बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने एक मीडिया संस्थान के ख़िलाफ़ दर्ज मानहानि के मुक़दमे की सुनवाई में कहा कि एफआईआर पर आधारित ख़बर पर मानहानि की शिकायत दर्ज कराना रिपोर्टर को चुप कराने और आरोपियों के ख़िलाफ़ छपी ख़बर को जबरन वापस लेने का प्रयास करवाने के अलावा और कुछ नहीं है.
नई दिल्ली: बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने कहा है कि एफआईआर की सामग्री पर आधारित एक तथ्यात्मक न्यूज रिपोर्ट मानहानिकारक नहीं होती है और इस स्थिति में रिपोर्टर के खिलाफ कानूनी कार्रवाई पत्रकार की आवाज दबाने के प्रयास और उसे अपनी खबर को वापस लेने के लिए बाध्य करने की कोशिश है.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस विनय जोशी ने लोकमत मीडिया प्राइवेट लिमिटेड के प्रमुख विजय दर्डा और संपादक राजेंद्र दर्डा के खिलाफ एफआईआर रद्द कर दी. दोनों 2016 में प्रकाशित एक रिपोर्ट को लेकर आईपीसी की धारा 500 के तहत मानहानि करने के आरोपी बनाए गए थे.
कोर्ट ने कहा कि अगर पत्रकारों को एफआईआर पर रिपोर्टिंग करने से रोका जाता है तो उस परिस्थिति में वे मामले में अंतिम फैसला आने तक उस मामले पर रिपोर्ट ही नहीं कर पाएंगे, जिसका मतलब होगा कि जनता घटनाओं के बारे में जानने के अपने अधिकार से वंचित हो जाएगी.
पीठ ने कहा, ‘संपादक की जिम्मेदारी सही तथ्यों को प्रकाशित करना है, इसके अलावा और कुछ नहीं. खबर प्रकाशित होने से पहले एफआईआर की सच्चाई की जांच करने और मामले की पड़ताल करने की प्रकाशक से उम्मीद नहीं की जाती है.’
अदालत ने आगे कहा, ‘ऐसी खबरों पर मानहानि की शिकायत दर्ज कराना रिपोर्टर्स को चुप कराने, उनकी आवाज दबाने और उन्हें मामले में आरोपी और कथित तौर पर बदनाम हुए व्यक्ति के खिलाफ जबरन खबर वापस लेने का प्रयास करने के अलावा और कुछ नहीं है.’
मामले को लेकर अदालत ने कहा, ‘इसमें कोई शक नहीं कि एक अफवाह के आधार पर या कही-सुनी सूचना के आधार पर बिना सच्चाई के प्रकाशित खबर पत्रकार के लिए घातक है. यहां ऐसा नहीं है कि एफआईआर दर्ज ही न की गई हो या भ्रामक खबर प्रकाशित की गई हो. ‘
बता दें कि शिकायतकर्ता रविंद्र गुप्ता ने आरोप लगाया था कि उनके खिलाफ लोकमत में छपा एक लेख झूठा था और अखबार के द्वारा बिना कोई पुष्टि किए छापा गया था. गुप्ता ने दावा किया कि वे कथित अपराध के घटित होने के समय अपराध स्थल पर नहीं थे और उनका नाम बाद में आरोप-पत्र से बाहर निकाल दिया गया था.