असम सरकार द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि बीते छह महीने की क़ानून-व्यवस्था की समीक्षा के बाद पूरे राज्य को 28 फरवरी, 2022 से अगले छह महीने के लिए ‘अशांत क्षेत्र’ घोषित किया है. नवंबर 1990 में राज्य में आफ़स्पा लागू किया गया था, जिसके बाद लगातार छह महीने के लिए इसकी अवधि में विस्तार किया जा रहा है.
गुवाहाटी: असम सरकार ने मंगलवार को कहा कि उसने विवादास्पद सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (आफस्पा), 1958 की अवधि को पूरे राज्य में अगले छह महीने के लिए विस्तार दिया है जोकि 28 फरवरी से प्रभावी है.
आफस्पा के तहत सुरक्षा बलों को बिना किसी पूर्व नोटिस के किसी भी क्षेत्र में छापा मारने, अभियान चलाने, किसी भी व्यक्ति के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी करने या गिरफ्तार करने का अधिकार है. इसके अलावा, किसी अभियान में चूक होने की सूरत में भी आफस्पा के तहत बलों को निर्धारित छूट का लाभ मिलता है.
मंगलवार को जारी एक आधिकारिक विज्ञप्ति में कहा गया, ‘पिछले छह महीने की कानून-व्यवस्था की समीक्षा के बाद राज्य सरकार ने पूरे असम राज्य को 28 फरवरी, 2022 से अगले छह महीने के लिए ‘अशांत क्षेत्र’ घोषित किया है.’
#PressRelease | 01.03.2022
Assam declared as disturbed area for six months pic.twitter.com/LY3Y7ykhs3— DIPR Assam (@diprassam) March 1, 2022
उल्लेखनीय है कि नवंबर 1990 में असम में आफस्पा लागू किया गया था और इसके बाद से लगातार छह महीने के लिए इसकी अवधि में विस्तार किया जा रहा है.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने 1 जनवरी को कहा था कि पांच-छह जिलों को छोड़कर असम से सेना को वापस ले लिया गया है और जब आफस्पा का नवीनीकरण होगा, तो राज्य सरकार कुछ व्यावहारिक निर्णय लेगी.
उन्होंने कहा था, ‘जहां तक आफस्पा का सवाल है, असम 2022 में कुछ युक्तिसंगत होगा … हम कैसे और कब नहीं जानते. लेकिन मैं एक आशावादी व्यक्ति हूं. हम 2022 को आशा के वर्ष के रूप में देख रहे हैं. आफस्पा के बारे में कुछ सकारात्मक होगा.’
मालूम हो कि नागरिक समाज समूह और अधिकार कार्यकर्ता सशस्त्र बलों द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन का दावा करते हुए पूर्वोत्तर से कठोर कानून आफस्पा को वापस लेने की मांग कर रहे हैं.
पिछले साल चार दिसंबर को मणिपुर के पड़ोसी राज्य नगालैंड के मोन जिले में सेना की एक टुकड़ी द्वारा की गई गोलीबारी में 14 नागरिकों की मौत के बाद पूर्वोत्तर से आफस्पा को वापस लेने की मांग तेज हो गई है.
पिछले साल 19 दिसंबर को नगालैंड विधानसभा ने केंद्र सरकार से पूर्वोत्तर, खास तौर से नगालैंड से आफस्पा हटाने की मांग को लेकर एक प्रस्ताव पारित किया था. प्रस्ताव में ‘मोन जिले के ओटिंग-तिरु गांव में चार दिसंबर को हुई इस दुखद घटना में लोगों की मौत की आलोचना की गई थी.
नगालैंड में इन हत्याओं के बाद से राजनेताओं, सरकार प्रमुखों, विचारकों और कार्यकर्ताओं ने एक सुर में आफस्पा को हटाने की मांग उठाई है. इनका कहना है कि यह कानून सशस्त्र बलों को बेलगाम शक्तियां प्रदान करता है और यह मोन गांव में फायरिंग जैसी घटनाओं के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार है.
पिछले साल दिसंबर में केंद्र ने नगालैंड की स्थिति को अशांत और खतरनाक करार दिया तथा आफस्पा के तहत 30 दिसंबर से छह और महीने के लिए पूरे राज्य को अशांत क्षेत्र घोषित कर दिया था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)