कश्मीर घाटी में लगातार आतंकवादियों द्वारा नागरिकों और ग़ैर-मुस्लिमों को निशाना बनाकर की जा रही हत्याओं के बीच भयभीत कश्मीरी पंडित समुदाय के लोग घाटी छोड़कर जा रहे हैं या इसकी योजना बना रहे हैं. ख़बरों के अनुसार, कश्मीर में उनके कई रिहायशी शिविरों में उन्हें प्रशासन द्वारा जबरन रोका जा रहा है.
नई दिल्ली: प्रधानमंत्री पुनर्वास पैकेज के तहत कश्मीर घाटी में कार्यरत कश्मीरी पंडितों ने घाटी में गैर मुस्लिमों को निशाना बनाकर किए जा रहे हमलों से उन्हें बचाने में प्रशासन की ‘विफलता’ के विरोध के बाद गुरुवार को आधिकारिक ‘निष्क्रियता’ पर निराशा व्यक्त करते हुए अपना आंदोलन वापस ले लिया.
इंडियन एक्सप्रेस ने ऐसे कई कश्मीरी पंडितों से बात की जो कश्मीर में कार्यरत हैं और उनके लिए बनाए गए दो मुख्य कैंपों- बडगाम के शेखपोरा और पुलवामा के हाल में रहते हैं. अख़बार के अनुसार, उनमें हताशा और तनाव स्पष्ट दिख रहे हैं. कइयों ने बताया कि वे घाटी के बाहर विकल्प तलाश रहे हैं.
हालिया विरोध-प्रदर्शनों में सक्रिय रहे 40 साल के सरकारी कर्मचारी अमित कौल शेखपोरा कैंप के रहवासी है. उन्होंने बताया, ‘हम सब वापस जम्मू जा रहे हैं. मैं अपने पांच सहकर्मियों के साथ कैंप छोड़ चुका हूं.’
उन्होंने यह भी बताया कि 12 मई को राहुल भट की हत्या के बाद से वे सब सरकार से उनका तबादला जम्मू करने की मांग कर रहे हैं.
गुरुवार को उन्होंने अपने टेंट्स गेट के पास से हटा दिए, जो इस बात का संकेत था कि इसे लेकर कोई प्रगति नहीं हुई. शेखपोरा कैंप के ही रहने वाले अश्विनी पंडिता ने बताया, ‘स्थानीय अधिकारियों की तरफ से भी कुछ विरोध है. उन्होंने सुबह गेट बंद करने का भी प्रयास किया. कुछ परिवार तो पहले ही जा चुके हैं लेकिन वे इतनी सावधानी से जा रहे हैं कि उन्हें रोका न जा सके.’
एक अन्य कश्मीरी पंडित कर्मचारी, जो पहले ही जम्मू के लिए रवाना हो चुके हैं, ने कहा कि ‘कश्मीर में अब अल्पसंख्यकों के लिए कोई जगह सुरक्षित नहीं है.’
दक्षिण कश्मीर में हाल शिविर में लगभग 45 परिवार अपने परिसरों तक ही सीमित हैं और उनमें से कई ने कहा कि वे यहां से निकलने के लिए तैयार हैं. हाल शिविर के निवासी अरविंद पंडिता कहते हैं, ‘हम सभी एक दूसरे से सलाह-मशविरा कर रहे हैं कि हम कब जा सकते हैं. सभी कर्मचारियों के बीच आम सहमति है कि हमें जाना है. हम अपनी जिंदगी जोखिम में नहीं डाल सकते.’
यह पूछे जाने पर कि क्या वे किसी अस्थायी कदम के बारे में सोच रहे हैं, उन्होंने कहा, ‘ऐसा नहीं लगता कि चीजें बेहतर हो रही हैं इसलिए हम बच्चों और अपने सारे सामान के साथ जाएंगे.’
द हिंदू के मुताबिक, तक़रीबन चार हजार कश्मीरी पंडित कर्मचारियों ने घाटी छोड़कर जाने की बात कही थी. हालांकि, श्रीनगर के इंदिरानगर शिविर के एक रहवासी ने बताया कि मंगलवार को पुलिस ने किसी भी पंडित कर्मचारी को वे जिस जगह थे, उसे छोड़कर नहीं जाने दिया.
अख़बार के मुताबिक, इन ट्रांजिट शिविरों में रहने वाले कर्मचारियों की सामूहिक इस्तीफे की धमकी के मद्देनजर कुपवाड़ा के नुटनुसा, गांदरबल के तुलमुल्ला, पुलवामा के हाल, बारामूला के खानपुर, अनंतनाग के मट्टन और कुलगाम के वेसु के सभी शिविरों में सुरक्षा बढ़ा दी गई है. इंदिरा नगर और शेखपोरा में पंडित कर्मचारियों के घरों की ओर जाने वाली गलियों में मोबाइल बंकर लगाए गए थे.
शेखपोरा ट्रांजिट कैंप में रहने वाले एक अन्य कश्मीरी पंडित कर्मचारी ने कहा, ‘यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमें प्रवासी शिविरों को छोड़ने से रोक दिया गया. दूसरी ओर कार्यालयों में हमारी अटेंडेंस में हमें अनुपस्थित (unauthorised absence) भी दिखाया जा रहा है, ऐसा क्यों?’
J&K| Panic-stricken Kashmiri Pandits working under PM package reached Jammu due to targeted killings in Kashmir Valley
Today's Kashmir is more dangerous than the 1990s. Most imp question is why our people were locked in our colonies.Why admin is hiding their failure?: Ajay(2.06) pic.twitter.com/4FgGN65u1C
— ANI (@ANI) June 3, 2022
समाचार एजेंसी एएनआई से बात करते हुए पीएम पैकेज के तहत कश्मीर में कार्यरत और हालिया हत्याओं के कारण भयभीत होकर जम्मू पहुंचे एक कर्मचारी ने कहा, ‘आज का कश्मीर 1990 के कश्मीर से भी ज्यादा खतरनाक है. सबसे जरूरी सवाल है कि हमारे लोगों को उनकी कॉलोनियों के अंदर ही क्यों बंद कर दिया गया है? प्रशासन अपनी विफलता क्यों छिपा रहा है?’
https://twitter.com/Umar__sofi/status/1532304500349730816
पत्रकार उमर सोफी ने गुरुवार को एक ट्वीट में बताया कि अनंतनाग में कश्मीरी पंडितों के रिहाइश के सामने पुलिस ने जबरन वाहन खड़े करके उन्हें जाने से रोका.
गौरतलब है कि मार्च 2021 में संसद में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में गृह मंत्रालय ने कहा था कि 6,000 स्वीकृत पदों में से लगभग 3,800 प्रवासी उम्मीदवार पिछले कुछ वर्षों में पीएम पैकेज के तहत सरकारी नौकरी करने के लिए कश्मीर लौट आए हैं. इसमें यह भी बताया गया था कि अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद 520 प्रवासी उम्मीदवार इन नौकरियों के कश्मीर लौटे.
राहुल भट की हत्या के बाद कश्मीर के डिविजनल कमिश्नर के. पांडुरंग पोल ने 18 मई को विभिन्न सरकारी विभागों के प्रमुखों को यह सुनिश्चित था कि कश्मीरी पंडित कर्मचारियों को ‘संवेदनशील इलाकों’ में पोस्टिंग न देकर जिला मुख्यालय में रखा जाए.
इसके बाद 23 मई को उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने शेखपोरा शिविर, जहां राहुल भट का परिवार उस समय रह रहा था, का दौरा किया था और निवासियों को आश्वासन दिया था कि उनकी चिंताओं का समाधान किया जाएगा.
प्रशासन ने कुलगाम, बडगाम और अनंतनाग जिलों में ‘पीएम पैकेज/प्रवासी/एससी/ एसटी/राजपूत और अन्य कर्मचारियों की शिकायतों’ के लिए नोडल अधिकारी भी नियुक्त किए थे, लेकिन कश्मीरी पंडित कर्मचारी इससे सहमत नहीं थे और उन्होंने काम पर लौटने से इनकार कर दिया था.
कुलगाम में शिक्षिका की हत्या के बाद से सौ हिंदू परिवारों ने घाटी छोड़ी
अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी रॉयटर्स की एक रिपोर्ट बताती है कि कुलगाम में सरकारी स्कूल में तैनात शिक्षिका रजनी बाला की हत्या के बाद फैली दहशत के बीच 100 से अधिक हिंदू परिवार कश्मीर से चले गए हैं.
उत्तरी कश्मीर के बारामूला में एक हिंदू कश्मीरी पंडित कॉलोनी के अध्यक्ष अवतार कृष्ण भट ने कहा कि मंगलवार से इलाके में रहने वाले 300 परिवारों में से लगभग आधे चले गए.
निवासियों ने बताया कि पुलिस ने श्रीनगर में एक हिंदू क्षेत्र को सील कर दिया है और कश्मीरी पंडित सरकारी कर्मचारियों के रहने वाली जगहों के आसपास सुरक्षा बढ़ा दी है.
इस साल की शुरुआत से अब तक निशाना बनाकर की गईं 16 हत्याएं
कश्मीर घाटी में इस साल जनवरी से अब तक पुलिस अधिकारियों, शिक्षकों और सरपंचों सहित कम से कम 16 हत्याएं (targeted killings) हुई हैं.
जम्मू कश्मीर पुलिस के डीजीपी दिलबाग सिंह ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि अल्पसंख्यकों, नागरिकों और सरकार में लोगों को निशाना बनाने वाले “केवल डर फैला रहे हैं, क्योंकि स्थानीय निवासियों ने उनके फरमानों पर प्रतिक्रिया देना बंद कर दिया.’
उन्होंने कहा कि घाटी के विभिन्न हिस्सों और समाज के विभिन्न वर्गों के सदस्यों पर हमला करके ‘आतंकवादी अपनी मौजूदगी का एहसास कराना चाहते हैं.’
स्थानीयों को निशाना बनाकर की जा रही हत्याओं की घटनाएं फिर से तब बढ़ीं, जब फरवरी 2021 में श्रीनगर में कृष्णा ढाबा के मालिक के बेटे को उनके रेस्तरां के अंदर गोली मार दी गई. गोली लगने से दो दिन बाद उनकी अस्पताल में मौत हो गई थी.
इसके बाद 5 अक्टूबर 2021 को चर्चित केमिस्ट एमएल बिंद्रू की उनकी दुकान में हत्या कर दी गई, जिससे राजनीतिक नेतृत्व और नागरिक समाज में आक्रोश फैल गया.
इसके दो दिन बाद गवर्नमेंट बॉयज़ हायर सेकेंडरी स्कूल की प्रिंसिपल सुपिंदर कौर और स्कूल के शिक्षक दीपक चंद की हत्या हुई थी.
पिछले साल घाटी में 182 आतंकवादी और कम से कम 35 नागरिक मारे गए थे.
अक्टूबर 2021 में जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को रद्द करने के बाद से घाटी की अपनी पहली यात्रा पर गृह मंत्री अमित शाह नौगाम में पुलिस इंस्पेक्टर परवेज अहमद डार के घर पहुंचे थे, जिनकी उसी साल 22 जून को नमाज़ से लौटते समय उनके घर के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.
इस साल की शुरुआत से अब तक तीन सरपंचों समेत पंचायत सदस्यों की गोली मारकर हत्या कर दी गई है.
4 अप्रैल को कश्मीरी पंडित समुदाय से आने वाले बाल कृष्ण की चौतीगाम शोपियां में उनके घर के पास संदिग्ध आतंकियों ने हत्या कर दी थी.
कम से कम तीन मामलों में जम्मू कश्मीर के बाहर के मजदूरों को गोली मारकर घायल कर दिया गया.
हाल ही में 12 मई को जम्मू कश्मीर के राजस्व विभाग के एक कश्मीरी पंडित कर्मचारी राहुल भट, जो पीएम पुनर्वास पैकेज के तहत काम कर रहे थे, को चदूरा, बडगाम में उनके कार्यालय के अंदर गोली मार दी गई थी, जिसका समुदाय के लोगों ने व्यापक विरोध किया था.
25 मई को एक कश्मीरी टीवी अभिनेता को उनके घर के अंदर कई बार गोली मारी गई थी. इस हफ्ते मंगलवार को सांबा की एक शिक्षिका रजनी बाला कुलगाम में आतंकियों का शिकार बनीं.
इसके बाद गुरुवार को कुलगाम के इलाकाई देहाती बैंक के कर्मचारी विजय कुमार को आतंकियों ने गोली मारी और इसी शाम बडगाम में दो प्रवासी मजदूर आतंकियों की गोली का निशाना बने.