आईआईटी खड़गपुर द्वारा जारी नए साल के कैलेंडर को लेकर क्यों हो रहा है विवाद

आईआईटी खड़गपुर के सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर इंडियन नॉलेज सिस्टम द्वारा हाल ही में जारी साल 2022 के एक कैलेंडर में आर्यों के हमले की थ्योरी को ख़ारिज करते हुए कहा गया है कि उपनिवेशवादियों ने वैदिक संस्कृति को 2,000 ईसा पूर्व की बात बताया है, जो ग़लत है. इसे लेकर जानकारों ने कई सवाल उठाए हैं.

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आईआईटी खड़गपुर. (फोटो: पीटीआई)

आईआईटी खड़गपुर के सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर इंडियन नॉलेज सिस्टम द्वारा हाल ही में जारी साल 2022 के एक कैलेंडर में आर्यों के हमले की थ्योरी को ख़ारिज करते हुए कहा गया है कि उपनिवेशवादियों ने वैदिक संस्कृति को 2,000 ईसा पूर्व की बात बताया है, जो ग़लत है. इसे लेकर जानकारों ने कई सवाल उठाए हैं.

आईआईटी खड़गपुर. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: भारतीय इतिहास से लेकर ब्रह्मांड विज्ञान और खगोल विज्ञान का अध्ययन करने के लिए बनाए गए आईआईटी खड़गपुर के सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर इंडियन नॉलेज सिस्टम ने अपनी उपलब्धियों में एक कैलेंडर को शामिल किया है, जिसमें भारतीय इतिहास के कालक्रम (Chronology) को लेकर सवाल उठ रहा है.

इसमें भारत में आर्यों के विदेश से आने की थ्योरी को खारिज की गई है और कहा गया है कि उपनिवेशवादियों ने वैदिक संस्कृति को 2,000 ईसा पूर्व की बात बताया है, जो गलत है.

इस सेंटर में विवाद की वजह सिर्फ यही नहीं है. यहां वस्तु विद्या, परिवेश विद्या जैसे कोर्स भी पढ़ाए जा रहे हैं.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, 18 दिसंबर को आईआईटी खड़गपुर के 67वें दीक्षांत समारोह के दौरान इस सेंटर को लॉन्च किया गया था. इसके चेयरपर्सन प्रो. जॉय सेन ने कहा, ‘यहां वास्तु विद्या, परिवेश विद्या (पर्यावरण अध्ययन), अर्थशास्त्र (राजनीति विज्ञान) और गणित में अंडर-ग्रैजुएट और पोस्ट-ग्रैजुएट कोर्स कराए जाते हैं.’

इस केंद्र का उद्घाटन केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने किया था.

सेन ने बताया, ‘हम ज्ञान प्रणाली में भारतीयता को लाते हैं. नतीजतन भारतीय छात्र अधिक वैश्विक बनेंगे, लेकिन सच्चे भारतीय के रूप में भी उभरेंगे. इसका फासीवाद या राष्ट्रवाद के विचार से कोई लेना-देना नहीं है. पूर्व में भी काफी गड़बड़ी हुई है. हम वही चुन रहे हैं, जो अतीत में उपेक्षित रहा या दबाया गया है.’

सूत्रों के मुताबिक, इस सेंटर में एक कोर्स चलाया जा रहा है, जिसका नाम ‘इंट्रोडक्शन टू स्थापत्य वास्तु एंड निर्माण विद्या एंड अर्थशास्त्र’ है और इसमें 430 पहले साल के विद्यार्थी हैं.

यह कोर्स भारतीय वास्तुकला, भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य इंजीनियरिंग और डिजाइन इंजीनियरिंग और अर्थशास्त्र को भारतीय लोकाचार के अनुसार एकीकृत करता है.

आईआईटी खड़गपुर के कैलेंडर के बारे में पूछे जाने पर सेन ने कहा, ‘कैलेंडर इस बात पर केंद्रित नहीं है कि सिंधु घाटी सभ्यता वैदिक युग से पहले या बाद में आती है, लेकिन नस्ल और आनुवंशिकी के आधार पर साबित किया गया है कि आर्य आक्रमण नहीं हुआ था. आर्य आक्रमण का मिथक अब अस्वीकृति का विषय है, जो कैलेंडर करता है.’

द हिंदू के अनुसार, इस कैलेंडर पर इसे बनाने के लिए मार्गदर्शन देने वाली सलाहकार टीम का नाम भी दिया गया है, जिनमें इसमें आईआईटी-खड़गपुर के निदेशक वीरेंद्र कुमार तिवारी, अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद के अध्यक्ष अनिल डी. सहस्रबुद्धे और वित्त मंत्रालय में प्रधान आर्थिक सलाहकार संजीव सान्याल शामिल हैं.

विभिन्न महीनों के पन्नों पर अलग-अलग विषयों जैसे सिंधु और ब्रह्मपुत्र नदियां, पुनर्जन्म, समय के युग, ब्रह्मांडीय समरूपता और  आर्यन आक्रमण मिथक’ की व्याख्या को दर्ज किया गया है.

6 नवंबर, 2020 को तत्कालीन शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने आईआईटी खड़गपुर में भारतीय ज्ञान प्रणालियों के लिए यह केंद्र स्थापित करने की घोषणा की थी.

विरोध

इतिहासकारों ने इस कैलेंडर की काफी आलोचना की है. ‘अर्ली इंडियंस: द स्टोरी ऑफ अवर एंसेस्टर्स एंड वेअर वी केम फ्रॉम’ किताब के लेखक टोनी जोसेफ ने कहा कि आर्यन आक्रमण लगभग आधी सदी से दक्षिणपंथी नीतिवादियों की कल्पना में ही जीवित है. इस बात के पर्याप्त साक्ष्य है कि 2000 और 1500 ईसा पूर्व के बीच व्यापक स्तर पर प्रवास हुआ था, जिसके चलते लोगों ने देशों की सीमाओं को लांघा था.

उन्होंने कहा कि 837 लोगों के प्राचीन डीएनए के आधार पर 117 वैज्ञानिकों ने इसकी पुष्टि की है. यह रिपोर्ट साल 2019 में आई थी.

आईआईटी खड़गपुर की ओर से 2022 के लिए जारी किए गए कैलेंडर में कुल 12 तथ्यों के साथ आर्यन आक्रमण की थ्योरी को गलत साबित करने का दावा किया गया है.

इस कैलेंडर में भारतीय ज्ञान परंपरा की ऐतिहासिकता का जिक्र तो किया ही गया है, इसमें एएल बाशम, वॉल्टेयर, जेम्स ग्रांट डफ जैसे कई पश्चिमी विद्वानों का भी उल्लेख किया गया है, जिन्होंने भारतीय संस्कृति, चिकित्सा पद्धति एवं अन्य चीजों की सराहना की थी. इसमें वेद और सिंधु घाटी सभ्यता का भी वर्णन किया गया है.

कैलेंडर पर दर्ज दावों को लेकर सवाल उठ रहे हैं, वहीं कई जानकारों ने इसे भाजपा और आरएसएस द्वारा इतिहास बदलने की कोशिश करार दिया है.

द वायर  पर प्रकाशित एक लेख में चेन्नई के इंस्टिट्यूट ऑफ मैथेमैटिकल साइंसेज में कम्प्यूटेशनल बायोलॉजिस्ट राहुल सिद्धार्थन ने कहा है कि किसी भी शैक्षणिक ऐसा कैलेंडर लाना शर्मिंदगी की बात है.

उन्होंने कहा, ‘अपने पहले ही पन्ने पर यह खुद को ‘आर्यन आक्रमण मिथक का खंडन’ करने वाला घोषित करता है और ‘बारह प्रमाण’ देने का वादा करता है. इन प्रमाणों में  ‘लॉ ऑफ स्पेस टाइम कॉज़ेशन’ और “नॉन-लीनियर फ्लो और बदलाव- जिनकी सिंधु घाटी के संबंध में प्रासंगिकता बिल्कुल स्पष्ट नहीं है- भ्रामक दावे से लेकर ‘सस्पेंशन ऑफ बिलीफ’ यानी किसी को बात को लेकर भरोसा न होना शामिल है… कैलेंडर इंडो-यूरोपीय भाषाओं के बीच अच्छी तरह से स्थापित समानताओं को भी नजरअंदाज करता है, और यह स्वीकार  नहीं करता है कि द्रविड़ भाषाएं एक पूरी तरह से अलग भाषाई परिवार हैं और जिसकी एक मिसाल ब्राहुई भाषा है, जो आज भी पाकिस्तान में जीवित है.’

राहुल लिखते हैं, ‘कुल मिलाकर यह कैलेंडर विज्ञान और तथ्य पर कम, और विवाद और प्रचार पर ज्यादा केंद्रित है.’

द वायर  पर ही प्रकाशित एक अन्य लेख में स्निग्धेंदु भट्टाचार्य ने बताया कि कई पूर्व आईआईटी छात्रों ने भी सोशल मीडिया पर इसकी आलोचना की है. यहां तक कि रूढ़िवादी स्तंभकार श्रीकांत कृष्णमाचारी ने भी इसे लेकर ट्विटर पर अपना असंतोष जाहिर किया.

संस्थान के ऐसे ही एक नाराज पूर्व छात्र बिहार के सूचना का अधिकार कार्यकर्ता आशीष रंजन हैं, जिन्होंने पूर्व छात्रों की ओर से 27 दिसंबर को एक ऑनलाइन याचिका शुरू की है. संस्थान के निदेशक को संबोधित करते हुए लिखी गई इस याचिका में में ‘संदिग्ध अनुमान को स्थापित विज्ञान के रूप में साबित करने’ के प्रयास की ‘कड़ी निंदा’ की गई है.

रंजन की याचिका  करने वाले एक पूर्व छात्र सूर्या पुटचला ने लिखा, ‘एक पूर्व छात्र के बतौर मैं संस्थान के भारत के ‘मूल’ और संस्कृति से संबंधित झूठे प्रचार को बढ़ावा देने को लेकर बहुत चिंतित हूं. भारत के संविधान के अनुच्छेद 51 ए का उल्लंघन है, भारत के एक प्रमुख संस्थान द्वारा ऐसा करना समझ से परे है.’

एक अन्य हस्ताक्षरकर्ता अर्नब भट्टाचार्य ने कहा, ‘किसी आईआईटी को इस तरह की विचारधारा से प्रेरित, अनदेखे-साक्ष्य, पौराणिक कथाओं और विज्ञान को मिलाते देखना चौंकाने वाला है. यह डराने वाला है!’

बीबीसी हिंदी की रिपोर्ट बताती है कि कई संगठनों ने इस कैलेंडर को ‘हिंदुत्व थोपने और इतिहास को विकृत करने’ की कोशिश बताया है और इसके विरोध में संस्थान के गेट पर प्रदर्शन भी हो चुके हैं.

ऐसे ही एक संगठन अखिल भारत शिक्षा बचाओ समिति का दावा है कि कैलेंडर आरएसएस की हिंदुत्ववादी अवधारणा को मज़बूत करता है.

संगठन की पश्चिम बंगाल शाखा के सचिव तरुण नस्कर ने बीबीसी से कहा कि इस कैलेंडर में इंडियन नॉलेज सिस्टम के नाम पर जिस तरह विभिन्न पौराणिक और इतिहास से बाहर की चीजों को विज्ञान और इतिहास बताया गया है वह देश में विज्ञान की शिक्षा के एक कलंकित अध्याय के तौर पर दर्ज किया जाएगा.

माकपा के मुखपत्र गणशक्ति में भी इसकी मुखर आलोचना हुई है, वहीं पश्चिम बंगाल विज्ञान मंच ने भी इस कैलेंडर पर सवाल उठाए हैं.

आलोचना करने वाले एक अन्य संगठन सेव एजुकेशन कमेटी के तपन दास का कहना था, ‘कैलेंडर में आर्यों के हमले को मिथक बताकर इतिहास को खारिज करने का प्रयास किया गया है. इसके समर्थन में अवैज्ञानिक और लचर दलीलें दी गई हैं. संस्थान प्रबंधन और उसके कुछ शिक्षक अपनी महत्वाकांक्षाओं के चलते केंद्र सरकार के एजेंडा को लागू करने का प्रयास कर रहे हैं.’