दशकों पुराने नगा राजनीतिक मुद्दे का समाधान तलाशने के लिए वार्ता बहाल करने वाले नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालिम (एनएससीएन-आईएम) का कहना है कि केंद्र सरकार बिना राजनीतिक प्रतिबद्धताओं को पूरा किए बढ़ाकर-चढ़ाकर किए गए वादों से नगाओं को भ्रमित करने का प्रयास कर रही है.
कोहिमा: केंद्र सरकार के साथ शांति वार्ता पर नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालिम (एनएससीएन-आईएम) का कहना है कि पृथक नगा झंडे और संविधान की मांग पर उसका रुख अडिग है, क्योंकि ये नगा राजनीतिक संघर्ष एवं पहचान के प्रतीक हैं.
दशकों पुराने नगा राजनीतिक मुद्दे का समाधान तलाशने के लिए करीब दो साल के अंतराल के बाद वार्ता बहाल करने वाले एनएसीआईएन-आईएम ने शुक्रवार को बयान में कहा, ‘समस्या की जड़ें भारत की उस दुर्भावनापूर्ण खुशी में समाई हुई हैं, जो नगा लोगों के ऐतिहासिक एवं राजनीतिक अधिकारों का उल्लंघन करती है.’
इस बीच नगा वार्ता में सरकार के प्रतिनिधि एके मिश्रा ने शुक्रवार (15 अक्टूबर) को नई दिल्ली में नगा नेशनल पॉलिटिकल ग्रुप्स (एनएनपीजी) की कार्यसमिति के सदस्यों के साथ बैठक की. एनएनपीजी की मीडिया शाखा ने बयान जारी कर यह जानकारी दी.
यह एनएससीएन-आईएम के विरोधी सात संगठनों का प्रतिनिधित्व करता है.
उन्होंने कहा, ‘यह संवाद सौहार्दपूर्ण था, जहां दोनों पक्षों ने निरंतरता एवं उद्देश्य के प्रति कटिबद्धता दिखाई और चीजें वहां से आगे बढ़ीं, जहां पूर्व वार्ताकार आरएन रवि इस वार्ता से हटे थे.’
उन्होंने कहा कि निकट भविष्य में भी चर्चा जारी रहेगी और स्थायी संबंधों की बारीकियां तैयार की जाएंगी.
हालांकि, इस दौरान एनएससीएन-आईएम ने कहा कि नगा झंडा और येहजाबो (संविधान) का मुद्दा इस पुरानी समस्या के हल की राह में रोड़ा है और उसने केंद्र पर विभाजनकारी नीति अपनाने का आरोप लगाया.
एनएससीएन-आईएम ने कहा कि केंद्र सरकार बिना राजनीतिक प्रतिबद्धताओं को पूरा किए बढ़ाकर-चढ़ाकर किए गए वादों से नगाओं को भ्रमित करने का प्रयास कर रही है.
एनएससीएन-आईएम के अलावा भारत सरकार सात नगा राष्ट्रीय राजनीतिक समूहों (एनएनपीजी) से भी बातचीत कर रही है, जिनके साथ सरकार ने 2017 में समझौता था.
हालांकि, एनएससीएन-आईएम ने किसी का नाम नहीं लिया, लेकिन उनका बयान एनएनपीजी की कार्यकारी समिति के संयोजक एन. कितोवी झिमोमी के बयान के बाद जारी किया गया.
एनएससीएन-आईएम ने एनएनपीजी और सरकार के वार्ताकार के बीच की वार्ता का हवाला देते हुए कहा, विडंबना है जब मुद्दा संभालना मुश्किल हो गया तब भारत सरकार नगा राजनीतिक समस्या का हल तलाशने के नाम पर विभाजनकारी नीति और चापलूसी का रास्ता अपनाने लगी.
उन्होंने कहा, ‘भारत-नगा राजनीतिक मुद्दे का इतिहास हमारे सामने बिल्कुल स्पष्ट है तथा जो समझौतें एवं संधियां की गई हैं, वे सही मायने मे लागू करने के लिए थीं ही नहीं. दैवीय मूल से संबंधित नगा झंडे पर कभी समझौता नहीं किया जा सकता.’
बता दें कि एनएससीएन-आईएम ने तीन अगस्त, 2015 को भारत सरकार के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, लेकिन उस समझौते ने अब तक अंतिम रूप नहीं लिया है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)