असम साहित्य सभा और स्टूडेंट यूनियन ने राज्य में हिंदी को अनिवार्य विषय बनाए जाने का विरोध किया

असम में विपक्षी दलों ने भी केंद्र सरकार की उस घोषणा का विरोध किया है, जिसमें कहा गया था कि पूर्वोत्तर के आठों राज्य 10वीं कक्षा तक हिंदी को अनिवार्य विषय बनाने पर सहमत हो गए हैं. उन्होंने इस क़दम को ‘सांस्कृतिक साम्राज्यवाद की ओर बढ़ाया गया क़दम’ क़रार दिया.

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Moradabad: Students participate in a programme to mark 'Hindi Diwas', at a school in Moradabad, Friday, Sep 14, 2018. (PTI Photo) (PTI9_14_2018_000111B)
(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

असम में विपक्षी दलों ने भी केंद्र सरकार की उस घोषणा का विरोध किया है, जिसमें कहा गया था कि पूर्वोत्तर के आठों राज्य 10वीं कक्षा तक हिंदी को अनिवार्य विषय बनाने पर सहमत हो गए हैं. उन्होंने इस क़दम को ‘सांस्कृतिक साम्राज्यवाद की ओर बढ़ाया गया क़दम’ क़रार दिया.

Moradabad: Students participate in a programme to mark 'Hindi Diwas', at a school in Moradabad, Friday, Sep 14, 2018. (PTI Photo) (PTI9_14_2018_000111B)
(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

गुवाहाटी: करीब एक सदी पुरानी साहित्यिक सांस्कृतिक संस्था असम साहित्य सभा (एएसएस) ने पूर्वोत्तर राज्यों में 10वीं कक्षा तक हिंदी को अनिवार्य विषय बनाने के कदम की आलोचना की है.

ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) ने भी सरकार से यहां की मूल भाषाओं को संरक्षित करने और प्रोत्साहित करने पर ध्यान केंद्रित करने की मांग की है.

असम साहित्य सभा के महासचिव जाधव चंद्र शर्मा ने एक बयान में कहा कि यदि हिंदी को अनिवार्य बनाया जाता है तो संपर्क भाषा के रूप में क्षेत्रीय भाषाओं और असमिया भाषा का भविष्य खतरे में पड़ जाएगा.

उन्होंने कहा कि सभा सीबीएसई (केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड) और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में असमिया की पढ़ाई के लिए राज्य सरकार पर दबाव बना रही है, लेकिन इस संबंध में अब तक कोई प्रगति नहीं हुई है.

उल्लेखनीय है कि साहित्य सभा प्रभावशाली संगठन है, जिसका गठन वर्ष 1917 में किया गया था और यह असमिया भाषा, साहित्य एवं संस्कृति के विकास के लिए कार्य करती है.

आसू के मुख्य सलाहकार समुज्जल कुमार भट्टाचार्य ने जोर देकर कहा कि यह कदम पूर्वोत्तर क्षेत्र की स्थानीय भाषाओं के भविष्य के लिए खतरा है.

उन्होंने ट्वीट किया, ‘हम असमिया और अन्य मातृ भाषाओं की कीमत पर हिंदी को अनिवार्य बनाने के सरकार के कदम का पुरजोर तरीके से विरोध करते हैं.’

भट्टाचार्य ने कहा, ‘यह पूर्वोत्तर की स्थानीय संस्कृति और भाषा के लिए खतरा है.’ उन्होंने सरकार से तुंरत यह फैसला वापस लेने की मांग की.

असम में विपक्षी दलों ने केंद्र की उस घोषणा का विरोध किया है, जिसमें कहा गया था कि पूर्वोत्तर के आठों राज्य 10वीं कक्षा तक हिंदी को अनिवार्य विषय बनाने पर सहमत हो गए हैं. उन्होंने इस कदम को ‘सांस्कृतिक साम्राज्यवाद की ओर बढ़ाया गया कदम’ करार दिया.

कांग्रेस और असम जातीय परिषद सहित विपक्षी दलों ने यह फैसला वापस लेने की मांग करते हुए कहा कि यह क्षेत्र के लोगों के हितों के खिलाफ है.

उल्लेखनीय है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सात अप्रैल को नई दिल्ली में संसदीय राजभाषा समिति की बैठक में कहा था कि पूर्वोत्तर के सभी राज्य 10वीं कक्षा तक हिंदी को अनिवार्य विषय बनाने पर सहमत हो गए हैं.

उन्होंने यह भी कहा था कि आठ पूर्वोत्तर राज्यों में 22,000 हिंदी शिक्षकों की भर्ती की गई है. साथ ही पूर्वोत्तर के नौ आदिवासी समुदायों ने अपनी बोलियों की लिपि को देवनागरी में बदल दिया है.

इसके अलावा पूर्वोत्तर के सभी आठ राज्यों ने 10वीं कक्षा तक के स्कूलों में हिंदी अनिवार्य करने पर सहमति जताई है.

साथ ही शाह ने कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने निर्णय किया है कि सरकार चलाने का माध्यम राजभाषा है और यह निश्चित तौर पर हिंदी के महत्व को बढ़ाएगा.

गृह मंत्री ने कहा था कि अन्य भाषा वाले राज्यों के नागरिक जब आपस में संवाद करें तो वह ‘भारत की भाषा’ (हिंदी) में हो.

उन्होंने सदस्यों को बताया था कि मंत्रिमंडल का 70 प्रतिशत एजेंडा अब हिंदी में तैयार किया जाता है. उन्होंने कहा था कि वक्त आ गया है कि राजभाषा हिंदी को देश की एकता का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया जाए.

उन्होंने कहा था कि हिंदी की स्वीकार्यता स्थानीय भाषाओं के नहीं, बल्कि अंग्रेजी के विकल्प के रूप में होनी चाहिए.

अमित शाह द्वारा हिंदी भाषा पर जोर दिए जाने की विपक्षी दलों ने तीखी आलोचना की थी और इसे भारत के बहुलवाद पर हमला बताया था.

साथ ही विपक्ष ने सत्तारूढ़ भाजपा पर गैर-हिंदी भाषी राज्यों के खिलाफ ‘सांस्कृतिक आतंकवाद’ के अपने एजेंडे को शुरू करने की कोशिश करने का आरोप लगाया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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