केरल हाईकोर्ट एक पिता द्वारा बेटी से बलात्कार के मामले को सुन रहा था, जहां आरोपी ने दावा किया था कि उसे इस मामले में फंसाया जा रहा है क्योंकि उसकी बेटी का किसी अन्य के साथ यौन संबंध था. अदालत ने इस शख़्स को अपराध का दोषी मानते हुए कहा कि महिला का यौन संबंधों में होना बलात्कार, वो भी पिता द्वारा किए गए ऐसे जघन्य अपराध से बरी करने का कारण नहीं हो सकता.
कोच्चि: केरल उच्च न्यायालय ने कहा है कि किसी महिला लड़की का यौन संबंध बनाने का आदी होना किसी व्यक्ति को बलात्कार के मामले में दोषमुक्त करने का कारण नहीं हो सकता, वह भी खासतौर पर एक पिता को, जिससे अपनी बेटी की रक्षा करने और आश्रय देने की उम्मीद की जाती है.
अदालत ने बार-बार अपनी बेटी का बलात्कार करने और उसके गर्भवती हो जाने को लेकर एक व्यक्ति को दोषी ठहराते हुए यह टिप्पणी की.
उच्च न्यायालय ने इस बात का जिक्र किया कि जब एक पिता अपनी बेटी का बलात्कार करता है, तब यह एक रक्षक के भक्षक बनने से भी बदतर हो जाता है.
जस्टिस आर. नारायण पिशारदी ने यह टिप्पणी पीड़िता के पिता के यह दावा करने के बाद की कि उसे इस मामले में फंसाया जा रहा है क्योंकि उसकी बेटी ने स्वीकार किया है कि उसका किसी अन्य व्यक्ति के साथ यौन संबंध था.
उच्च न्यायालय ने उसकी बेगुनाही के दावों को खारिज करते हुए कहा कि यौन उत्पीड़न के परिणामस्वरूप मई 2013 में जन्मे बच्चे की डीएनए जांच से यह खुलासा होता है कि पीड़िता के पिता ही उसके बच्चे के जैविक पिता हैं.
उच्च न्यायालय ने कहा, ‘यहां तक कि एक ऐसे मामले में जहां यह प्रदर्शित होता है कि लड़की यौन संबंध बनाने की आदी है, यह आरोपी को बलात्कार के आरोप से दोषमुक्त करने का आधार नहीं हो सकता. यदि यह मान लिया जाए कि पीड़िता ने पूर्व में यौन संबंध बनाया था तो भी यह कोई निर्णायक सवाल नहीं है.’
अदालत ने कहा, ‘इसके उलट इस बारे में निर्णय करने की जरूरत है कि क्या आरोपी ने पीड़िता का उस समय बलात्कार किया था, जिस समय के बारे में उसने शिकायत की है. यहां मामला आरोपी के खिलाफ है, पीड़िता के खिलाफ नहीं’
उच्च न्यायालय ने आगे जोड़ा कि पिता का कर्तव्य पीड़ित लड़की की रक्षा और मदद करना है.
अदालत ने कहा, ‘लेकिन उसने उसका यौन उत्पीड़न किया, उससे बलात्कार किया. पीड़िता जिस पीड़ा से गुजरी है, उसकी कोई भी व्यक्ति कल्पना नहीं कर सकता. इस कदाचार कृत्य ने उसके मन में जो अमिट दुख छोड़ा है, उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. आने वाले सालों में उसे इस मानसिक वेदना और पीड़ा का एहसास होगा. ’
उच्च न्यायालय ने यह भी कहा, ‘पिता द्वारा अपनी बेटी का बलात्कार करने से अधिक जघन्य अपराध और कुछ नहीं हो सकता. रक्षक ही भक्षक बन गया. जबकि पिता रक्षा करने वाला और आश्रय देने वाला होता है.’
कोर्ट ने इस बात पर भी गौर किया कि पिता द्वारा बलात्कार के परिणामस्वरूप पीड़िता ने एक बेटे को जन्म दिया और इसलिए ‘उसके द्वारा बर्दाश्त की गई पीड़ा का अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता.’ अदालत ने कहा, ‘ऐसी परिस्थिति में आरोपी सजा के मामले में किसी भी तरह की नरमी का हकदार नहीं है.’
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, हाईकोर्ट ने निचली अदालत द्वारा पॉक्सो एक्ट के तहत चौदह साल की सजा का फैसला निरस्त करते हुए व्यक्ति को बलात्कार के मामले में बारह साल की कैद की सजा सुनाई.
अदालत का कहना था कि अभियोजन यह साबित करने में असफल रहा था कि घटना के समय- जून 2012 से जनवरी 2013 के बीच पीड़िता नाबालिग थीं.
अदालत ने पीड़िता को आपराधिक धमकी देने के लिए उक्त व्यक्ति की सजा को भी यह कहते हुए खारिज कर दिया कि अभियोजन पक्ष ने यह भी साबित नहीं किया कि लड़की को उसके पिता द्वारा गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी जा रही थी.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)