इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने भाजपा नेता रजनीश सिंह की ओर से दाख़िल याचिका पर फटकार लगाते हुए कहा कि कृपया जनहित याचिका प्रणाली का मजाक न बनाएं. जाइए और शोध कीजिए. नेट/जेआरएफ़ कीजिए और अगर कोई विश्वविद्यालय आपको इस तरह के विषय पर शोध करने से मना करता है तब हमारे पास आइए.
लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने बृहस्पतिवार को भारतीय जनता पार्टी के एक नेता को उनकी उस याचिका के लिए फटकार लगाई है, जिसमें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को उत्तर प्रदेश के आगरा स्थित ताजमहल के भीतर 22 बंद कमरों को खोलने के निर्देश के साथ-साथ इसके कथित ‘वास्तविक इतिहास’ जानने के लिए शोध की अनमुति देने की मांग की गई थी.
हाईकोर्ट ने इसके साथ ही ताजमहल के इतिहास के बारे में सच को सामने लाने के लिए तथ्यों की जानकारी करने वाली कमेटी का गठन करने की भी मांग वाली ये याचिका खारिज कर दी.
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, अदालत ने कहा, ‘कृपया जनहित याचिका (पीआएल) प्रणाली का मजाक न बनाएं.’ यह याचिका डॉ. रजनीश सिंह ने दायर की थी, जो खुद के भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अयोध्या इकाई के मीडिया प्रभारी होने का दावा करते हैं.
हाईकोर्ट की ओर से कहा गया कि इसमें याचिकाकर्ता यह बताने में विफल रहा कि उसके कौन से कानूनी या संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है.
जस्टिस डीके उपाध्याय और जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने याचिका पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि अदालत भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत ऐसा आदेश पारित नहीं कर सकती है.
रिपोर्ट के अनुसार, जब याचिकाकर्ता ने दावा किया कि ताजमहल के बंद कमरों के बारे में जानने के उसके अधिकार और सूचना प्राप्त करने की उसकी स्वतंत्रता का उल्लंघन किया जा रहा है, तो अदालत ने इस दावे पर सवाल उठाया.
पीठ ने पूछा, ‘यह कहां तक सही है? एक विशेष अध्ययन कराने के लिए?’
अदालत ने आगे कहा, ‘जाइए और शोध कीजिए. कृपया खुद को एमए की पढ़ाई के लिए नामांकित कीजिए, फिर नेट/जेआरएफ कीजिए और अगर कोई विश्वविद्यालय आपको इस तरह के विषय पर शोध करने से मना करता है तो हमारे पास आइए.’
राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट) भारतीय विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में सहायक प्रोफेसर या जूनियर रिसर्च फेलोशिप या जेआरएफ के लिए पात्रता निर्धारित करने की परीक्षा है.
पीठ ने कहा, ‘आप जो मांग रहे हैं वह एक समिति के माध्यम से तथ्यों की खोज करना है. यह आपका अधिकार नहीं है और यह आरटीआई अधिनियम के दायरे में नहीं है.’
पीठ ने याचिकाकर्ता रजनीश सिंह के अधिवक्ता रुद्र विक्रम सिंह की बिना कानूनी प्रावधानों के याचिका दायर करने के लिए खिंचाई की. अदालत ने याचिकाकर्ता यह नहीं बता सका है कि उसके किस कानूनी या संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन हुआ है.
दलीलों के बाद जब पीठ याचिका खारिज करने जा रही थी तो याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत से याचिका वापस लेने और बेहतर कानूनी शोध के साथ एक और नई याचिका दायर करने की अनुमति देने का अनुरोध किया, लेकिन पीठ ने उनके अनुरोध को स्वीकार नहीं किया और याचिका खारिज कर दी.
बीते सात मई को हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में दायर की गई याचिका में इतिहास को स्पष्ट करने के लिए ताजमहल के बंद 22 कमरों को भी खोलने की मांग की गई थी. इसमें 1951 और 1958 में बने कानूनों को संविधान के प्रावधानों के विरुद्ध घोषित किए जाने की भी मांग की गई थी.
इन्हीं कानूनों के तहत ताजमहल, फतेहपुर सीकरी का किला और आगरा के लाल किले आदि इमारतों को ऐतिहासिक इमारत घोषित किया गया था.
यह याचिका अयोध्या निवासी डॉक्टर रजनीश सिंह ने अपने वकीलों राम प्रकाश शुक्ला और रुद्र विक्रम सिंह के माध्यम से दायर की थी.
गौरतलब है कि कई दक्षिणपंथी संगठन यह दावा कर चुके हैं कि मुगल काल का यह मकबरा अतीत में भगवान शिव का मंदिर था. यह स्मारक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संरक्षित है.
2017 में भाजपा नेता विनय कटियार ने दावा किया था कि 17वीं शताब्दी के स्मारक ताजमहल का निर्माण मुगल सम्राट शाहजहां ने एक हिंदू मंदिर को नष्ट करके किया था.
हालांकि 17 अगस्त, 2017 को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने आगरा की अदालत को बताया था कि ताजमहल कभी मंदिर नहीं था और हमेशा एक मकबरा रहा है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)