कर्नाटक: नागरिकों ने सीएम को पत्र लिख कहा- अल्पसंख्यकों पर हमले से राज्य की बहुलता को ख़तरा

सेवानिवृत्त नौकरशाह, कलाकार और शिक्षाविदों के एक समूह ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई को लिखे पत्र में कहा है कि हाल में मुस्लिम, ईसाई और दलित समुदायों पर विभिन्न प्रकार के हमलों ने राज्य के समावेशी स्वभाव पर गर्व करने वालों को झकझोर कर रख दिया है. समूह ने कहा कि इससे प्रगति में बाधा उत्पन्न होगी, उद्यमियों और निवेशकों का विश्वास कम होगा तथा नागरिकों में असुरक्षा, संदेह, भय और आक्रोश बढ़ेगा.

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बसवराज बोम्मई. (फोटो साभार: फेसबुक)

सेवानिवृत्त नौकरशाह, कलाकार और शिक्षाविदों के एक समूह ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई को लिखे पत्र में कहा है कि हाल में मुस्लिम, ईसाई और दलित समुदायों पर विभिन्न प्रकार के हमलों ने राज्य के समावेशी स्वभाव पर गर्व करने वालों को झकझोर कर रख दिया है. समूह ने कहा कि इससे प्रगति में बाधा उत्पन्न होगी, उद्यमियों और निवेशकों का विश्वास कम होगा तथा नागरिकों में असुरक्षा, संदेह, भय और आक्रोश बढ़ेगा.

बसवराज बोम्मई. (फोटो साभार: फेसबुक)

बेंगलुरु: कर्नाटक के नागरिकों के एक समूह ने मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई को एक पत्र लिखकर कहा है कि अल्पसंख्यक समुदायों पर हालिया हमलों से ‘शांति, विविधता और बहुलवाद के नष्ट होने’ का खतरा है, जिसके लिए राज्य लंबे समय से जाना जाता है और जिसकी वजह से उसकी प्रशंसा की जाती है.

प्रसिद्ध हस्तियों सहित 75 लोगों के एक समूह ने पत्र में कर्नाटक में शांति और विविधता को खतरे में डालने संबंधी ‘हालिया घटनाक्रम’ के बारे में चिंता व्यक्त की है.

उन्होंने बोम्मई से यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने का अनुरोध किया कि हिंसा भड़काने और भय पैदा करने वालों को यह स्पष्ट संदेश जाना चाहिए कि किसी गैरकानूनी व्यवहार को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और ऐसा करने वालों को दंडित किया जाएगा.

इनका कहना है कि 100 पहले राज्य गान में कर्नाटक को ‘सर्व जनांगदा शांति थोटा’ यानी ‘विभिन्न समुदायों के लिए शांति का बगीचा’ के रूप में वर्णित किया गया है.

समूह ने राज्य में ‘सर्व जनांगदा शांति थोटा’ की बहाली की आवश्यकता बताई, जिसका कुवेम्पु द्वारा लिखे गए ‘नाद गीते’ (राज्य गान) में उल्लेख किया गया है.

उन्होंने कहा कि ‘विशेष समुदायों को अलग-थलग करने और उन्हें उनके मौलिक अधिकारों से वंचित करने के उद्देश्य से विभाजनकारी कृत्यों की वर्तमान में वृद्धि’ न केवल विकास को बाधित करेगी, बल्कि राज्य की प्रतिष्ठा को भी चोट पहुंचाएगी.

उन्होंने कहा कि हाल में ‘मुस्लिम, ईसाई और दलित समुदायों पर विभिन्न प्रकार के हमलों’ ने कर्नाटक के समावेशी स्वभाव पर गर्व करने वालों को झकझोर कर रख दिया है.

समूह ने कहा कि इससे प्रगति और नवाचार में बाधा उत्पन्न होगी, उद्यमियों और निवेशकों का विश्वास कम होगा तथा नागरिकों में असुरक्षा, संदेह, भय और आक्रोश बढ़ेगा. उन्होंने कहा, ‘ऐसे माहौल में ‘मेक इन इंडिया’ का सपना संभव नहीं है, जहां लोग ‘भारत में डरे हुए’ हैं.’

समूह ने कहा कि सांप्रदायिक सद्भाव की बहाली एक महत्वपूर्ण और जरूरी काम है.

मुख्यमंत्री को संबोधित इस खुले पत्र में येलप्पा रेड्डी, भारतीय वन सेवा (सेवानिवृत्त), रविवर्मा कुमार (पूर्व महाधिवक्ता, कर्नाटक), चिरंजीव सिंह (सेवानिवृत्त आईएएस), अजय कुमार सिंह (सेवानिवृत्त आईपीएस), रघुनंदन (सेवानिवृत्त आईएएस) शशि देशपांडे (लेखक), वैदेही (लेखक), गिरीश कसारवल्ली (फिल्मकार) और रामचंद्र गुहा (इतिहासकार) जैसे सेवानिवृत्त नौकरशाह, कलाकार और शिक्षाविद ने हस्ताक्षर किए हैं.

समूह ने दावा किया है कि वे मुख्यमंत्री से मुलाकात का समय लेने की कोशिश कर रहे थे और यह पत्र उन्हें व्यक्तिगत रूप से देना चाहते थे, लेकिन चूंकि ऐसा नहीं हो पाया, इसलिए उन्होंने इसे एक खुले पत्र के रूप में जारी करने का फैसला किया है.

इन लोगों ने कहा कि वे राज्य में हालिया घटनाक्रम से व्यथित हैं, जो शांति और विविधता को खतरे में डालने वाला है. समूह ने मुख्यमंत्री से आग्रह किया कि वह राज्य के पुलिस बल को संवैधानिक कर्तव्य का पालन करने का निर्देश दें.

पत्र में कहा गया है कि ‘कट्टरता और घृणा से प्रेरित’ कुछ व्यक्ति और समूह ‘धर्म और जाति के आधार पर समुदायों को बाहर करने, उन्हें अलग-थलग करने, बेदखल करने और हमला करने के लिए आक्रामक रूप से कर्नाटक के विचार और स्थापित वास्तविकता को फिर से परिभाषित करने का प्रयास कर रहे हैं’.

इसके अनुसार, ‘यह अधिक चिंताजनक है कि जिम्मेदार पदों पर कुछ लोग, जिनमें ऐसे कई लोग शामिल हैं, जिन्होंने भारत के संविधान और भावना को बनाए रखने और पालन करने की शपथ ली है, अब खुले तौर पर उस गंभीर प्रतिज्ञा का उल्लंघन करते हैं और कुछ अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों को दुष्ट और खतरनाक के रूप में चित्रित करते हैं.’

हस्ताक्षरकर्ताओं ने कहा, ‘ऐसे लोग धमकी, हिंसा, संपत्ति के जबरन अधिग्रहण के साथ-साथ सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार को मान्यता, समर्थन और यहां तक ​​कि बढ़ावा देते प्रतीत होते हैं. इन सभी का उद्देश्य उन्हें (अल्पसंख्यक समुदाय) द्वितीय श्रेणी के नागरिक बनाना है, जो अब अपने संवैधानिक अधिकारों का आनंद लेने की उम्मीद नहीं कर सकते हैं.’

मालूम हो कि कर्नाटक के दक्षिणपंथी समूहों द्वारा लगातार हिजाब, हलाल मीट और मस्जिदों में अजान जैसे मुद्दों पर मुस्लिमों को निशाना बनाया है. कुछ दक्षिणपंथी सदस्य फल बेचने वाले मुस्लिम विक्रेताओं पर भी निशाना साध रहे हैं और हिंदुओं से मुस्लिम विक्रेताओं से फल नहीं खरीदने को कह रहे हैं.

पिछले साल बोम्मई के राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के साथ ही राज्य में विवादित धर्मांतरण विरोधी विधेयक पारित हो गया था.

स्कूल-कॉलेजों में हिजाब पर विवाद शुरू हुआ, जिसके बाद कर्नाटक हाईकोर्ट ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया. हलाल मीट के खिलाफ अभियान शुरू हुआ और उसके बाद मस्जिदों में अजान के दौरान लाउडस्पीकर के इस्तेमाल पर भी विरोध दर्ज कराया गया है.

इसके अलावा मुस्लिम ड्राइवरों का बहिष्कार, मंदिरों में मुस्लिमों द्वारा दुकानें लगाने और धार्मिक मेलों में मुस्लिमों को भाग लेने से रोकने वाली दक्षिणपंथी समूहों की गतिविधियां भी कर्नाटक में जारी रहीं.

बीते मई महीने में कर्नाटक के कई विद्वानों और शिक्षाविदों ने राज्य सरकार की समितियों और निकायों से इस्तीफा देकर राज्य में चल रहे शिक्षा के ‘भगवाकरण’ का विरोध किया था.

कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सत्ता में आने के बाद सामाजिक विज्ञान और भाषा की पाठ्यपुस्तकों की जांच करने के लिए 2020 में रोहित चक्रतीर्थ की अध्यक्षता में एक संशोधन समिति गठित की गई थी, उस समिति ने हाल ही में कक्षा 6 से 10 तक की सामाजिक विज्ञान और कक्ष 1 से 10 तक की कन्नड़ भाषा की पाठ्यपुस्तकों में संशोधन किया है.

इसके तहत क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह, मैसूर शासक टीपू सुल्तान, लिंगायत समाज सुधारक बसवन्ना, द्रविड़ आंदोलन के अग्रणी पेरियार और सुधारक नारायण गुरु के अध्यायों को कथित तौर पर पाठ्यक्रम से हटा दिया गया है या उन्हें बहुत छोटा या संक्षिप्त कर दिया गया है. कन्नड़ कवि कुवेम्पु से संबंधित तथ्यों को भी कथित रूप से तोड़ा-मरोड़ा गया है.

इस बीच, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार के एक भाषण को कक्षा 10 की संशोधित पाठ्यपुस्तक में शामिल किया गया है.

कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सत्ता में आने के बाद सामाजिक विज्ञान और भाषा की पाठ्यपुस्तकों की जांच करने के लिए 2020 में रोहित चक्रतीर्थ की अध्यक्षता में एक संशोधन समिति गठित की गई थी, उस समिति ने हाल ही में कक्षा 6 से 10 तक की सामाजिक विज्ञान और कक्ष 1 से 10 तक की कन्नड़ भाषा की पाठ्यपुस्तकों में संशोधन किया है.

इसके तहत क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह, मैसूर शासक टीपू सुल्तान, लिंगायत समाज सुधारक बसवन्ना, द्रविड़ आंदोलन के अग्रणी पेरियार और सुधारक नारायण गुरु के अध्यायों को कथित तौर पर पाठ्यक्रम से हटा दिया गया है या उन्हें बहुत छोटा या संक्षिप्त कर दिया गया है. कन्नड़ कवि कुवेम्पु से संबंधित तथ्यों को भी कथित रूप से तोड़ा-मरोड़ा गया है.

इस बीच, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार के एक भाषण को कक्षा 10 की संशोधित पाठ्यपुस्तक में शामिल किया गया है.

इसके विरोध में राष्ट्रकवि डॉ. जीएस शिवरुद्रप्पा प्रतिष्ठान के अध्यक्ष रहे लेखक एसजी सिद्दारमैया, एचएस राघवेंद्र राव, नटराज बुडालू और चंद्रशेखर नांगली ने सोमवार को मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई को पत्र लिखकर अपने-अपने पदों से इस्तीफा दे दिया था.

इसी महीने मांड्या जिले के श्रीरंगपट्टनम शहर में एक मस्जिद में हिंदुत्व समूहों द्वारा घुसने और 4 जून को पूजा करने की धमकी दी गई थी, जिसके बाद सुरक्षा के कड़े प्रबंध किए गए थे.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)