श्रीलंका में वित्तीय संकट के भारत के लिए क्या निहितार्थ हैं

श्रीलंका में चल रहे आर्थिक और राजनीतिक संकट के भारत के लिए कई व्यावसायिक प्रभाव हैं. लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत इस अवसर का उपयोग उसके साथ अपने राजनयिक संबंधों को संभालने के लिए कर सकता है, जो श्रीलंका की चीन के साथ नज़दीकी के चलते प्रभावित हुए हैं.

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अप्रैल 2022 में प्रेसिडेंशियल सेक्रेटेरिएट के बाहर राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के खिलाफ हुआ एक प्रदर्शन. (फोटो: रॉयटर्स)

श्रीलंका में चल रहे आर्थिक और राजनीतिक संकट के भारत के लिए कई व्यावसायिक प्रभाव हैं. लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत इस अवसर का उपयोग उसके साथ अपने राजनयिक संबंधों को संभालने के लिए कर सकता है, जो श्रीलंका की चीन के साथ नज़दीकी के चलते प्रभावित हुए हैं.

अप्रैल 2022 में प्रेसिडेंशियल सेक्रेटेरिएट के बाहर राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के खिलाफ हुआ एक प्रदर्शन. (फोटो: रॉयटर्स)

हजारों प्रदर्शनकारियों द्वारा कोलंबो में प्रधानमंत्री के आधिकारिक आवास ‘टेंपल ट्रीज’ के मुख्य द्वार को तोड़ने के बाद बड़ी संख्या में सशस्त्र सैनिक मंगलवार, 10 मई को महिंदा राजपक्षे को किसी अज्ञात स्थान पर ले गए. मुख्य द्वार को तोड़ने के बाद प्रदर्शनकारियों ने दो मंजिला इमारत पर धावा बोलने का प्रयास किया, जहां प्रधानमंत्री राजपक्षे अपने परिवार के साथ छिपे हुए थे.

एक शीर्ष सुरक्षा अधिकारी ने कहा, ‘सुबह से पहले के ऑपरेशन के बाद, पूर्व पीएम और उनके परिवार को सेना द्वारा सुरक्षित निकाल लिया गया था, कम से कम 10 पेट्रोल बम परिसर में फेंके गए थे.’

आपातकाल की स्थिति में पिछले हफ्ते से हिंसक विरोध प्रदर्शनों में पांच लोगों की मौत हो गई है और 200 से अधिक लोग घायल हो गए हैं. अराजकता के दृश्य देखे गए और दर्जनों शीर्ष राजपक्षे वफादारों के घरों को आग लगा दी गई. कर्फ्यू और अनिश्चितता के बीच प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने सोमवार 9 मई को अपना इस्तीफा दे दिया.

राजपक्षे दशकों से दक्षिण एशियाई देश का सबसे शक्तिशाली राजनीतिक परिवार रहा है, लेकिन मौजूदा आर्थिक चुनौतियां उनके लिए एक राजनीतिक दलदल में बदल गई हैं. ‘द टर्मिनेटर’ के रूप में मशहूर राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे कभी श्रीलंका की राजनीति में सबसे दुर्जेय व्यक्ति थे. आज उनके पद छोड़ने का आह्वान किया जा रहा है.

पड़ोसी देश श्रीलंका में लोगों का गुस्सा महीनों से बढ़ते आर्थिक संकट का परिणाम है. विदेशी मुद्रा की भारी कमी के कारण ईंधन सहित आवश्यक आयात के लिए भुगतान करने में असमर्थता के कारण इस द्वीप राष्ट्र में संकट गहरा गया है.

13 घंटे तक चलने वाली बिजली कटौती से लेकर भोजन, पेट्रोलियम उत्पादों, आवश्यक वस्तुओं की कमी और 17.5 प्रतिशत की बढ़ती दो अंकों की मुद्रास्फीति दर तक श्रीलंका में स्थिति चिंताजनक है. आगामी राजनीतिक अनिश्चितता जनता के बीच हिंसा को बढ़ावा दे रही है.

भारत, श्रीलंका का एकमात्र निकटतम पड़ोसी, उस आर्थिक और राजनीतिक संकट से अछूता नहीं रह सकता है जिसने छोटे-से दक्षिणी द्वीपीय राष्ट्र को अपनी चपेट में ले लिया है. नई दिल्ली श्रीलंका में इस संकट द्वारा उपजी चुनौतियों और अवसरों, दोनों ही का सामना करने का प्रयास कर रहा है.

मुद्रास्फीति के 17.5% के सर्वकालिक उच्च स्तर पर एक किलोग्राम चावल जैसे खाद्य पदार्थों की कीमतें 500 श्रीलंकाई रुपये तक बढ़ गई हैं, जबकि आम तौर पर इसकी कीमत लगभग 80 रुपये होती है. निर्यात की कमी है, एक 400 ग्राम दूध पाउडर की कीमत 250 रुपये से अधिक बताई जाती है, जबकि आम समय में इसकी कीमत लगभग 60 रुपये होती है.

देश पेट्रोल, खाद्य पदार्थों और दवाओं सहित कई आवश्यक वस्तुओं के आयात पर निर्भर है. अधिकांश देश इन वस्तुओं के व्यापार के लिए विदेशी मुद्रा हाथ में रखते हैं, लेकिन श्रीलंका में विदेशी मुद्रा की कमी के कारण कीमतें आसमान छू रही हैं.

कई विशेषज्ञों का मानना है कि इस संकट के पीछे श्रीलंका के चीन के साथ आर्थिक संबंध हैं. संयुक्त राज्य अमेरिका ने इस घटना को ‘ऋण-जाल कूटनीति’ कहा है, जिसके तहत ऋण देने वाला देश इसलिए ऐसा करता है ताकि उसका राजनीतिक लाभ ले सके.

श्रीलंका को चीन के बुनियादी ढांचे से संबंधित ऋणों में हुए डिफ़ॉल्ट, विशेष रूप से हंबनटोटा बंदरगाह संबंधी फंडिंग को इस संकट का कारण बताया जा रहा है. हंबनटोटा बंदरगाह के निर्माण को चीनी एक्ज़िम बैंक द्वारा फाइनेंस  किया गया था.

दूसरी ओर, अर्थशास्त्रियों का कहना है कि हंबनटोटा बंदरगाह की गड़बड़ी संकट के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार नहीं है. बंदरगाह घाटे में चल रहा था, इसलिए श्रीलंका ने चीनी व्यापारी समूह को बंदरगाह को 99 साल के लिए पट्टे पर दिया, जिसने श्रीलंका को 1.12 बिलियन अमेरिकी डॉलर का भुगतान किया.

वास्तव में श्रीलंका कई वर्षों से आर्थिक रूप से कुप्रबंधित है और आज इसका रुपया दुनिया की सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली मुद्रा है. निर्यात पर बहुत अधिक निर्भर श्रीलंका को अक्सर भुगतान संतुलन संकट (balance of payments crises) का सामना करना पड़ा है.

बीते कई दशकों के दौरान इसने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से 16 कर्जे लिए. इनमें से प्रत्येक ऋण, बजट घाटे में कमी, सख्त मौद्रिक नीति, खाद्य और मुद्रा मूल्यह्रास के लिए सरकारी सब्सिडी में कटौती जैसी सख्त शर्तों के साथ मिला. लेकिन अर्थव्यवस्था में प्रोत्साहन देने की जरूरत का मतलब था कि आईएमएफ की शर्तों को पूरा नहीं किया गया और श्रीलंका की अर्थव्यवस्था अधिक से अधिक कर्ज में डूबती गई.

सरकार-विरोधी प्रदर्शनकारियों द्वारा राजपक्षे सरकार के कैबिनेट मंत्री सनथ निशांता के घर में लगाई गई आग. (फोटो: रॉयटर्स)

अप्रैल 2019 के इस्लामी आतंकवादी हमलों ने कोलंबो में चर्चों और लक्जरी होटलों को निशाना बनाया, जिससे पर्यटकों के आगमन में भारी गिरावट आई. बताया गया कि पर्यटन में 80% तक की गिरावट ने विदेशी मुद्रा भंडार को समाप्त कर दिया.

इसके बाद राजपक्षे सरकार ने मूल्य वर्धित और कॉरपोरेट करों में कटौती और कई अन्य अप्रत्यक्ष करों को समाप्त करने के लिए एक तर्कहीन पर लोकलुभावन निर्णय लिया. 2020 तक श्रीलंका कोविड-19 महामारी से नकारात्मक रूप से प्रभावित था.

पिछले साल राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के कृषि को 100 प्रतिशत जैविक बनाने के लिए सभी रासायनिक उर्वरकों पर प्रतिबंध लगाने के अचानक लिए गए निर्णय ने देश के कृषि उत्पादन, विशेष रूप से चावल उत्पादन को बुरी तरह प्रभावित किया. चावल, जो श्रीलंका में एक प्रमुख उत्पाद है, सहित अनाज की कीमतें आसमान पर पहुंच गई.

देश अब भारत, चीन और पाकिस्तान से चावल आयात कर रहा है. श्रीलंका में अब 20 लाख किसान संकट में हैं. चाय उत्पादन में गिरावट से देश को 425 मिलियन डॉलर का नुकसान हो सकता है. इसके बाद सरकार ने 20 लाख चावल किसानों को जैविक कृषि अभियान के लिए 20 करोड़ डॉलर का मुआवजा देने का फैसला किया, लेकिन अब बहुत देर हो चुकी है.

आईएमएफ की एक टीम ने इस सप्ताह कोलंबो में अधिकारियों के साथ एक राहत पैकेज पर काम करना शुरू किया, जिसमें कड़े सुधारों के साथ वित्तीय सहायता भी शामिल होगी.

श्रीलंका में चल रहे आर्थिक और राजनीतिक संकट के भारत के लिए कई प्रभाव हैं. उदाहरण के लिए, भारत से श्रीलंका को भेजे गए हजारों कंटेनर, जिनमें स्वयं की खपत के साथ-साथ ट्रांसशिपमेंट कार्गो भी शामिल हैं, कोलंबो के बंदरगाह पर पड़े हैं क्योंकि अधिकारी टर्मिनलों के बीच कंटेनरों के हस्तांतरण को वहन करने में असमर्थ हैं. इससे श्रीलंका के लिए भारतीय बंदरगाहों पर माल का ढेर लग गया है.

कोलंबो के बंदरगाह पर परिचालन में कोई भी व्यवधान भारत को लागत और देरी में वृद्धि के प्रति संवेदनशील बनाता है. श्रीलंका में अस्थिरता इंडियन ऑयल, एयरटेल, ताज होटल्स, डाबर, एसबीआई, टाटा कम्युनिकेशंस आदि जैसी बड़ी भारतीय कंपनियों के हितों को प्रभावित कर सकती है, जिन्होंने श्रीलंका में निवेश किया है.

भारतीय निर्यातक श्रीलंका में आपूर्ति की कमी से प्रभावित चाय और कपड़ा बाजारों पर कब्जा करने के लिए खुद को अच्छी स्थिति में पा सकते हैं. भारत ने विदेशी मुद्रा को बढ़ावा देने के लिए खाद्य, ईंधन और दवाओं के आयात और मुद्रा स्वैप के लिए क्रेडिट लाइनों के अलावा 2.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर की वित्तीय सहायता प्रदान की है. लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत इस अवसर का उपयोग श्रीलंका के साथ अपने राजनयिक संबंधों को संतुलित करने के लिए कर सकता है, जो चीन के साथ श्रीलंका की निकटता के कारण प्रभावित हुए हैं.

(वैशाली बसु शर्मा रणनीतिक और आर्थिक मसलों की विश्लेषक हैं. उन्होंने नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल सेक्रेटरिएट के साथ लगभग एक दशक तक काम किया है.)

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