एल्गार परिषद: नवलखा की पार्टनर बोलीं, वह जेल के अंडा सेल में भेजे गए, फोन करने की भी मंज़ूरी नहीं

मानवाधिकार कार्यकर्ता और पत्रकार गौतम नवलखा की पार्टनर सहबा हुसैन ने बताया कि उन्हें बीते 12 अक्टूबर को नवी मुंबई स्थित तलोजा जेल के अंडा सेल में शिफ्ट किया गया है और उनका स्वास्थ्य काफी बिगड़ गया है. एल्गार परिषद-भीमा कोरेगांव मामले में गिरफ़्तार कार्यकर्ताओं, वकीलों और विद्वानों में नवलखा सबसे उम्रदराज़ हैं.

गौतम नवलखा (फोटो: यूट्यूब)

मानवाधिकार कार्यकर्ता और पत्रकार गौतम नवलखा की पार्टनर सहबा हुसैन ने बताया कि उन्हें बीते 12 अक्टूबर को नवी मुंबई स्थित तलोजा जेल के अंडा सेल में शिफ्ट किया गया है और उनका स्वास्थ्य काफी बिगड़ गया है. एल्गार परिषद-भीमा कोरेगांव मामले में गिरफ़्तार कार्यकर्ताओं, वकीलों और विद्वानों में नवलखा सबसे उम्रदराज़ हैं.

गौतम नवलखा (फोटो: यूट्यूब)

नई दिल्लीः एल्गार-परिषद और भीमा कोरेगांव मामले में आरोपी मानवाधिकार कार्यकर्ता और पत्रकार गौतम नवलखा को मुंबई स्थित तलोजा जेल के उच्च सुरक्षा बैरक (अंडा सेल) में शिफ्ट किया गया है.

उनकी पार्टनर सहबा हुसैन ने बताया कि गौतम नवलखा को 12 अक्टूबर को तलोजा जेल की उच्च सुरक्षा बैरक में शिफ्ट किया गया था.

एल्गार परिषद-भीमा कोरेगांव मामले में गिरफ्तार कार्यकर्ताओं, वकीलों और विद्वानों में 70 वर्षीय नवलखा सबसे उम्रदराज हैं.

सहबा हुसैन ने एक बयान में कहा कि नवलखा को तलोजा जेल की अंडा सेल में शिफ्ट किया गया है और उनका स्वास्थ्य काफी बिगड़ गया है.

इसके अलावा गौतम नवलखा को उनकी पार्टनर और वकीलों से फोन कॉल करने की मंजूरी भी नहीं दी जा रही.

फोन कॉल की अनुमति नहीं देने का कारण यह बताया जा रहा है कि व्यक्तिगत मुलाकात दोबारा शुरू हो गई है. सहबा हुसैन दिल्ली में रहती हैं और उनकी उम्र 70 साल है और वह बार-बार मुंबई जेल नहीं जा सकतीं, जबकि जेल में मुलाकातें सिर्फ 10 मिनट की ही होती हैं.

सहबा ने बताया, ‘गौतम हफ्ते में सिर्फ दो बार मुझे कॉल करते थे और उनसे संपर्क का बस यही तरीका था. मैं उन्हें दवाइयां, किताबें सहित कोई भी सामान नहीं भेज पा रही हूं. फोन कॉल की मंजूरी नहीं मिलने से अब हम सिर्फ पत्रों पर निर्भर हैं, जिन्हें मुझ तक पहुंचने में भी कम से कम दो हफ्ते लगते हैं.’

हुसैन ने कहा, ‘मुझे कॉल करने के अलावा विचाराधीन कैदियों के लिए फोन के जरिये अपने वकीलों के नियमित संपर्क में रहना आवश्यक सुविधा है. विचाराधीन कैदियों को कानूनी सलाह और मदद, परिवार से संपर्क के इस प्रभावी तरीके से वंचित रखना अन्याय है.’

प्रभावी संचार की कमी के अलावा उच्च सुरक्षा सेल में शिफ्ट करने का मतलब है कि नवलखा खुली हवा में रोजाना सैर नहीं कर पाएंगे, जैसा वह पहले कर रहे थे, जो उनके स्वास्थ्य के लिए जरूरी है.

नवलखा ने हुसैन को लिखे पत्र में कहा है, ‘अंडा सेल में कारावास का मतलब है कि ताजी हवा में सांस नहीं लेना. सेल के खुले स्थान में कोई पेड़ या पौधा नहीं है. हम अंडा सेल से बाहर नहीं जा सकते. हम 24 घंटे में से 16 घंटे हमारी सेल के भीतर गुजारते हैं और आठ घंटे हमें 71/2’ x 72’ के गलियारे में जाने की मंजूरी है, जिसका फर्श सीमेंट का है और चारों ओर ऊंची दीवारों से घिरा है.’

नवलखा को एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में 28 अगस्त 2018 को गिरफ्तार किया गया था. शुरुआत में उन्हें घर में नजरबंद रखा गया और बाद में नवी मुंबई स्थित तलोजा जेल में न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था.

नवलखा 14 अप्रैल 2020 से हिरासत में है. वह एल्गार परिषद मामले में गिरफ्तार 16 कार्यकर्ताओं, वकीलों और विद्वानों में से एक हैं.

इस मामले में गिरफ्तार आदिवासी कार्यकर्ता फादर स्टेन की इस साल जुलाई में हिरासत में ही मौत हो गई थी. बढ़ती उम्र के अलावा वह कई बीमारियों से ग्रसित थे और उनकी तबियत तेजी से बिगड़ रही थी. उन्हें मेडिकल आधार पर जमानत नहीं दी गई थी.

हुसैन ने पत्र में स्वामी की मौत का उल्लेख करते हुए कहा कि इन कैदियों को इस तरह के बुनियादी अधिकारों से वंचित रखना बहुत ही गलत है.

पत्र में कहा गया, ‘इन कैदियों को छोटी-छोटी जरूरतों के लिए अपमान का सामना करना पड़ा और जेल में बुनियादी जरूरतों के लिए अदालत में लड़ाई लड़नी पड़ी.’

उन्होंने कहा कि इससे पहले नवलखा का चश्मा गायब हो गया था और उन्हें समय पर दूसरा चश्मा मिलने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था. वकीलों और परिवार से फोन कॉल, दिन में एक-दो बार ताजी हवा में चहलकदमी जैसी सरल सुविधाओं की मांग करना ज्यादा नहीं है.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)