विवादित ‘स्किन टू स्किन टच’ फ़ैसला देने वाली जज का कार्यकाल ख़त्म होने से दो दिन पहले इस्तीफ़ा

बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ की अतिरिक्त जज पुष्पा वी. गनेडीवाला ने एक बच्ची के यौन उत्पीड़न के लिए पॉक्सो और आईपीसी के तहत दोषी ठहराए गए शख़्स को पॉक्सो से बरी करते हुए कहा था कि त्वचा से त्वचा के संपर्क के बिना यौन हमला नहीं माना जा सकता. उनके इस्तीफ़े की वजह पदोन्नति न होना बताया गया है.

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बॉम्बे हाईकोर्ट की जज पुष्पा गनेडीवाला (फोटो साभारः वेबसाइट)

बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ की अतिरिक्त जज पुष्पा वी. गनेडीवाला ने एक बच्ची के यौन उत्पीड़न के लिए पॉक्सो और आईपीसी के तहत दोषी ठहराए गए शख़्स को पॉक्सो से बरी करते हुए कहा था कि त्वचा से त्वचा के संपर्क के बिना यौन हमला नहीं माना जा सकता. उनके इस्तीफ़े की वजह पदोन्नति न होना बताया गया है.

बॉम्बे हाईकोर्ट की जज पुष्पा गनेडीवाला (फोटो साभारः वेबसाइट)

नई दिल्लीः बॉम्बे हाईकोर्ट की अतिरिक्त जज जस्टिस पुष्पा वी गनेडीवाला ने अपना कार्यकाल समाप्त होने से दो दिन पहले गुरुवार को अतिरिक्त जज के पद से इस्तीफा दे दिया.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, कहा जा रहा है कि गनेडीवाला ने पदोन्नति नहीं किए जाने के बीच इस्तीफा दिया है.

बता दें कि पिछले साल दिसंबर में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने बॉम्बे हाईकोर्ट की स्थायी जज के रूप में जस्टिस गनेडीवाला के नाम की सिफारिश न करने का फैसला किया था.

गनेडीवाला यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत यौन उत्पीड़न से जुड़े अपने दो विवादित फैसलों को लेकर आलोचनाओं के केंद्र में रही थीं.

जस्टिस गनेडीवाला के डिमोशन से जुड़े कॉलेजियम के इस दुर्लभ फैसले से मतलब है कि 12 फरवरी को उनका कार्यकाल समाप्त होने पर वह जिला न्यायपालिका लौटेंगी.

2019 में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने स्थायी जज के रूप में उनकी पदोन्नति संबंधी पत्र पर हस्ताक्षर किए थे लेकिन पॉक्सो से जुड़े उनके विवादित फैसलों के बाद यह निर्णय वापस ले लिया था. इसके बाद कॉलेजियम ने इस फैसले को एक साल के लिए टाल दिया था.

दिसंबर 2021 में प्रकाशित एक रिपोर्ट में एनडीटीवी ने सूत्रों के हवाले से उनकी पदोन्नति खारिज किए जाने के बारे में बताया था.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि ऐसा दूसरी बार हुआ है जब सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में उनकी पदोन्नति को खारिज किया.

इससे पहले 2021 की शुरुआत में केंद्र की ओर से गनेडीवाला को सेवा विस्तार दिया गया था, लेकिन सामान्य तौर पर मिलने वाली दो साल की अवधि को घटाकर एक कर दिया था.

केंद्र का फैसला सुप्रीम कोर्ट के पैनल द्वारा किए उस दुर्लभ निर्णय के एक महीने बाद आया था जब बॉम्बे हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में उनकी स्थायी करने के लिए सरकार को भेजी गई अपनी सिफारिश वापस ले ली थी.

उस समय सुप्रीम कोर्ट के सूत्रों ने एनडीटीवी को बताया था कि जस्टिस गनेडीवाला को ‘अधिक एक्सपोजर’ की जरूरत है. इन सूत्र का कहना था, ‘उनके खिलाफ कुछ भी व्यक्तिगत नहीं है. उन्हें और एक्सपोजर की जरूरत है और हो सकता है कि जब वह वकील थीं, तब इस तरह के मामलों को नहीं देखती थीं. उन्हें अधिक एक्सपोजर और ट्रेनिंग की जरूरत है.’

जस्टिस गनेडीवाला के जिन फैसलों पर विवाद हुआ था उनमें से एक में उन्होंने कहा था कि अगर आरोपी और पीड़िता के बीच त्वचा से त्वचा के संपर्क या स्किन टू स्किन टच नहीं हुआ है तो उसे पॉक्सो अधिनियम की धारा 7 के तहत यौन उत्पीड़न का अपराध नहीं माना जाएगा. इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया था.

इसके बाद एक अन्य मामले में जस्टिस गनेडीवाला ने एक और फैसले में यह कहते हुए कि अभियोक्ता (पीड़ित महिला, जो इस मामले में एक पांच साल की बच्ची थी) का हाथ पकड़ना, पैंट की जिप खोलना पॉक्सो के तहत यौन हमला नहीं है, पॉक्सो के तहत दोषी ठहराए गए एक व्यक्ति की सजा को रद्द कर दिया था.

बता दें कि पॉक्सो कानून के तहत जब कोई यौन मंशा के साथ बच्ची/बच्चे के निजी अंगों, वक्ष को छूता है या बच्ची/बच्चे से अपना या किसी व्यक्ति के निजी अंग को छुआता है या यौन मंशा के साथ कोई अन्य कृत्य करता है जिसमें संभोग किए बगैर यौन मंशा से शारीरिक संपर्क शामिल हो, उसे यौन हमला कहा जाता है.

सूत्रों के अनुसार, जस्टिस गनेडीवाला द्वारा दिए गए इन्हीं निर्णयों के बाद कॉलेजियम ने उन्हें स्थायी जज बनाने की सिफारिश पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.

महाराष्ट्र के अमरावती जिले के परतवाड़ा में 1969 में जन्मीं जस्टिस गनेडीवाला 2007 में जिला जज नियुक्त हुई थीं. 2019 में उन्हें नागपुर में बॉम्बे हाईकोर्ट की अतिरिक्त जज के तौर पर नियुक्त किया गया था.

बता दें कि हाईकोर्ट में अतिरिक्त जज संविधान के अनुच्छेद 224 (1) के तहत या तो सीधे बार से या राज्य न्यायपालिका द्वारा नियुक्त किए जाते हैं. इनका कार्यकाल दो साल से अधिक नहीं होता और इनकी सेवानिवृत्ति की उम्र 62 वर्ष है.

मालूम हो कि अतिरिक्त जज के पद संवैधानिक रूप से अदालत के बढ़ते बोझ से निपटने के लिए बनाए गए थे लेकिन इनका इस्तेमाल स्थायी जज के रूप में पदोन्नत किए जाने से पहले जजों की प्रोबेशन अवधि के रूप में किया जाने लगा.

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