ज्ञानवापी मस्जिद सर्वे के दौरान मिले कथित शिवलिंग की सुरक्षा का सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया

सुप्रीम कोर्ट ने वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद का कामकाज देखने वाली अंजुमन इंतेज़ामिया मस्जिद समिति की याचिका पर सुनवाई करते हुए आदेश दिया कि मुस्लिम बग़ैर किसी बाधा के नमाज़ अदा करना जारी रख सकते हैं. इधर, वाराणसी की अदालत ने मस्जिद का वीडियो सर्वेक्षण करने के लिए नियुक्त किए गए एडवोकेट कमिश्नर अजय कुमार मिश्रा को हटा दिया है और सर्वे रिपोर्ट जमा करने की अवधि दो दिन बढ़ा दी है.

सर्वे के दौरान ज्ञानवापी मस्जिद के बाहर तैनात सुरक्षाकर्मी. (फाइल फोटो: पीटीआई)

सुप्रीम कोर्ट ने वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद का कामकाज देखने वाली अंजुमन इंतेज़ामिया मस्जिद समिति की याचिका पर सुनवाई करते हुए आदेश दिया कि मुस्लिम बग़ैर किसी बाधा के नमाज़ अदा करना जारी रख सकते हैं. इधर, वाराणसी की अदालत ने मस्जिद का वीडियो सर्वेक्षण करने के लिए नियुक्त किए गए एडवोकेट कमिश्नर अजय कुमार मिश्रा को हटा दिया है और सर्वे रिपोर्ट जमा करने की अवधि दो दिन बढ़ा दी है.

सर्वे के दौरान ज्ञानवापी मस्जिद के बाहर तैनात सुरक्षाकर्मी. (फाइल फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली/वाराणसी: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को वाराणसी (उत्तर प्रदेश) के जिलाधिकारी को काशी विश्वनाथ मंदिर के पास स्थित ज्ञानवापी मस्जिद में शृंगार गौरी परिसर के अंदर उस क्षेत्र की सुरक्षा सुनिश्चित करने का निर्देश दिया, जहां कथित शिवलिंग पाए जाने की बात कही जा रही है.

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद का कामकाज देखने वाली अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद समिति की याचिका पर सुनवाई करते हुए आदेश दिया कि मुस्लिम बगैर किसी बाधा के नमाज अदा करना जारी रख सकते हैं.

हालांकि, शीर्ष न्यायालय ने दीवानी न्यायाधीश, वाराणसी के समक्ष आगे की कार्यवाही पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, जो ज्ञानवापी मस्जिद से जुड़े वाद की सुनवाई कर रहे हैं.

न्यायालय ने याचिकाकर्ता हिंदू श्रद्धालुओं को नोटिस जारी किए और मस्जिद कमेटी की याचिका पर सुनवाई के लिए 19 मई की तारीख निर्धारित की.

इससे पहले बीते 13 मई को सुप्रीम कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वेक्षण के लिए वाराणसी की अदालत के हालिया आदेश पर रोक लगाने की मांग वाली एक अपील पर कोई आदेश पारित करने से इनकार कर दिया था.

मस्जिद की प्रबंधन समिति अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने मामले को लेकर शीर्ष अदालत पहुंचे थे. अहमदी ने तर्क दिया था कि वाराणसी की अदालत का फैसला उपासना स्थल अधिनियम, 1991 के विपरीत है.

उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 कहता है कि पूजा स्थल का धार्मिक स्वरूप जारी रहेगा, जैसा कि 15 अगस्त, 1947 को अस्तित्व में था.

हालांकि, भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) एनवी रमना की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि अदालत को मामले को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने से पहले मामले की फाइलों की जांच करनी होगी.

वाराणसी की अदालत ने एडवोकेट कमिश्नर अजय कुमार मिश्रा को हटाया

इस बीच वाराणसी की अदालत ने मंगलवार को एडवोकेट कमिश्नर अजय कुमार मिश्रा को उनके पद से हटा दिया. उन्हें काशी ज्ञानवापी मस्जिद परिसर की वीडियोग्राफी और सर्वेक्षण के लिए नियुक्त किया गया था.

समाचार एजेंसी एएनआई की रिपोर्ट के अनुसार, इसके अलावा अदालत ने वीडियो सर्वे रिपोर्ट जमा करने के लिए दो दिन का समय और दे दिया है.

इससे पहले असिस्टेंट एडवोकेट कमिश्नर एडवोकेट कमिश्नर अजय प्रताप सिंह ने मंगलवार को यह जानकारी दी थी कि ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के वीडियोग्राफी-सर्वे कार्य से जुड़ी रिपोर्ट अभी पूरी तरह से तैयार नहीं हुई है, लिहाजा आयोग इसे पेश करने के लिए अदालत से दो-तीन दिन का अतिरिक्त समय मांगेगा.

सिंह ने कहा था, ‘अदालत के आदेश के अनुसार, 14 से 16 मई के बीच सुबह आठ बजे से दोपहर 12 बजे तक ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का वीडियोग्राफी-सर्वे कार्य किया गया. 17 मई को सर्वे से संबंधित रिपोर्ट अदालत में पेश की जानी थी.’

हालांकि, उन्होंने आगे कहा था, ‘हम आज (मंगलवार) अदालत में रिपोर्ट नहीं जमा कर रहे हैं, क्योंकि यह तैयार नहीं है. हम अदालत से दो-तीन दिन का अतिरिक्त समय मांगेंगे. अदालत जो भी समय देगी, हम उसमें रिपोर्ट पेश करेंगे.’

सिंह ने कहा, ‘अभी लगभग 50 प्रतिशत रिपोर्ट ही तैयार की जा सकी है. ऐसा इसलिए है, क्योंकि हमें रिपोर्ट संकलित करने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाया.’

सर्वे कार्य पर टिप्पणी करते हुए सिंह ने कहा, ‘अदालत के आदेश के अनुसार मस्जिद परिसर में खुले और बंद ‘तहखाने’ का सर्वेक्षण किया गया. बंद ‘तहखाना’ जिसकी चाबी नहीं मिली थी, जिला प्रशासन ने उसका ताला तोड़ा गया. इसके बाद वहां वीडियोग्राफी करने के साथ-साथ फोटो भी खींची गई.’

‘वजूखाना’ में कथित तौर पर शिवलिंग मिलने के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, ‘मैं इस पर टिप्पणी नहीं कर सकता. लेकिन, निश्चित रूप से कुछ ऐसा था, जिसके चलते हिंदू पक्ष ने ऐसा दावा किया और अदालत ने इसका संज्ञान लेते हुए अपना आदेश दिया.’

इससे पहले, हिंदू पक्ष का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों ने सोमवार को दावा किया था कि अदालत द्वारा अनिवार्य वीडियोग्राफी-सर्वे कार्य के दौरान मस्जिद परिसर में एक शिवलिंग पाया गया है.

एक स्थानीय अदालत ने सोमवार को हिंदू पक्ष की ओर से दायर अर्जी पर सुनवाई करते हुए ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के उस हिस्से को सील करने का आदेश दिया था, जहां कथित तौर पर शिवलिंग मिलने का दावा किया गया है.

सिविल जज सीनियर डिवीजन रवि कुमार दिवाकर ने आदेश में कहा था, ‘वाराणसी के जिलाधिकारी को निर्देश दिया गया है कि जिस स्थान पर शिवलिंग मिला है, उसे तत्काल प्रभाव से सील कर दिया जाए और किसी भी व्यक्ति को सील किए गए क्षेत्र में प्रवेश की अनुमति नहीं दी जाए.’

अदालत ने जिलाधिकारी, पुलिस कमिश्नरेट वाराणसी और सीआरपीएफ कमांडेंट को सील किए जाने वाले स्थान को संरक्षित और सुरक्षित करने की जिम्मेदारी सौंपी है.

अदालत ने जिलाधिकारी को निर्देशित किया है कि जहां शिवलिंग मिलने का दावा किया गया है, उस स्थान पर लोगों का प्रवेश वर्जित कर दें और मस्जिद में केवल 20 लोगों को नमाज अदा करने की इजाजत दें.

उधर, ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करने वाली कमेटी के एक सदस्य ने इस दावे का खंडन करते हुए कहा था, ‘मुगल काल की मस्जिदों में वजूखाने के अंदर फव्वारा लगाए जाने की परंपरा रही है. उसी का एक पत्थर आज सर्वे में मिला है, जिसे शिवलिंग बताया जा रहा है.’

अंजुमन इंतजामिया मस्जिद समिति के संयुक्त सचिव सैयद मोहम्मद यासीन ने आरोप लगाया था कि सिविल जज (सीनियर डिवीजन) रवि कुमार दिवाकर द्वारा आदेश जारी करने से पहले मस्जिद प्रबंधन का पक्ष नहीं सुना गया.

उन्होंने दावा किया, ‘हिंदू पक्ष ने कथित शिवलिंग और उसके मिलने के स्थान को सील कराने के लिए अदालत में जो अर्जी दी, उसकी कोई प्रति मुस्लिम पक्ष को नहीं दी गई, और न ही हमें सुना गया.’

वाराणसी की एक स्थानीय अदालत ने 12 मई को ज्ञानवापी-शृंगार गौरी परिसर का वीडियोग्राफी सर्वेक्षण करने के लिए नियुक्त अधिवक्ता आयुक्त को बदलने के लिए दायर एक याचिका को खारिज कर दिया था और 17 मई तक कार्य पूरा करने का आदेश दिया था.

इससे पहले का घटनाक्रम

मालूम हो कि बीते आठ अप्रैल को वाराणसी की अदालत ने विवादित स्थल पर मां शृंगार गौरी स्थल के सर्वेक्षण के लिए एडवोकेट कमिश्नर अजय कुमार मिश्रा को नियुक्त किया था और उन्हें इस कार्य की वीडियोग्राफी कर रिपोर्ट जमा करने को कहा था.

वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में वीडियोग्राफिक सर्वेक्षण के दौरान एडवोकेट कमिश्नर विशाल सिंह (बाएं से दूसरे) और अजय प्रताप सिंह (बाएं) अपनी टीम के साथ. (फोटो: पीटीआई)

बीते 21 अप्रैल को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वाराणसी अदालत के आदेश को चुनौती देने वाली मस्जिद समिति की याचिका खारिज कर दी थी. इसके बाद 26 अप्रैल को वाराणसी की अदालत ने वापस विवादित स्थल की ​वीडियोग्राफी कराने का आदेश दिया था.

यह आदेश दिल्ली निवासी राखी सिंह, लक्ष्मी देवी, सीता साहू और अन्य की याचिका के बाद दिया गया था.

मूल वाद 1991 में वाराणसी जिला अदालत में उस स्थान पर प्राचीन मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए दायर किया गया था, जहां वर्तमान में ज्ञानवापी मस्जिद है. याचिका में कहा गया है कि मस्जिद, मंदिर का हिस्सा है .

इस दौरान बीते छह मई को सर्वेक्षण शुरू जरूर हुआ, लेकिन मस्जिद कमेटी ने जब पक्षपाक्ष करने का आरोप लगाते हुए अदालत में अपील की तो इसे रोक दिया गया.

अदालत ने अधिकारियों को 10 मई से पहले इस स्थान का एक वीडियो सर्वेक्षण और रिकॉर्ड करने का निर्देश दिया था, जबकि मस्जिद प्रबंधन समिति ‘अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी’ ने यहां पर वीडियोग्राफी के आदेश पर आपत्ति जताई थी.

मुस्लिम पक्ष के वकील अभय नाथ यादव ने वीडियोग्राफी सर्वे के लिए नियुक्त एडवोकेट कमिश्नर की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुए उन्हें बदलवाने के लिए अदालत में प्रार्थना-पत्र दिया था.

उन्होंने सर्वे के दायरे में ली जाने वाली इमारतों को कुरेद-कुरेद कर दिखाए जाने का आरोप लगाते हुए कहा था कि अदालत ने खोदने या कुरेदने का कोई आदेश नहीं दिया था और वह छह मई को शुरू हुए सर्वे की कार्रवाई से संतुष्ट नहीं हैं.

इसके बाद बीते 12 मई को वाराणसी की अदालत ने ज्ञानवापी-शृंगार गौरी परिसर का सर्वे-वीडियोग्राफी कार्य कराने के लिए नियुक्त एडवोकेट कमिश्नर अजय कुमार मिश्रा को पक्षपात के आरोप में हटाने की मांग संबंधी याचिका खारिज कर दी थी.

अदालत ने स्पष्ट किया था कि ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर भी वीडियोग्राफी कराई जाएगी.

दीवानी अदालत के न्यायाधीश (सीनियर डिवीजन) दिवाकर ने एडवोकेट कमिश्नर मिश्रा को हटाने संबंधी याचिका को नामंजूर करते हुए विशाल सिंह को विशेष एडवोकेट कमिश्नर और अजय प्रताप सिंह को सहायक एडवोकेट कमिश्नर के तौर पर नियुक्त किया था.

उन्होंने संपूर्ण परिसर की वीडियोग्राफी करके 17 मई तक रिपोर्ट पेश करने के निर्देश भी दिए थे.

गौरतलब है कि विश्व वैदिक सनातन संघ के पदाधिकारी जितेंद्र सिंह विसेन के नेतृत्व में राखी सिंह तथा अन्य ने अगस्त 2021 में अदालत में एक वाद दायर कर ज्ञानवापी मस्जिद की पश्चिमी दीवार के पास स्थित शृंगार गौरी के नियमित दर्शन-पूजन और अन्य देवी-देवताओं की सुरक्षा की मांग की थी.

इसके साथ ही ज्ञानवापी मस्जिद परिसर स्थित सभी मंदिरों और देवी-देवताओं के विग्रहों की वास्तविक स्थिति जानने के लिए अदालत से सर्वे कराने का अनुरोध किया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)