असम: न्यूज़ पोर्टल के संपादक पर राजद्रोह के आरोप के ख़िलाफ़ पत्रकारों का प्रदर्शन

असम के बराक घाटी के तीन ज़िलों के 150 से अधिक पत्रकारों ने मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा को पत्र लिखकर ‘बराक बुलेटिन’ न्यूज़ पोर्टल चलाने वाले पत्रकार अनिर्बान रॉय चौधरी के ख़िलाफ़ सभी आरोपों को रद्द करने की मांग की है. पत्रकारों ने इस घटना को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर हमला बताया.

/
अनिर्बान रॉय चौधरी. (फोटो साभार: फेसबुक)

असम के बराक घाटी के तीन ज़िलों के 150 से अधिक पत्रकारों ने मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा को पत्र लिखकर ‘बराक बुलेटिन’ न्यूज़ पोर्टल चलाने वाले पत्रकार अनिर्बान रॉय चौधरी के ख़िलाफ़ सभी आरोपों को रद्द करने की मांग की है. पत्रकारों ने इस घटना को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर हमला बताया.

अनिर्बान रॉय चौधरी. (फोटो साभार: फेसबुक)

सिलचर/हैलाकांडी: असम की बराक घाटी के पत्रकारों ने मंगलवार को मांग की कि एक स्थानीय समाचार पोर्टल के संपादक के खिलाफ उनके द्वारा लिखे गए संपादकीय के लिए लगाए गए राजद्रोह के आरोपों को तुरंत रद्द किया जाए.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, सिलचर प्रेस क्यूब ने न्यूज पोर्टल के संपादक अनिर्बान रॉय चौधरी के खिलाफ आरोपों को वापस लेने की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन किया.

शुक्रवार को संपादक पर आरोप लगाए गए थे कि असमिया और बंगाली भाषी समुदायों के बीच उनके संपादकीय ‘वेलकम टू द पैराडाइज ऑफ द स्पाइनलेस – वी आर असमिया’ कथित तौर पर एक विभाजन बनाने की मांग करता है. इस मामले में उनके खिलाफ बराक घाटी में एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी.

केवल एक भाषा के उपयोग का विरोध करने वाले बराक डेमोक्रेटिक फ्रंट के संयोजक प्रदीप दत्ता रॉय की गिरफ्तारी के बाद संपादक पर राजद्रोह का आरोप सामने आया था.

दत्ता रॉय ने कथित तौर पर कहा था कि अगर कोविड-19 टीकाकरण अभियान पर लगे होर्डिंग को 48 घंटों के भीतर नहीं हटाया गया, तो उनकी पार्टी सड़कों पर प्रदर्शन करेगी. होर्डिंग को हटा दिया गया था, लेकिन रॉय को पूछताछ के लिए हिरासत में लिया गया और बाद में गिरफ्तार कर लिया गया.

असम राजभाषा अधिनियम, 1960 ने राज्य की बंगाली-बहुमत बराक घाटी में प्रशासनिक और आधिकारिक उद्देश्यों के लिए बंगाली के उपयोग की अनुमति दी है, जबकि असम को राज्य की आधिकारिक भाषा के रूप में रखा.

आधिकारिक उद्देश्यों के लिए दूसरी भाषा के रूप में बंगाली का उपयोग बराक घाटी में बंगाली भाषी आबादी द्वारा एक जन आंदोलन के बाद हुआ, जिसकी परिणति 16 मई, 1961 को सिलचर में आंदोलनकारियों पर गोलीबारी और उनमें से 11 की मौत के रूप में हुई थी.

रॉय चौधरी के खिलाफ अखिल असम बंगाली हिंदू संघ के सदस्य शांतनु सूत्रधर नाम के एक व्यक्ति ने प्राथमिकी दर्ज की थी, जिसके बाद सोमवार को कछार सदर पुलिस स्टेशन ने समाचार पोर्टल संपादक को तलब किया था.

31 वर्षीय अनिर्बान रॉय चौधरी के खिलाफ दर्ज एफआईआर में आईपीसी की अन्य धाराएं- 153 (ए) और 501/505 (2) भी लगाई गई हैं.

राजद्रोह के अलावा, रॉय चौधरी पर कई अन्य धाराओं के तहत भी आरोप लगाया गया था और वह बराक घाटी के लगभग 50 पत्रकारों के साथ पुलिस स्टेशन में पेश हुए थे.

अधिकारियों ने कहा कि उनसे एक घंटे से अधिक समय तक पूछताछ की गई लेकिन सार्वजनिक मान्यता बांड देने के बाद जाने की अनुमति दी गई और इस शर्त पर कि जब भी बुलाया जाएगा वह पुलिस के सामने पेश होंगे.

रॉय चौधरी ने कहा कि वह कानूनी रूप से आरोपों के खिलाफ लड़ेंगे और जल्द ही अदालत का रुख करेंगे.

सिलचर प्रेस क्लब के सचिव शंकर डे ने कहा, ‘हमारा विरोध तब तक जारी रहेगा जब तक कि उनके (रॉय चौधरी) के खिलाफ राजद्रोह का आरोप नहीं हटा दिया जाता.’

उन्होंने कहा, ‘हम पत्रकारों के खिलाफ झूठे और मनगढ़ंत राजद्रोह के आरोपों को किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करेंगे और हमारा विरोध जारी रहेगा.’

तीन बराक घाटी जिलों के 150 से अधिक पत्रकारों ने मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा को पत्र लिखकर संपादक के खिलाफ सभी आरोपों को रद्द करने का आग्रह किया और इस घटना को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर हमला बताया.

इससे पहले 19 अक्टूबर को अज्ञात बदमाशों ने सिलचर में केवल असमिया भाषा में लिखे सरकारी होर्डिंग्स पर काली स्याही लगा दी थी, जिसके बाद कुछ लोगों ने गुवाहाटी में बंगाली में लिखे कुछ साइनबोर्ड को विकृत कर दिया था.