नगालैंड के मोन ज़िले में चार से पांच दिसंबर के दौरान एक असफल उग्रवाद विरोधी अभियान के दौरान सेना की गोलीबारी में 14 नागरिकों की मौत हो गई थी. इसके बाद कोन्यक यूनियन ने सशस्त्र बलों के साथ असहयोग को जारी रखने के लिए नए नियमों की घोषणा की थी. पूर्वी नगालैंड पीपुल्स ऑर्गनाइजेशन ने असहयोग का ऐलान किया है.
गुवाहाटीः नगालैंड के मोन जिले में रहने वाले कोन्यक नगा जनजाति समूह के शीर्ष निकाय कोन्यक यूनियन (केयू) के सशस्त्र बलों के साथ असहयोग को जारी रखने के लिए नए नियमों की घोषणा के बाद एक दिन बाद मंगलवार को पूर्वी नगालैंड पीपुल्स ऑर्गेनाइजेशन (ईएनपीओ) ने भी सुरक्षा बलों के साथ असहयोग जारी रखने का ऐलान किया है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, पूर्वी नगालैंड पीपुल्स ऑर्गनाइजेशन ने बीते चार दिसंबर को मोन जिले के ओटिंग गांव में सुरक्षाबलों की गोलीबारी में 14 नागरिकों की मौत के बाद चार जिलों- तुएनसांग, मोन, लॉन्गलेंग और किफिरे- में सुरक्षाबलों के साथ असहयोग का ऐलान किया है.
यह संगठन लंबे समय से इन चार जिलों के लिए एक राज्य की मांग लेकर चलाए जा रहे आंदोलन का नेतृत्व कर रहा है. इसके अलावा यह संगठन कोन्याक, चांग, संगतम, खियामनियुंगन, यिमचुंगर और फोम जनजातियों का शीर्ष निकाय भी है.
सभी पूर्वी नगालैंड नागरिक समाजों की संयुक्त परामर्श बैठक के बाद ईएनपीओ ने मंगलवार शाम को कहा कि जब तक उनकी तीन मांगें नहीं मानी जाती, वह सुरक्षा बलों के साथ असहयोग जारी रखेंगी.
इन तीन मांगों में गोलीबारी में शामिल सुरक्षाकर्मियों के खिलाफ मामला दर्ज करना, इस घटना को लेकर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का संसद में दिया बयान वापस लेना, जिसमें उन्होंने कहा था कि सुरक्षाबलों ने आत्मरक्षा में गोलियां चलाई और तीसरा सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (आफ्सपा) को रद्द करना शामिल हैं.
बयान में कहा गया कि असहयोग का मतलब है कि इन चार जिलों के स्थानीय निवासी स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस जैसे किसी भी तरह के राष्ट्रीय समारोह से दूर रहेंगे और सैन्य नागरिक कार्यक्रमों में शामिल नहीं होंगे और न ही सेना के किसी आधिकारिक निमंत्रण में शामिल होंगे.
बयान में यह भी कहा गया है कि पूर्वी नगालैंड क्षेत्रों में किसी भी भर्ती अभियान की मंजूरी नहीं दी जाएगी.
ईएनपीओ के सचिव डब्ल्यू. मानवांग अंघा ने कहा कि न्याय मिलने तक यह असहयोग जारी रहेगा.
बता दें कि कोन्यक यूनियन ने बीते 13 दिसंबर को कोन्यक की धरती पर सशस्त्र बलों के साथ अपने असहयोग को जारी रखने के लिए नए नियमों की घोषणा की थी.
यूनियन ने सेना से असहयोग नियमों की एक सूची जारी की थी, जिसमें गोलीबारी में मारे गए लोगों को न्याय मिलने तक भारतीय सैन्य बलों के काफिले और उनके गश्ती दल पर पूर्ण प्रतिबंध, मोन जिले में सैन्य नियुक्तियों से संबंधित रैलियों की मनाही, सैन्य बलों से विकासात्मक पैकेज को स्वीकार न करना शामिल हैं.
बयान में कहा गया, ‘जिन ग्राम परिषदों, छात्रों और समुदायों को मुआवजा पैकेज मिले हैं, उन्हें सुरक्षा बलों की तरफ से सुनिश्चित किए गए किसी भी तरह के पैकेज को तुरंत अस्वीकार करना चाहिए.’
बयान में नगीनिमोरा, तिजित, लाम्पोंग शेंगहा, वाकिंग टाउन, मोन टाउन, लोंगशेन टाउन, शेंगहा वामसा, लोंगवा, चेन्मोहो, चेनलोशू, वांगती, अबोई, आंगजांगयांग, तोबू और मोन्याक्षू के अधिकार क्षेत्र के भीतर सभी इलाकों में सैन्य शिविरों की स्थापना के लिए पूर्व में हुए भूमि समझौतों से संबंधित जमीन मालिकों को तुरंत पीछे हटने का निर्देश दिया गया है.
इस बारे में कोन्यक यूनियन के उपाध्यक्ष हानोंग कोन्यक ने कहा था, ‘सशस्त्र बलों को लेकर लोगों में बहुत गुस्सा है. पूर्व में नगा लोगों के जटिल इतिहास के बावजूद बीते कुछ सालों में हमने भारतीय सैन्य बलों के साथ विश्वास बनाया था. हमने शांति के लिए समझौता कर लिया था, लेकिन अब ओटिंग घटना ने इस कुछ बिखेर दिया है.’
पूर्वी नगालैंड पीपुल्स ऑर्गनाइजेशन सचिव के डब्ल्यू मनवांग अंघा, ने कहा कि असहयोग तब तक जारी रहेगा जब तक कि न्याय नहीं दिया जाता.
बता दें कि ईएनपीओ और कोन्यक यूनियन ने सभी चार जिलों में 16 दिसंबर को विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया है.
मालूम हो कि नगालैंड के मोन जिले के ओटिंग और तिरु गांवों के बीच यह घटना हुई थी, जिसमें सेना की गोलीबारी में 14 आम नागरिकों की जान चली गई.
गोलीबारी की पहली घटना तब हुई जब चार दिसंबर की शाम कुछ कोयला खदान के मजदूर एक पिकअप वैन में सवार होकर घर लौट रहे थे.
सेना की ओर से जारी बयान में कहा गया था, जवानों को प्रतिबंधित संगठन नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड-के (एनएससीएन-के) के युंग ओंग धड़े के उग्रवादियों की गतिविधि की सूचना मिली थी और इसी गलतफहमी में इलाके में अभियान चला रहे सैन्यकर्मियों ने वाहन पर कथित रूप से गोलीबारी की, जिसमें छह मजदूरों की जान चली गई.
अधिकारियों ने बताया था कि जब मजदूर अपने घर नहीं पहुंचे तो स्थानीय युवक और ग्रामीण उनकी तलाश में निकले तथा इन लोगों ने सेना के वाहनों को घेर लिया. इस दौरान हुई धक्का-मुक्की व झड़प में एक सैनिक की मौत हो गई और सेना के वाहनों में आग लगा दी गई. इसके बाद सैनिकों द्वारा आत्मरक्षार्थ की गई गोलीबारी में सात और लोगों की जान चली गई.
इस घटना के खिलाफ उग्र विरोध और दंगों का दौर अगले दिन पांच दिसंबर को भी जारी रहा और गुस्साई भीड़ ने कोन्याक यूनियन और असम राइफल्स कैंप के कार्यालयों में तोड़फोड़ की और उसके कुछ हिस्सों में आग लगा दी. सुरक्षा बलों द्वारा हमलावरों पर की गई जवाबी गोलीबारी में कम से कम एक और नागरिक की मौत हो गई, जबकि दो अन्य घायल हो गए.
इसके बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा घटना के संबंध में बीते छह दिसंबर को संसद में दिए गए बयान की भी आलोचना होने के साथ उनसे माफी मांगने की मांग की जा रही है.
कोन्यक यूनियन ने बीते दिनों मांग की थी कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह माफी मांगें और संसद में दिया अपना कथित ‘भ्रामक’ बयान वापस लें. यूनियन ने इसके साथ ही ‘गलत पहचान’ और सुरक्षा बलों द्वारा ‘आत्मरक्षा’ में आम लोगों पर गोली चलाने के तर्क को भी खारिज किया है.
इससे पहले मेघालय में भारतीय जनता पार्टी के सहयोगी दल नेशनलिस्ट पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) ने नगालैंड में थल सेना के पैरा-कमांडो की गोलीबारी में छह आम नागरिकों की मौत होने पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा दिए गए बयान की आलोचना करते हुए कहा था कि उन्होंने तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया है.
इसके अलावा केंद्र के साथ नगा राजनीतिक वार्ता में प्रमुख वार्ताकार नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (इसाक-मुइवा) ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के संसद में आतंकवाद रोधी अभियान पर दिए गए बयान को ‘गैर जिम्मेदाराना’ करार दिया था.