझार में चार अवैध रूप से निर्मित धार्मिक इमारतों को भी नष्ट कर दिया है.

मालूम हो कि बीते गुरुवार को राज्य सरकार द्वारा एक कृषि प्रोजेक्ट के लिए अधिग्रहीत जमीन से कथित ‘अवैध अतिक्रमणकारियों’ को हटाने के दौरान पुलिस और स्थानीय लोगों के बीच झड़प हुई थी.

इस दौरान पुलिस की गोलीबारी में 12 साल के बच्चे सहित दो लोगों की मौत हुई है जबकि नौ पुलिसकर्मियों सहित 15 लोग घायल हुए हैं.

घटना के एक वीडियो में लाठी लिए एक शख्स को पुलिसकर्मियों की ओर दौड़ते देखा जा सकता है जबकि इस दौरान पुलिस बंदूकों और डंडों से लैस है. पुलिस फायरिंग व्यक्ति को गोली लगती है लेकिन फिर भी उसे बेरहमी से पीटा जाता है.

इस घटना में मृतकों में से एक 12 साल के शाख फरीद भी है. फरीद घटना के दिन स्थानीय पोस्ट ऑफिस से अपना आधार कार्ड लेकर घर लौट रहे थे कि तभी स्थानीय लोगों और पुलिसकर्मियों के बीच यह झड़प हुई.

कांग्रेस की मांग, पुनर्वास पैकेज की घोषणा तक अतिक्रमण हटाने का अभियान रोका जाए

कांग्रेस नेताओं ने शुक्रवार को असम के राज्यपाल जगदीश मुखी से मुलाकात की और एक उपयुक्त पुनर्वास पैकेज की घोषणा किए जाने तक दरांग के सिपाझार में अतिक्रमण हटाने का अभियान रोकने का उनसे अनुरोध किया.

पार्टी ने ज्ञापन सौंपते हुए घटना की एक मौजूदा न्यायाधीश से जांच कराने के अलावा उपायुक्त प्रभाती थाउसेन और पुलिस अधीक्षक सुशांत बिस्वा शर्मा को निलंबित करने की भी मांग की. सुशांत, राज्य के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा शर्मा के छोटे भाई हैं.

राज्य सरकार ने गुरुवार को हुई घटना की गुवाहाटी उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश से जांच कराने का आदेश दिया है, हालांकि न्यायाधीश के नाम की घोषणा की जानी अभी बाकी है.

कांग्रेस ने कहा कि हितधारकों के साथ एक सर्वदलीय बैठक फौरन बुलाई जानी चाहिए ताकि गोरोईखुटी, धालपुर और अन्य गांवों से हटाए गए लोगों के लिए पुनर्वास एवं मुआवजा कार्यक्रम की योजना बनाई जा सके.

पार्टी ने आरोप लगाया, ‘सभी नागरिकों की सेवा व रक्षा करने की शपथ लेने वाले और एक संवैधानिक पद पर आसीन मुख्यमंत्री ने निरंतर उकसाऊ बयान देकर पूर्वाग्रह के साथ काम किया है.’

कांग्रेस ने कहा कि पुलिस को गोली चलाने के लिए पूरा अधिकार देने संबंधी शर्मा के बयान ने असम को पुलिस राज्य में तब्दील करने के अलावा पुलिस कर्मियों को हत्या करने का लाइसेंस दे दिया.

कांग्रेस प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व पार्टी की प्रदेश इकाई के प्रमुख भूपेन बोरा कर रहे थे.

बोरा ने कहा, कांग्रेस अतिक्रमण हटाने के राज्य सरकार के अभियान के दौरान पुलिस गोलीबारी के सर्वाधिक बर्बर कृत्य और प्रदर्शनकारियों पर की गई अमानवीय कार्रवाई की कड़ी निंदा करती है…पुलिसकर्मियों द्वारा जिस तरह से एक प्रदर्शनकारी को बेरहमी से पीटकर मार डाला गया और इसके बाद पुलिस की मौजूदगी में मृतक (प्रदर्शनकारी) के साथ कैमरामैन द्वारा किया गया हिंसक व्यवहार वीभत्स है.

कांग्रेस ने कहा कि एक अकेले प्रदर्शनकारी को वहां मौजूद 40 से अधिक पुलिस कर्मी आसानी से काबू कर सकते थे, लेकिन बेघर हो रहे एक प्रदर्शनकारी को गोली मारना बहुत ही अमानवीय है.

पार्टी ने कहा कि पुलिस को उसे करीब से गोली मारकर उसकी हत्या करने के बजाय उसे शांत करने की कोशिश करनी चाहिए थी.

पार्टी ने मृतकों के परिजनों और घायलों को पर्याप्त मुआवजा देने के साथ-साथ बर्बर कृत्य में शामिल कैमरामैन और पुलिसकर्मियों को अनुकरणीय सजा देने की भी मांग की.

मणिपुरः हाईकोर्ट ने कहा- कोविड-19 राहत योजना के तहत ट्रांसजेंडर समुदाय को भी शामिल करें

(फोटो: रॉयटर्स)

मणिपुर हाईकोर्ट ने मंगलवार को राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वे राज्य की कोविड-19 राहत योजना में ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्यों को भी शामिल करें.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने आवेदन जमा करने की तारीख सात अगस्त से आगे बढ़ाने का भी निर्देश दिया.

बता दें कि इस योजना के तहत लाभार्थियों को 2,500-2,500 रुपये की दो किस्तों में 5,000 रुपये दिए जाएंगे.

ऑल इंडिया नूपी मानबी एसोसिएशन (एएमएनएमए) की सचिव शांता खुराई द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने यह निर्देश दिया.

दरअसल इस याचिका के तहत मुख्यमंत्री कोविड-19 प्रभावित आजीविका सहायता योजना में ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को भी शामिल करने की मांग की गई थी. बता दें के एएमएनएमए ट्रांसजेंडर समुदाय की ही संस्था है.

आदिवासी नेता की हत्या मामले में मणिपुर सरकार ने जांच समिति गठित की, 16 पुलिसकर्मी निलंबित

स्थानीय परिषद जेलियांग्रोंग बाउडी के पूर्व अध्यक्ष अथुआन अबोनमाई (फोटो साभारः फेसबुक)

मणिपुर सरकार ने तामेंगलोंग जिले में आदिवासी आधारित स्थानीय परिषद जेलियांग्रोंग बाउडी के पूर्व अध्यक्ष अथुआन अबोनमाई को अगवा कर उनकी हत्या मामले में तीन सदस्यीय जांच समिति का गठन किया है.

बता दें कि अथुआन अबोनमाई का बुधवार को बंदूक की नोंक पर अपहरण कर लिया गया था.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने शुक्रवार को संवाददाता सम्मेलन में कहा, आईजीपी (इंटेलिजेंस) के राधाश्याम सिंह की अगुवाई में समिति काम करेगी. यह समिति एक सप्ताह के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपेगी.

बता दें कि अथुआन अबोनमाई बुधवार को एक सरकारी कार्यक्रम में हिस्सा लेने आए थे. इस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री भी मौजदू थे. तामेंगलोंग में अज्ञात बदमाशों द्वारा उनके अपहरण की खबरों के बाद उनका शव पालोंग गांव के पास बरामद हुआ था.

इस घटना की कड़ी निंदा करते हुए मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने कहा कि अथुआन अबोनमाई के अपहरम और उनकी हत्या में शामिल किसी भी शख्स या समूह को बख्शा नहीं जाएगा.

मुख्यमंत्री ने बताया कि दोषियों को ढूंढने के लिए तलाशी अभियान शुरू कर दिया गया है.

उन्होंने कहा कि एक इंस्पेक्टर, सब इंस्पेक्टर और एक सहायक सब इंस्पेक्टर सहित मणिपुर पुलिस विभाग के 16 पुलिसकर्मियों को घटना के संबंध में ड्यूटी के दौरान लापरवाही बरतने के आरोप में निलंबित कर दिया गया है.

उन्होंने शोक संतप्त परिवार का दुख और पीड़ा साझा करते हुए कहा कि राज्य कैबिनेट परिजनों को अनुग्रह राशि देने पर विचार करेगी और पीड़ित परिवार को हरसंभव सहायता प्रदान कराएगी.

भाजपा सरकार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन के लिए मणिपुर के 11 विपक्षी दल साथ आए

मणिपुर में 11 विपक्षी दलों ने राज्य और केंद्र में भाजपा सरकार की नीतियों के खिलाफ 19 विपक्षी दलों द्वारा बुलाए गए राष्ट्रव्यापी आंदोलन के समर्थन में बीते सोमवार को 11 दिवसीय विरोध प्रदर्शन शुरू किया था.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, राज्य के बिष्णुपुर जिले में कांग्रेस भवन में धरना-प्रदर्शन के बाद एक जनसभा आयोजित कर विरोध शुरू किया गया. सभी 11 दलों- ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक (एआईएफबी), तृणमूल कांग्रेस, बसपा, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई), माकपा, कांग्रेस, जेडीएस, मणिपुर पीपुल्स पार्टी (एमपीपी), राकांपा, पीआरजेए और रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (आरएसपी) के प्रतिनिधियों ने प्रदर्शन में भाग लिया था.

कांग्रेस सांसद जयराम रमेश, जो मणिपुर के चुनाव पर्यवेक्षक भी हैं, ने ट्वीट कर बताया, ‘कांग्रेस सहित 11 विपक्षी दल आज (सोमवार) मणिपुर में संविधान, लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता को बचाने के लिए देशव्यापी विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए. मणिपुर के लोग दिल्ली में नरेन और इंफाल में बीरेन की विभाजनकारी राजनीति और नीतियों को हराने के लिए एकजुट हैं.’

एक जनसभा को संबोधित करते हुए मणिपुर प्रदेश कांग्रेस कमेटी (एमपीसीसी) के अध्यक्ष एन. लोकेन सिंह ने कहा कि मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से जनता बेतहाशा पीड़ा झेल रही है.

सिंह ने कहा कि भाजपा सरकार कॉरपोरेट समर्थक है, जो आम लोगों की कम परवाह करती है. उन्होंने कहा, ‘यह उचित समय है कि हम आने वाली पीढ़ियों के लिए भाजपा सरकार को हराने के लिए एकजुट हों.’

एमपीसीसी अध्यक्ष ने अर्थव्यवस्था को सुधारने में विफल रहने के लिए राज्य सरकार की भी आलोचना की. उन्होंने कहा कि राज्य की खेती और इससे संबद्ध क्षेत्रों को विकसित करने में विफल रहने के कारण अर्थव्यवस्था इस स्थिति में पहुंची है.

वहीं भाकपा मणिपुर के सचिव एल. सोतिनकुमार ने भाजपा सरकार पर आरएसएस के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए देश के संविधान, लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और संघीय ढांचे को कमजोर करने का आरोप लगाया.

विपक्षी दलों ने बताया कि इसी तरह के विरोध प्रदर्शन और बैठकें राज्य के विभिन्न हिस्सों में आयोजित की जाएंगी.

मेघालयः सात साल के प्रतिबंध के बाद कोयला खनन की लीज को मंजूरी

(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

केंद्रीय कोयला मंत्रालय ने मेघालय के पूर्वी जयंतिया हिल्स क्षेत्र में तीन कोयला ब्लॉक के लिए खनन लीज को मंजूरी दे दी है.

अधिकारियों का कहना है कि राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) ने 2014 में राज्य में कोयला खनन पर प्रतिबंध लगा दिया था.

राज्य के खनन एवं भूविज्ञान अधिकारियों के मुताबिक, ये खनन पट्टे रिमबाई गांव के स्थानीय निवासी लेबर लिंग्दोह, बिंदीहाटी गांव के दापमेन सिला को दिए गए हैं.

अधिकारियों का कहना है कि लेबर और दापमेन कोयला कारोबारी नेहलांग लिंग्दोह और थॉमस नोंगडू के सहयोगी हैं.

बयान में कहा गया कि लेबर लिंग्दोह और दापमेन सिला ने चुनावी वादे को पूरा करने के लिए मुख्यमंत्री कॉनराड के. संगमा की प्रशंसा की और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी के प्रति आभार जताया.

बयान में कहा गया, ‘कोयल खनन योजना की तैयारी जल्द से जल्द शुरू की जाएगी और हमें उम्मीद है कि 2022 के शुरुआत या मार्च 2022 तक कोयला खदानें खुलनी चाहिए और इन तीन ब्लॉक में जयंतिया हिल्स से एक बार फिर कोयला उत्पादन शुरू होना चाहिए.’

बता दें कि मेघालय में एनजीटी द्वारा कोयला खनन पर प्रतिबंध लगाने से इस सेक्टर में हजारों की संख्या में परिवार विस्थापित हो गए थे. हालांकि, बाद में सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2019 में इस प्रतिबंध को हटा दिया था.

असम के फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल ने कहा- अगस्त 2019 में प्रकाशित एनआरसी ही अंतिम

Guwahati: People show their documents after arriving at a National Register of Citizens (NRC) Seva Kendra to check their names on the final draft, in Guwahati, Saturday, Aug 31, 2019. (PTI Photo) (PTI8_31_2019_000080B)
अगस्त 2019 में गुवाहाटी के एक एनआरसी केंद्र पर अपने दस्तावेज़ दिखाते स्थानीय. (फोटो: पीटीआई)

असम में एक विदेशी न्यायाधिकरण (फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल) ने कहा है कि 31 अगस्त, 2019 को प्रकाशित राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) ‘अंतिम एनआरसी’ है. हालांकि भारत के महापंजीयक (रजिस्ट्रार जनरल) ने अभी इसे अधिसूचित नहीं किया है.

करीमगंज जिले में न्यायाधिकरण ने एक व्यक्ति को भारतीय नागरिक घोषित करते हुए कहा कि राष्ट्रीय पहचान पत्र अभी जारी किए जाने हैं ‘लेकिन इस बात में कोई संदेह नहीं है कि 2019 में प्रकाशित यह एनआरसी अंतिम एनआरसी है’.

विदेशी न्यायाधिकरण-द्वितीय, करीमगंज के सदस्य (संबद्ध) शिशिर डे ने जिले के पाथेरकांडी थाने के जमिराला गांव के बिक्रम सिंघा के खिलाफ ‘डी वोटर’ (संदिग्ध मतदाता) मामले की सुनवाई के दौरान ये टिप्पणी की. डे ने कहा कि 31 अगस्त, 2019 को प्रकाशित फाइनल एनआरसी में सिंघा का नाम आया है, जो उनकी दादी, माता-पिता और छोटे भाई के साथ उनके संबंध स्थापित करता है, जिनके नाम भी सूची में दर्ज हैं.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि इतना साक्ष्य होने से यह जरूरी नहीं है कि कानूनन उनकी नागरिकता की पुष्टि की जा सके. चूंकि उनके परिवार के अन्य लोगों का एनआरसी में नाम दर्ज है, इसलिए इसे उनकी भारतीय नागरिकता का निर्णायक सबूत माना जा सकता है.

पहले ये मामला 1999 में अवैध प्रवासी (न्यायाधिकरण द्वारा निर्धारण) अधिनियम के तहत दर्ज किया गया था. उच्चतम न्यायालय ने 2005 में उक्त कानून को रद्द कर दिया, जिसके बाद 2007 में इसे करीमगंज में विदेशी न्यायाधिकरण-प्रथम में स्थानांतरित किया गया. मामले में इस साल एक सितंबर को सुनवाई हुई.

मालूम हो कि असम के नागरिकों की तैयार अंतिम सूची यानी अपडेटेड एनआरसी 31 अगस्त, 2019 को जारी की गई थी, जिसमें 31,121,004 लोगों को शामिल किया गया था, जबकि 1,906,657 लोगों को इसके योग्य नहीं माना गया था.

इसी साल मई महीने में असम एनआरसी के समन्वयक हितेश शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में एक आवेदन दायर कर दावा किया था कि एनआरसी अपडेट करने की प्रक्रिया में कई गंभीर, मौलिक और महत्वपूर्ण त्रुटियां सामने आई हैं, इसलिए इसके पुन: सत्यापन की आवश्यकता है. सत्यापन का कार्य संबंधित जिलों में निगरानी समिति की देखरेख में किया जाना चाहिए.

एनआरसी राज्य समन्वयक शर्मा ने दावा किया था कि कई अयोग्य व्यक्तियों को सूची में शामिल कर लिया गया है, जिसे बाहर किया जाना चाहिए.

मई 2014 से फरवरी 2017 तक असम एनआरसी के कार्यकारी निदेशक रहे शर्मा को अक्टूबर 2019 में हुए प्रतीक हजेला के तबादले के बाद 24 दिसंबर 2019 को एनआरसी का राज्य समन्वयक नियुक्त किया गया था.

इससे पहले पिछले साल भी शर्मा ने गुवाहाटी हाईकोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा था कि 31 अगस्त 2019 को जारी की गई एनआरसी लिस्ट फाइनल नहीं है और अभी इसका पुन: सत्यापन किया जाना है. असम सरकार ने भी इसे ‘फाइनल एनआरसी’ नहीं माना है और इसके सत्यापन के लिए दबाव बना रही है.

बहरहाल, इस मामले में सिंघा ने अपने दादा के नाम वाले साल 1968 का एक भूमि दस्तावेज, साल 1972 से लगभग तीन दशकों तक भारतीय वायु सेना में कर्मचारी रहे अपने पिता भरत चंद्र सिंघा के साथ-साथ परिवार के अंतिम एनआरसी दस्तावेजों सहित कई दस्तावेज जमा किए थे.

राज्य सरकार के वकील शंकर चक्रवर्ती ने दलील दी कि एनआरसी दस्तावेज को ‘कानूनी रूप से वैध दस्तावेज’ नहीं माना जा सकता है.

इसके जवाब में याचिकाकर्ता के वकील मंजरी दास ने कहा कि असम में अंतिम एनआरसी को सुप्रीम कोर्ट के ‘निर्देश और निगरानी के अनुसार’ प्रकाशित किया गया था और ‘असम के लिए एनआरसी की अंतिमता या वैधता के बारे में कोई संदेह नहीं होना चाहिए.’

इस पर फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल के सदस्य डे ने कहा कि एनआरसी नागरिकता अधिनियम, 1955 और नागरिकता (नागरिकों का पंजीकरण और राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी करना) नियम, 2003 के प्रावधानों और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार तैयार किया गया था.

उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने एनआरसी को समयबद्ध तरीके से तैयार करने का निर्देश दिया था, जिसके अंतिम चरण का उल्लेख ‘अंतिम अपडेटेड एनआरसी को अंतिम रूप देने’ के रूप में किया गया था और प्रक्रिया को पूरा करने की तारीख 31 अगस्त, 2019 तय की गई थी.

डे ने कहा, ‘जिन नागरिकों के नाम अंतिम एनआरसी में शामिल किए गए हैं, उन्हें अभी तक राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी नहीं किए गए हैं. लेकिन इसमें कोई शक नहीं है कि साल 2019 में प्रकाशित यह असम एनआरसी और कुछ नहीं बल्कि फाइनल एनआरसी है.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)