सूरत चुनाव: पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा बोले- किसी को वोट देने के लिए उसका वोट मांगना भी ज़रूरी

पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने गुजरात की सूरत लोकसभा सीट से भाजपा के उम्मीदवार मुकेश दलाल के निर्विरोध निर्वाचित होने पर कहा कि एक ऐसी प्रणाली जिसमें प्रतिनिधियों को मतदाताओं के बिना चुन लिया जाता है, पर पुनर्विचार की ज़रूरत है.

अशोक लवासा. (फोटो साभार: चुनाव आयोग)

नई दिल्ली: भारत का चुनाव आयोग इन दिनों सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)  के प्रति अपने कथित ‘पक्षपातपूर्ण’ रवैये को लेकर विपक्ष की कड़ी आलोचना का सामना कर रहा है. ऐसे में पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने अब गुजरात की सूरत लोकसभा सीट से भाजपा के उम्मीदवार मुकेश दलाल के निर्विरोध निर्वाचित होने पर अपनी राय दी है.

रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने कहा है कि एक ऐसी प्रणाली जिसमें प्रतिनिधियों को मतदाताओं के बिना चुन लिया जाता है, उस पर पुनर्विचार की ज़रूरत है.

द हिंदू में प्रकाशित एक लेख में अशोक लवासा ने सूरत की लोकसभा सीट का उल्लेख किया है, जहां बीते दिनों बिना मतदान के ही भाजपा उम्मीदवार को निर्विरोध विजयी घोषित कर दिया गया.

मालूम हो कि अशोक लवासा पिछले 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान आदर्श आचार संहिता उल्लंघन मामले में  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के भाषणों  को लेकर क्लीन चिट दिये जाने पर सहमत नहीं थे.

हालिया लेख में लवासा ने सवाल किया है, ‘क्या भारत का चुनाव आयोग निर्वाचन क्षेत्र को किसी व्यक्ति को फिर से चुनने के लिए बाध्य कर सकता है जैसा कि तब होता है, जब सरकारी खरीद में कोई बोली ही प्राप्त नहीं होती?’

ज्ञात हो कि सूरत संसदीय क्षेत्र से भाजपा के उम्मीदवार को निर्विरोध चुना गया है,  यहां कुछ उम्मीदवारों का नामांकन खारिज हो गया था और कुछ ने अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली थी.

मौजूदा व्यवस्था को लेकर आए कानूनों की गहराई से चर्चा करते हुए लवासा ने जोड़ा कि अब एक व्यक्ति जिसके पास ‘एक भी वोट नहीं है, वह पूरे निर्वाचन क्षेत्र की ओर से कानून बनाने के लिए संसद में बैठेगा.’

लवासा का कहना है कि वर्तमान चुनावी प्रक्रिया दो भागों में बंटी हुई है और यह पहले से मान लिया गया है कि मतदाता एक ही विकल्प चुनेंगे, भले ही उनके कई और विकल्प मौजूद हों.

उन्होंने आगे कहा, ‘ऐसे तो किसी स्थिति में, 543 संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों में सभी उम्मीदवार (भले ही वे विभिन्न राजनीतिक दलों या निर्दलीयों का प्रतिनिधित्व करने वाले 10,000 हों) सिस्टम के साथ खिलवाड़ कर सकते हैं और प्रक्रिया का अनुपालन करके एक अरब मतदाताओं को उनके वैधानिक अधिकार से वंचित कर सकते हैं लेकिन ये सब लोकतंत्र की भावना को गंभीर रूप से ठेस पहुंचा सकता है.’

लवासा का कहना है कि जब कोई मुकाबला नहीं होता तो मतदाता को ही परेशानी होती है. उनका कहना है कि किसी को आपका वोट पाने के लिए आपसे वोट मांगना होगा.

वो कहते है कि सिर्फ प्रक्रिया के लाभ के लिए सिस्टम ऐसी स्थिति में चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों का पक्ष नहीं ले सकता.

उन्होंंने आगे कहा कि लोगों की इच्छा को सिस्टम के फायदे से बदल दिया जाता है. ये पूछते हुए कि उन लोगों का प्रतिनिधित्व कौन करेगा जिन्होंने प्रक्रिया में भाग नहीं लिया, उन्होंने जोड़ा कि यह काफी विरोधाभासी है क्योंकि लोकतंत्र को ‘लोगों का, लोगों द्वारा और लोगों के लिए सरकार’ के रूप में परिभाषित किया गया है.

लवासा लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, नोटा विकल्प और फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट प्रणाली की खूबियों के पक्ष और विपक्ष में तर्क देते हुए कहते हैं कि वॉकओवर की प्रणाली आदर्श नहीं होनी चाहिए और इस पर व्यापक बहस की आवश्यकता है.