वे धर्म-जाति के नाम पर बांटने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन ध्यान रहे हम एक ही हैं: राकेश टिकैत

छत्तीसगढ़ के गरियाबंद ज़िले में किसान महापंचायत को संबोधित करते हुए भाकियू नेता राकेश टिकैत ने युवाओं से भूमि, फसल और आने वाली पीढ़ी को बचाने के लिए किसानों के विरोध प्रदर्शन में शामिल होने की अपील की. उन्होंने कहा कि देश को युवाओं द्वारा क्रांति की ज़रूरत है.

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राकेश टिकैत. (फोटो: पीटीआई)

छत्तीसगढ़ के गरियाबंद ज़िले में किसान महापंचायत को संबोधित करते हुए भाकियू नेता राकेश टिकैत ने युवाओं से भूमि, फसल और आने वाली पीढ़ी को बचाने के लिए किसानों के विरोध प्रदर्शन में शामिल होने की अपील की. उन्होंने कहा कि देश को युवाओं द्वारा क्रांति की ज़रूरत है.

राकेश टिकैत. (फोटो: पीटीआई)

राजिम: भारतीय किसान संघ (भाकियू) के नेता राकेश टिकैत ने केंद्र सरकार की नीतियों की आलोचना करते हुए कहा है कि देश की पूरी संपत्ति को बिक्री के लिए रख दिया गया है और आने वाले दिनों में देश में ‘कंपनी राज’ देखने को मिलेगा.

उन्होंने यह भी कहा कि लोग धर्म-जाति के नाम पर विभाजन पर ध्यान न दें और जानें कि हम सब एक ही समुदाय- किसान से संबंध रखते हैं.

छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले के राजिम कस्बे में मंगलवार को टिकैत ने किसान महापंचायत को संबोधित किया और युवाओं से भूमि, फसल और आने वाली पीढ़ी को बचाने के लिए किसानों के विरोध प्रदर्शन में शामिल होने की अपील की.

छत्तीसगढ़ किसान मजदूर महासंघ के तत्वावधान में सैकड़ों किसानों ने इस महापंचायत में भाग लिया.

टिकैत ने कहा कि वह दिन दूर नहीं जब किसानों को अपना ​हसिया (कृषि उपकरण) छोड़कर क्रांति की ओर बढ़ना होगा. उन्होंने कहा कि हमें केंद्र की तीन कृषि कानूनों के खिलाफ लड़ना है.

उन्होंने कहा कि हम दिल्ली की सीमाओं पर पिछले 10 महीनों से विरोध कर रहे हैं और अगर हमारी मांगें पूरी नहीं की गईं तो सभी राज्यों की राजधानी में यह आंदोलन होगा.

उन्होंने कहा कि किसानों को सब्जियों और दूध सहित उनकी हर उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलना चाहिए. टिकैत ने कहा कि जब तक केंद्र कानून वापस नहीं लेता है तब तक किसानों को पीछे नहीं हटना है.

उन्होंने कहा कि आपको इस आंदोलन का समर्थन करना होगा. उन्होंने कहा कि अगर दिल्ली विरोध विफल रहता है, तब भविष्य में ऐसा कोई आंदोलन नहीं हो पाएगा.

केंद्र की नीतियों पर निशाना साधते हुए किसान नेता ने कहा कि रेलवे, हवाई अड्डे, बंदरगाह और एलआईसी (निजी हाथों को) बेचे जा रहे हैं और देश की पूरी संपत्ति को बिक्री के लिए रखा गया है.

टिकैत ने आरोप लगाया कि वह देश को लूटने आए हैं और वह चाहते हैं कि सब कुछ निजी क्षेत्रों के हाथों में चला जाए. उन्होंने दावा किया कि इससे देश जल्द ही ‘कंपनी राज’ को देखेगा.

उन्होंने कहा कि वर्तमान में किसानों को निशाना बनाया जा रहा है तथा अगला निशाना मीडिया होगा.

टिकैत ने किसी का नाम लिए बगैर कहा कि वह देश को जाति और धर्म के आधार पर बांटने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन आपको उनकी बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए और केवल एक ही बात जाननी चाहिए कि हम सभी एक ही समुदाय के हैं, वह समुदाय किसान है.

उन्होंने युवाओं से किसानों के प्रदर्शन में शामिल होने का आह्वान करते हुए कहा कि युवाओं को सोशल मीडिया के माध्यम से आंदोलन को जन-जन तक ले जाना होगा. देश को युवाओं द्वारा क्रांति की जरूरत है.

उन्होंने कहा कि इस आंदोलन को युवाओं को ट्विटर, फेसबुक, यूट्यूब और अन्य ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के जरिये आगे बढ़ाना होगा.

किसान महापंचायत को सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव, मेधा पाटकर और संयुक्त किसान मोर्चा के अन्य नेताओं ने भी संबोधित किया. इस महापंचायत में पंजाब और हरियाणा के किसानों ने भी बड़ी संख्या में हिस्सा लिया.

पिछले वर्ष सितंबर माह में संसद में तीन कृषि कानूनों को पारित किया गया था. केंद्र सरकार ने इन कृषि कानूनों को कृषि क्षेत्र में बड़े सुधारों के रूप में पेश किया है, लेकिन किसान संघ के नेता पिछले वर्ष नवंबर माह से इन कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे है.

गौरतलब है कि केंद्र सरकार की ओर से कृषि से संबंधित तीन विधेयक- किसान उपज व्‍यापार एवं वाणिज्‍य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक, 2020, किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्‍य आश्‍वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक, 2020 और आवश्‍यक वस्‍तु (संशोधन) विधेयक, 2020 को बीते साल 27 सितंबर को राष्ट्रपति ने मंजूरी दे दी थी, जिसके विरोध में दस महीने से अधिक समय से किसान प्रदर्शन कर रहे हैं.

किसानों को इस बात का भय है कि सरकार इन अध्यादेशों के जरिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) दिलाने की स्थापित व्यवस्था को खत्म कर रही है और यदि इसे लागू किया जाता है तो किसानों को व्यापारियों के रहम पर जीना पड़ेगा.

दूसरी ओर केंद्र में भाजपा की अगुवाई वाली मोदी सरकार ने इन अध्यादेशों को ‘ऐतिहासिक कृषि सुधार’ का नाम दे रही है. उसका कहना है कि वे कृषि उपजों की बिक्री के लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था बना रहे हैं.

अब तक किसान यूनियनों और सरकार के बीच 11 दौर की वार्ता हो चुकी है, लेकिन गतिरोध जारी है, क्योंकि दोनों पक्ष अपने अपने रुख पर कायम हैं. 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के लिए किसानों द्वारा निकाले गए ट्रैक्टर परेड के दौरान दिल्ली में हुई हिंसा के बाद से अब तक कोई बातचीत नहीं हो सकी है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)