उत्तर प्रदेश में चुनावी सरगर्मी चरम पर है लेकिन सुल्तानपुर के सांसद और भाजपा के स्टार प्रचारक वरुण गांधी गायब हैं.
वरुण गांधी अपने संसदीय क्षेत्र सुल्तानपुर में भी भाजपा केे चुनाव प्रचार में शामिल नहीं हो रहे हैं. हाल ही में वह इंदौर में थे. वहां एक कार्यक्रम में उन्होंने कुछ ऐसी बातें बोली जो भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के गले उतरने लायक नहीं थी.
वरुण ने सिस्टम पर अल्पसंख्यकों के विकास में फेल होने का आरोप लगाया. उन्होंने रोहित वेमुला के सुसाइड का मुद्दा भी उठाया. वरुण ने कहा कि रोहित वेमुला का सुसाइड नोट पढ़कर उनकी आंखों में आंसू आ गए थे. किसानों की आत्महत्या के मुद्दे पर भी उन्होंने कहा कि देश में कर्ज़ वसूली में भेदभाव किया जा रहा है. अमीरों को तो रियायत दे दी जाती है, लेकिन ग़रीब को जान देनी पड़ती है. उनके इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर चुटकी ली गई कि शायद वरुण अपने भाई राहुल गांधी का भाषण पढ़ गए. हालांकि इसके बाद उनका नाम पार्टी के स्टार प्रचारकों की सूची से हटा दिया गया.
दरअसल पिछले कुछ दिनों से देखने को मिल रहा है कि भाजपा और वरुण के संबंध उतने अच्छे नहीं रह गए हैं जितने एक दौर में हुआ करते थे. पिछले दिनों जब भाजपा ने उत्तर प्रदेश में स्टार प्रचारकों की पहली सूची जारी की तो वरुण का नाम गायब था हालांकि दूसरी सूची में उनका नाम आया लेकिन 40 लोगों की सूची में 39वें नंबर पर. इससे पहले वरुण को भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव के पद से हटा दिया गया था.
राजनीति के जानकारों का कहना है कि वरुण गांधी उत्तर प्रदेश में भाजपा के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार भी हो सकते थे अगर उनके नाम में गांधी नहीं जुड़ा होता. भाजपा के कांग्रेस मुक्त भारत अभियान में निशाने पर अक्सर गांधी-नेहरू सरनेम रहता है.
वरिष्ठ पत्रकार राशिद किदवई कहते हैं,’ भाजपा ने गांधी परिवार के खिलाफ एक मोर्चा खोला हुआ है. वरुण गांधी कही न कही इंदिरा गांधी के पोते होने के नाते खुद को एक सांसद से ज्यादा मानते हैं. गांधी सरनेम का उनकी नज़र में काफ़ी महत्व है. यही भाजपा और उनके बीच टकराव का प्रमुख कारण है.’
वे आगे कहते हैं,’ दरअसल भाजपा अभी विरोधाभास के दौर से गुजर रही है. कहने को वो परिवारवाद के खिलाफ है लेकिन परिवारवाद उसके भीतर है और बाहर जब वह परिवारवाद का विरोध करती है तो नेहरू-गांधी सरनेम पर निशाना साधती है तो वहीं दूसरी ओर वरुण को अपने गांधी सरनेम से कोई परेशानी नहीं है. भाजपा देश में हर कमी के लिए नेहरू और इंदिरा गांधी को जिम्मेदार ठहराती है तो वहीं वरुण कई बार साफगोई से इंदिरा और नेहरू को याद करके गर्व महसूस करते हैं.’
1980 में पैदा हुए वरुण गांधी ने बहुत छोटी उम्र से ही राजनीति का ककहरा सीखना शुरू कर दिया था. 1999 के लोकसभा चुनाव में वह अपनी मां के साथ चुनावी रैलियों में नजर आए. 2004 में वे भाजपा में शामिल हुए. 2009 में उन्होंने पीलीभीत लोकसभा सीट से चुनाव जीता. हालांकि इस दौरान उनके एक विवादित बयान ने उन्हें सुर्खियों में ला दिया था.
वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह कहते हैं, ‘वरुण गांधी का ये गुमान कि गांधी सरनेम होने की वजह से उनके साथ विशिष्ट व्यवहार किया जाए, यह उनकी राह में रोड़ा बना हुआ है. भाजपा ने बहुत कम उम्र में ही वरुण को पार्टी महासचिव बना दिया. हालांकि उसके बाद से वे लगातार पार्टी के विरोध में बयान देते रहे. उनकी पार्टी विरोधी हरकतों की एक लंबी सूची है. सबसे पहले 2013 में वरुण गांधी पश्चिम बंगाल के प्रभारी थे. उस समय कोलकाता के परेड ग्राउंड में तब प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की रैली थी. सारी रैली का प्रबंध वरुण ने ही किया था. पश्चिम बंगाल में भाजपा के जनाधार के हिसाब से अच्छी रैली हुई थी लेकिन वरुण ने अगले दिन अखबार वालों से कहा रैली विफल रही. भाजपा-वरुण के रिश्तों में कड़वाहट की शुरुआत यहीं से हुई.
इसके बाद जब वो 2014 में सुल्तानपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने गए तो पीलीभीत से अपने कार्यकर्ताओं को साथ ले गए. स्थानीय भाजपा नेताओं को कोई भाव नहीं दिया. इसके अलावा उन्होंने अपने संसदीय क्षेत्र में किसी भी भाजपा नेता को प्रचार नहीं करने दिया. एक दिन वरुण जब मंच पर बोल रहे थे तो मोदी-मोदी के नारे लग रहे थे. तो उन्होंने मंच से ही डांटा कि मोदी-मोदी क्या है? इसके बाद जब अमित शाह अध्यक्ष बने तो उन्हें महासचिव के पद से हटा दिया गया. इसके बाद मेनका गांधी ने एक बयान दिया कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद के लिए वरुण गांधी सबसे योग्य उम्मीदवार है. तो उन्हें बुलाकर समझाया गया कि भाजपा में ऐसा नहीं होता. इसके बाद जब इलाहाबाद में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई तो वरुण ने मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के लिए पोस्टर-बैनर लगवाए, नारे लगवाए . तब से उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया.’
भाजपा सांसद वरुण गांधी पर आर्म्स डील की जानकारी लीक करने के आरोप भी लगे. कहा गया कि हनी ट्रैप के ज़रिए उन्हें फंसाया गया और फिर उन्होंने हथियार निर्माताओं को रक्षा मामलों से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां लीक की थीं. हालांकि वरुण ने इन आरोपों से इनकार किया.
वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय कहते हैं, ‘गांधी होना भाजपा में उनकी ताकत बन सकता था अगर वो बुद्धिमानी से समझ-बूझ से चलते, लेकिन उन्होंने इसे कमजोरी बना लिया. अब हर पार्टी का अपना एक स्वभाव होता है. वरुण गांधी आजकल भाजपा में फिट नहीं हो पा रहे हैं. अंहकार और महत्वाकांक्षा वरुण के व्यक्तित्व का हिस्सा बन गए हैं. जब वे भाजपा में आए थे तो उनके गॉडफादर थे प्रमोद महाजन. प्रमोद महाजन के रहते सब ठीक था. लेकिन अब उनकी महत्वाकांक्षा है कि भाजपा उन्हें कंधे पर बैठाए और मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दे यह संभव नहीं हो पा रहा है.’
जानकारों का कहना है कि कांग्रेस मुक्त भारत की सोच रखने वाली पार्टी में वरुण का कोई भविष्य नहीं है. भाजपा में अभी संघ का जोर है. वरुण गांधी की संघ की पृष्ठभूमि नहीं है. वह स्वतंत्र रूप से सोचने वाले व्यक्ति हैं. यह उनकी राह में बाधा बन रहा है.
वरिष्ठ पत्रकार अजय बोस कहते हैं, ‘जबसे मोदी केंद्र में आए हैं तो यह साफ हो गया है कि नई भाजपा को गांधी सरनेम से परेशानी है. जब वरुण को पार्टी में लाया था तब यही गांधी नाम पार्टी के लिए ‘एसेट’ था पर अब ये ‘लायबिलिटी’ बन गया है. दूसरा, वरुण हमेशा से एक शांत राजनेता रहे जो सबकी बात मानते थे, पर उनके पास अपनी एक आज़ाद सोच है, जिसका होना हो सकता लोगों को पसंद न हो. और तीसरा हो सकता है वे पार्टी में कोई और पावर सेंटर न तैयार करना चाहते हों.’
यानी वरुण गांधी का भविष्य अभी अमित शाह और नरेंद्र मोदी की भाजपा में स्पष्ट नहीं हैं तो ऐसे में वरुण की आगे की राह क्या होगी?
राशिद किदवई कहते हैं,’ वरुण की दुविधा यह है कि जैसे उनकी मां मेनका गांधी का सोनिया गांधी से लंबा विवाद रहा, वैसे ही एक तरह से वरुण की भी राहुल गांधी से प्रतिस्पर्धा है. वरुण अब कांग्रेस में आ जाए यह मुश्किल है. दूसरे छोटे दलों में उनका जाना मुश्किल है. भाजपा में आज भले ही जो दौर चल रहा है, वरुण पार्टी में ही रहेंगे.’
वहीं प्रदीप सिंह कहते हैं,’ मुझे लगता है कि 2019 में वरुण को भाजपा टिकट नहीं देगी और इस बात का अहसास वरुण को हो गया है. कांग्रेस में उनके जाने की संभावना कम ही है. जब सोनिया गांधी पार्टी में प्रियंका को आगे नहीं बढ़ने दे रही हैं तो वरुण के लिए तो मौका कम ही हैं.’