‘धर्म संसद’ मामले में एसआईटी के गठन की मांग लेकर तीन पूर्व सैन्य अधिकारी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे

भारतीय सशस्त्र बलों के सेवानिवृत्त अधिकारियों ने अपनी याचिका में कहा है कि देशद्रोही और विभाजनकारी भाषणों ने न केवल आपराधिक क़ानून का उल्लंघन किया, बल्कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद-19 पर भी हमला किया है. ये भाषण राष्ट्र के धर्म-निरपेक्ष ताने-बाने पर दाग लगाते हैं और सार्वजनिक व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव डालने की गंभीर क्षमता रखते हैं.

उत्तराखंड के हरिद्वार में 17-19 दिसंबर 2021 के बीच हिंदुत्ववादी नेताओं और कट्टरपंथियों द्वारा एक ‘धर्म संसद’ का आयोजन किया गया. (फोटो साभार: फेसबुक)

भारतीय सशस्त्र बलों के सेवानिवृत्त अधिकारियों ने अपनी याचिका में कहा है कि देशद्रोही और विभाजनकारी भाषणों ने न केवल आपराधिक क़ानून का उल्लंघन किया, बल्कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद-19 पर भी हमला किया है. ये भाषण राष्ट्र के धर्म-निरपेक्ष ताने-बाने पर दाग लगाते हैं और सार्वजनिक व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव डालने की गंभीर क्षमता रखते हैं.

उत्तराखंड के हरिद्वार में 17-19 दिसंबर 2021 के बीच हिंदुत्ववादी नेताओं और कट्टरपंथियों द्वारा एक ‘धर्म संसद’ का आयोजन किया गया. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: भारतीय सशस्त्र बलों के तीन सेवानिवृत अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट में एक रिट पिटीशन दाखिल करके मांग की है कि हरिद्वार और दिल्ली के धर्म संसदों में मुसलमानों के खिलाफ दिए गए नफरती भाषणों की जांच के लिए विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया जाए.

तीनों याचिकाकर्ताओं के नाम मेजर जनरल एसजी वोम्बटकेरे, कर्नल पीके नायर और मेजर प्रियदर्शी चौधरी हैं.

याचिका में कहा गया है, ‘देशद्रोही और विभाजनकारी भाषणों ने न केवल देश के आपराधिक कानून का उल्लंघन किया, बल्कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद-19 पर भी हमला किया है. ये भाषण राष्ट्र के धर्म-निरपेक्ष ताने-बाने पर दाग लगाते हैं और सार्वजनिक व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव डालने की गंभीर क्षमता रखते हैं.’

याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि अगर ऐसी घटनाओं पर ध्यान नहीं दिया जाता है तो इससे सशस्त्र बलों के सैनिकों के मनोबल और एकता व अखंडता पर गंभीर दुष्प्रभाव पड़ सकता है, क्योंकि वे सभी विविध समुदायों और धर्मों से आते हैं.

याचिकाकर्ताओं ने इस बात की ओर भी ध्यान आकर्षित किया है कि ऐसे नफरती भाषण हमारे सशस्त्र बलों की लड़ने की क्षमता पर भी दुष्प्रभाव डाल सकते हैं, जिसकी प्रतिक्रियास्वरूप राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता होगा.

याचिका में दिल्ली और हरिद्वार की धर्म संसदों में कही गईं उन पंक्तियों का भी हवाला दिया गया है, जिनमें कथित तौर पर मुसलमानों के जनसंहार का आह्वान करते हुए देश की पुलिस, नेताओं, सेना और हर हिंदू से मुसलमानों के खिलाफ हथियार उठाने की अपील की गई थी.

याचिका में कहा गया है, ‘इस तरह के असंवैधानिक और नीच चरित्र के अभद्र भाषण शायद स्वतंत्रता पूर्व भारत के बाद से खुले तौर पर नहीं दिए गए हैं.’

इससे पहले बीते 10 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट उस जनहित पर सुनवाई के लिए तैयार हो गया था, जिसमें हरिद्वार धर्म संसद में नफरती भाषण देने वालों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई थी.

इस दौरान मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ के सामने याचिका दायर करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा था कि प्राथमिकी दर्ज होने के बावजूद मामले में कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है.

सशस्त्र बलों के तीन सेवानिवृत अधिकारियों की याचिका में भी आरोपियों की गिरफ्तारी न होने के संबंध में सवाल उठाए गए हैं.

बहरहाल इस बीच बीते 13 जनवरी को उत्तराखंड पुलिस ने हरिद्वार धर्म संसद में जहर उगलने वाले वसीम रिजवी उर्फ जितेंद्र नारायण त्यागी को गिरफ्तार कर लिया है, जबकि एक अन्य आरोपी गाजियाबाद के डासना मंदिर के पुजारी और जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर यति नरसिंहानंद गिरि की भी बीते शनिवार को गिरफ्तारी हो गई है.

हालांकि, नरसिंहानंद को धर्म संसद में भड़काऊ भाषण देने के मामले में गिरफ्तार नहीं किया गया है, बल्कि सितंबर माह में महिलाओं पर की गई अपमानजनक टिप्पणी के मामले में गिरफ्तार किया है.

मालूम हो कि उत्तराखंड के हरिद्वार में 17-19 दिसंबर 2021 के बीच हिंदुत्ववादी नेताओं और कट्टरपंथियों द्वारा एक ‘धर्म संसद’ का आयोजन किया गया, जिसमें मुसलमान एवं अल्पसंख्यकों के खिलाफ खुलकर नफरत भरे भाषण (हेट स्पीच) दिए गए, यहां तक कि उनके नरसंहार का आह्वान भी किया गया था.

कट्टर हिंदुत्ववादी नेता यति नरसिंहानंद इस धर्म संसद के आयोजकों में से एक थे. नरसिंहानंद पहले ही नफरत भरे भाषण देने के लिए पुलिस की निगाह में हैं.

यति नरसिंहानंद ने मुस्लिम समाज के खिलाफ भड़काऊ बयानबाजी करते हुए कहा था कि वह ‘हिंदू प्रभाकरण’ बनने वाले व्यक्ति को एक करोड़ रुपये देंगे.

मामले में 15 लोगों के खिलाफ दो प्राथमिकी दर्ज की गई हैं. इस आयोजन का वीडियो वायरल होने पर मचे विवाद के ​बाद 23 दिसंबर 2021 को इस संबंध में पहली प्राथमिकी दर्ज की गई थी, जिसमें सिर्फ जितेंद्र नारायण सिंह त्यागी को नामजद किया गया था. इस्लाम छोड़कर हिंदू धर्म अपनाने से पहले त्यागी का नाम वसीम रिजवी था.

प्राथमिकी में 25 दिसंबर 2021 को बिहार निवासी स्वामी धरमदास और साध्वी अन्नपूर्णा उर्फ पूजा शकुन पांडेय के नाम जोड़े गए. पूजा शकुन पांडेय निरंजनी अखाड़े की महामंडलेश्वर और हिंदू महासभा के महासचिव हैं.

इसके बाद बीते एक जनवरी को इस एफआईआर में यति नरसिंहानंद और रूड़की के सागर सिंधुराज महाराज का नाम शामिल किया गया था.

बीती दो जनवरी को राज्य के पुलिस महानिदेशक ने मामले की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का भी गठन किया था. उसके बाद बीते तीन जनवरी को धर्म संसद के संबंध में 10 लोगों के खिलाफ दूसरी एफआईआर दर्ज की गई थी.

दूसरी एफआईआर में कार्यक्रम के आयोजक यति नरसिंहानंद गिरि, जितेंद्र नारायण त्यागी (जिन्हें पहले वसीम रिज़वी के नाम से जाना जाता था), सागर सिंधुराज महाराज, धरमदास, परमानंद, साध्वी अन्नपूर्णा, आनंद स्वरूप, अश्विनी उपाध्याय, सुरेश चव्हाण और प्रबोधानंद गिरि को नामजद किया गया है.

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