टीवी की ज़हरीली बहसें महज़ लक्षण हैं, राजनीति और समाज को खा रही बीमारी तो कहीं और है

बीते दिनों केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री ने कई प्राइम टाइम टीवी एंकरों और बड़े चैनलों के संपादकों को यह चर्चा करने के लिए बुलाया कि क्या समाचार चैनलों पर सांप्रदायिकता और ध्रुवीकरण को बढ़ावा देने वाली बहसों को कम किया जा सकता है. मंत्री जी स्पष्ट तौर पर ग़लत जगह इलाज का नुस्ख़ा आज़मा रहे हैं, जबकि असल रोग उनकी नाक के नीचे ही है.

/
(इलस्ट्रेशन: परिप्लब चक्रवर्ती/द वायर)

बीते दिनों केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री ने कई प्राइम टाइम टीवी एंकरों और बड़े चैनलों के संपादकों को यह चर्चा करने के लिए बुलाया कि क्या समाचार चैनलों पर सांप्रदायिकता और ध्रुवीकरण को बढ़ावा देने वाली बहसों को कम किया जा सकता है. मंत्री जी स्पष्ट तौर पर ग़लत जगह इलाज का नुस्ख़ा आज़मा रहे हैं, जबकि असल रोग उनकी नाक के नीचे ही है.

(इलस्ट्रेशन: द वायर)

नई दिल्ली: कुछ दिनों पहले केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री ने एक दर्जन से अधिक प्राइम टाइम टीवी एंकरों के साथ-साथ प्रभावशाली समाचार चैनलों के वरिष्ठ संपादकों को इस बात पर चर्चा के लिए बुलाया कि क्या धार्मिक और सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काने वाली अत्यधिक ध्रुवीकरण वाली बहसों को कम किया जा सकता है.

इस अनुरोध ने कई वरिष्ठ टीवी एंकरों को हैरान कर दिया, जिनका सोचना था कि ध्रुवीकरण की बहस वही है जो सत्ता हमेशा से चाहती है, और असल में उसी पर फल-फूल रही है, चाहे बात विधानसभा चुनावों से पहले की हो या बाद की.

उत्तर प्रदेश में एक निर्णायक जीत के बाद दक्षिणपंथी इकोसिस्टम को सत्ता का वरदहस्त मिला. फिल्म कश्मीर फाइल्स, कर्नाटक में हिजाब प्रकरण, उत्तर भारत के कई स्थानों पर मुस्लिम प्रदर्शनकारियों को बुलडोजर से निशाना बनाने और आखिरकार ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर सावधानीपूर्वक रचे गए अभियानों ने समाचार चैनलों को यूपी चुनाव के बाद के महीनों तक व्यस्त रखा.

यही वजह रही कि कुछ टीवी चैनलों के संपादक मंत्री महोदय के हिंदू-मुस्लिम तनाव संबंधी सामग्री को कम करने के अनुरोध पर पूरी तरह से हैरान थे.

उन्होंने कुछ संपादकों से यहां तक पूछा कि क्या ध्रुवीकरण की बहस उनके दर्शकों की संख्या बढ़ा रही है और क्या वे उनके बिजनेस मॉडल का हिस्सा बन गए हैं. आदर्श तौर पर तो मंत्री जी को यूपी के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ से भी यह पूछना चाहिए कि यूपी चुनाव के लिए इन समाचार चैनलों में विज्ञापन का कितना पैसा लगाया गया था.

तो, टीवी डिबेट कंटेंट के प्रति आधिकारिक रवैये में अचानक आए इस बदलाव का क्या कारण है? जाहिर है, इसका संबंध नूपुर शर्मा प्रकरण से उपजे विवाद से है, और कैसे इस प्रकरण ने देश के अल्पसंख्यकों और संवैधानिक स्वतंत्रता के प्रति सत्तारूढ़ दल के रवैये के बारे में एक अंतरराष्ट्रीय राय बना दी है.

इस नए एहसास का एक घरेलू राजनीतिक आयाम यह हो सकता है कि एक समय के बाद बहुसंख्यकवादी राजनीति कम रिटर्न देने लगती है. पार्टी के अपदस्थ नेताओं- नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल के साथ जिस तरह का व्यवहार किया गया है, उससे ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह के दक्षिणपंथी ‘योद्धा’ भाजपा नेतृत्व से निराश हैं.

इस संबंध में हिंदुत्व इकोसिस्टम के भीतर स्पष्ट रूप से कुछ मतभेद है. यह भी संभव है कि पार्टी नेतृत्व चतुराई बरतते हुए अपने व्यापक परिवार के कैडरों को ‘कूलिंग ऑफ’ अवधि देना चाहती हो. हो सकता है कि इसकी शुरुआत आरएसएस प्रमुख के ‘हर मस्जिद के नीचे शिवलिंग की तलाश बंद करने‘ के आह्वान के साथ हुई हो.

क्या यह थोड़ा अजीब नहीं है कि टीवी स्क्रीन पर ज्ञानवापी  को लेकर होने वाली बहसें अचानक कम हो गई हैं? एक समय पर यह मुद्दा 24/7 चैनलों पर हावी था. पिछले आठ सालों में संघ परिवार ने किसी भी मुद्दे के इर्द-गिर्द ध्रुवीकरण अभियान बुनने की कला साध ली है. मित्र मीडिया की मदद से इस तरह के अभियानों का तेजी से इसकी पराकाष्ठा पर पहुंचना उसी कला का एक रूप है.

माहौल बनाने के इस प्रयास में हिंदुत्व के कारिंदों की भी कुछ जिम्मेदारी बनती है. नूपुर शर्मा प्रकरण बताता है कि आसानी से किसी सांप्रदायिक अभियान को हवा देने की यह क्षमता कभी-कभी बेहद नकारात्मक नतीजे भी ला सकती है. लेकिन इस इकोसिस्टम के व्यापक कैडर के छोटे-छोटे केंद्रों को नियंत्रित करना नामुमकिन-सा है और ऐसे में ही ये ध्रुवीकरण अभियान प्रधानमंत्री को भारी पड़ जाते हैं.

नरेंद्र मोदी इस इकोसिस्टम के कारनामों की शायद ही कभी निंदा करते हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि जब बात हाथ से निकल जाती हैं तो उन्हें उसके चलते प्रतिष्ठा को लगने वाली ठेस की परवाह होती है.

राजनीतिक विश्लेषक शिव विश्वनाथन हिंसा की ‘एव्रीडेनेस’ (everydayness) यानी ‘रोजमर्रा की जिंदगी में शामिल’ हो जाने की बात कहते हैं, जहां क्रूरता एक नियमित घटना बन जाती है. लेकिन इस क्रूरता को एक बिखरे हुए इकोसिस्टम में नियंत्रित नहीं किया जा सकता है जहां हिंसा पर सरकार भी कुछ एकाधिकार रखती है. हिंदू दक्षिणपंथ के कट्टरपंथी कार्यकर्ताओं के लिए कानून स्पष्ट रूप से नरमी बरतता दिखता है.

अगर सूचना एवं प्रसारण मंत्री अब टीवी मीडिया से सांप्रदायिक ध्रुवीकरण वाली बहसों को कम करने के लिए कह रहे हैं, तो साफ तौर पर वो गलत सिरे को पकड़ रहे हैं. ऐसे प्रयास संघ परिवार के इकोसिस्टम की तरफ से शुरू होने चाहिए जो कई सालों, खासकर 2019 भाजपा की  आम चुनावों में जीत के बाद से चरम पर है.

ऑनलाइन घृणा की यह प्रकृति और इसका जल्द ही ऑफलाइन हिंसा में बदल जाना भी ‘रोजमर्रा की क्रूरता’ का हिस्सा है. संघ को खुले तौर पर हिंदू बहुसंख्यकों को ‘पीड़ित’ बताने के झूठे दावों को कम करने की जरूरत है, जिसे लगातार कई टीवी चैनलों के जरिये बढ़ावा दिया जा रहा है. दक्षिणपंथी इकोसिस्टम जानता है कि आज उसके पास बहुसंख्यकों की भावनाओं को भड़काने और हिंदुओं के बीच उनके ‘पीड़ित’ होने की मानसिकता को पोषित करने के सभी तरीके मौजूद हैं. यह हिंदीभाषी उत्तर और मध्य राज्यों का सच है, जहां बहुसंख्यकों के पीड़ित होने की सोच ने गहरी जड़ें जमा ली हैं.

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कुछ साल पहले विज्ञान भवन में अपने संबोधन में स्वीकार किया था कि हिंदू समाज की समस्याएं भीतर हैं, और हमेशा किसी अल्पसंख्यक धार्मिक समूह पर दोष नहीं डाला जा सकता. यह वास्तविकता की एक दुर्लभ स्वीकृति थी.

लेकिन धरातल पर कोई ठोस बदलाव नहीं हुए हैं.

वास्तव में चीजें बदतर हुई हैं क्योंकि बहुसंख्यकवादी एजेंडा के नई-नई दरारें पैदा करने का खतरा भी शामिल है, जिनमें से एक है अल्पसंख्यकों के बीच कट्टरवाद. शायद समय आ गया है कि संघ परिवार भारत के सामाजिक ताने-बाने को टूटने से बचाने के लिए अपनी भावी रणनीति पर गंभीरता से आत्मनिरीक्षण करे. टीवी पर आने वाली ज़हरीली बहसें तो महज एक लक्षण हैं, राजनीति और समाज को खा रही बीमारी तो कहीं और है.

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq bandarqq dominoqq pkv games slot pulsa pkv games pkv games bandarqq bandarqq dominoqq dominoqq bandarqq pkv games dominoqq