2018 ट्वीट मामले में मोहम्मद ज़ुबैर को ज़मानत, कोर्ट ने कहा- राजनीतिक दल आलोचना से परे नहीं

दिल्ली पुलिस द्वारा ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक और पत्रकार मोहम्मद ज़ुबैर के ख़िलाफ़ दर्ज चार साल पुराने ट्वीट संबंधी मामले में ज़मानत देते हुए दिल्ली की अदालत ने कहा कि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए असहमति की आवाज़ ज़रूरी है. किसी भी राजनीतिक दल की आलोचना के लिए आईपीसी की धारा 153ए और 295ए लागू करना उचित नहीं है.

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मोहम्मद ज़ुबैर. (फोटो साभार: ट्विटर/@zoo_bear)

दिल्ली पुलिस द्वारा ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक और पत्रकार मोहम्मद ज़ुबैर के ख़िलाफ़ दर्ज चार साल पुराने ट्वीट संबंधी मामले में ज़मानत देते हुए दिल्ली की अदालत ने कहा कि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए असहमति की आवाज़ ज़रूरी है. किसी भी राजनीतिक दल की आलोचना के लिए आईपीसी की धारा 153ए और 295ए लागू करना उचित नहीं है.

मोहम्मद ज़ुबैर. (फोटो साभार: ट्विटर/@zoo_bear)

नई दिल्ली: दिल्ली की एक अदालत ने चार साल पुराने एक ‘आपत्तिजनक ट्वीट’के मामले में ‘ऑल्ट न्यूज’ के सह-संस्थापक और पत्रकार मोहम्मद जुबैर को शुक्रवार को जमानत दे दी.

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश देवेंद्र कुमार जांगला ने 50,000 रुपये के मुचलके और इतनी ही राशि की जमानत पर जुबैर को राहत दी. साथ ही अदालत ने जुबैर को उसकी पूर्व अनुमति के बिना देश से बाहर नहीं जाने को कहा.

एक मजिस्ट्रेट अदालत ने मामले में दो जुलाई को उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी और उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया था.

रिपोर्ट के अनुसार, शुक्रवार को उन्हें जमानत देते हुए न्यायाधीश जांगला ने कहा, ‘लोकतंत्र वैसी सरकार है जो मुक्त विचारों से चलती है. जब तक लोग अपने विचार साझा नहीं करते तब तक कोई लोकतंत्र न तो समृद्ध हो सकता है और न ही सही से काम कर सकता है. भारत के संविधान का अनुच्छेद 19 (1) (ए) अपने नागरिकों को बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है. इस बात में कोई शुबहा नहीं है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक लोकतांत्रिक समाज की बुनियाद है. विचारों का मुक्त आदान-प्रदान, बिना किसी रोक-टोक के सूचना, ज्ञान का प्रसार, विभिन्न दृष्टिकोणों पर बात करना, बहस करना, कोई राय बनाना और उसे व्यक्त करना, एक मुक्त समाज के मूल संकेतक हैं.’

वर्तमान मामले में जिस ट्वीट को लेकर आपत्ति दर्ज की गई है, उसे लेकर उन्होंने कहा कि ट्वीट से धार्मिक भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचनी चाहिए. उन्होंने कहा, ‘हिंदू धर्म सबसे पुराने धर्मों में से एक है और सबसे अधिक सहिष्णु है. हिंदू धर्म के अनुयायी भी सहिष्णु हैं …किसी संस्थान, सेवा या संगठन या बच्चे का नाम हिंदू देवता के नाम पर रखना तब तक आईपीसी की धारा 153ए और 295ए का उल्लंघन नहीं है, जब तक कि ऐसा द्वेषपूर्ण या अपराधी इरादे से नहीं किया जाता है. कथित कृत्य तभी अपराध की श्रेणी में आएगा, जब वह अपराध के इरादे से किया गया हो.’

जज ने यह कहते हुए कि अपने ट्वीट में जुबैर सत्तारूढ़ दल पर टिप्पणी कर रहे थे, कहा, ‘भारतीय लोकतंत्र में राजनीतिक दल आलोचना से परे नहीं हैं. राजनीतिक दल अपनी नीतियों की आलोचना का सामना करने से पीछे नहीं हट रहे हैं. स्वस्थ लोकतंत्र के लिए असहमति की आवाज जरूरी है. इसलिए, केवल किसी भी राजनीतिक दल की आलोचना के लिए आईपीसी की धारा 153ए और 295ए लागू करना उचित नहीं है.’

न्यायाधीश ने यह भी कहा कि पुलिस उस ट्विटर यूज़र, जो मामले में शुरुआती शिकायतकर्ता था, की पहचान करने में विफल रही है, जिसने जुबैर के ट्वीट से आहत होने का दावा किया था.

अदालत ने यह भी जोड़ा कि प्रथमदृष्टया जुबैर द्वारा जमा किए गए दस्तावेज उनके द्वारा ‘एफसीआरए की धारा 39 के उचित अनुपालन को दर्शाते हैं.’

जुबैर को इस मामले में 27 जून को गिरफ्तार किया गया था और तब से वह हिरासत में हैं. मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट स्निग्धा सरवरिया द्वारा 2 जुलाई को उनकी याचिका खारिज किए जाने के बाद उन्होंने जमानत के लिए सत्र अदालत का रुख किया था.

वर्तमान में जुबैर कई मामलों में गिरफ्तारी का सामना कर रहे हैं. शुक्रवार के फैसले के साथ अब उन्हें दो मामलों में जमानत मिल गई है. यूपी के लखीमपुर खीरी में उनके खिलाफ दर्ज तीसरे मामले में उनकी जमानत पर सुनवाई शनिवार को होनी है. इससे पहले सीतापुर मामले में उन्हें सात सितंबर तक अंतरिम जमानत दी गई है.

गुरुवार को जुबैर ने अपने ट्वीट को लेकर उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा दर्ज की गई छह एफआईआर रद्द करने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है.

मालूम हो कि मोहम्मद जुबैर को बीते 27 जून को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 295 (किसी भी वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करके उनकी धार्मिक भावनाओं को आहत करने के लिए किया गया जान-बूझकर और दुर्भावनापूर्ण कृत्य) और 153 (धर्म, जाति, जन्म स्थान, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच विद्वेष को बढ़ाना) के तहत दिल्ली पुलिस ने मामला दर्ज कर गिरफ़्तार किया गया था.

बीते दो जुलाई को दिल्ली पुलिस ने जुबैर के खिलाफ एफआईआर में आपराधिक साजिश, सबूत नष्ट करने और विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम की धारा 35 के तहत नए आरोप जोड़े हैं. ये आरोप जांच में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की दखल का द्वार खोलते हैं.

जुबैर की गिरफ्तारी 2018 के उस ट्वीट को लेकर हुई थी जिसमें 1983 में बनी फिल्म ‘किसी से न कहना’ का एक स्क्रीनशॉट शेयर किया गया था.

ज़ुबैर के खिलाफ दर्ज एफआईआर में उल्लेख था, ‘हनुमान भक्त (@balajikijaiin) नामक ट्विटर हैंडल से मोहम्मद जुबैर (@zoo_bear) के ट्विटर हैंडल द्वारा किए गए एक ट्वीट को साझा किया गया था, जिसमें जुबैर ने एक फोटो ट्वीट की थी, जिसमें एक जिस पर साइनबोर्ड पर होटल का नाम ‘हनीमून होटल’ से बदलकर ‘हनुमान होटल’ दिखाया गया था. तस्वीर के साथ जुबैर ने ‘2014 से पहले हनीमून होटल…  2014 के बाद हनुमान होटल…’ लिखा था.’

इस संबंध में दिल्ली पुलिस की एफआईआर के अनुसार, ट्विटर यूजर (@balajikijaiin) ने साल 2018 में जुबैर द्वारा शेयर किए गए एक फिल्म के स्क्रीनशॉट वाले ट्वीट को लेकर लिखा था कि ‘हमारे भगवान हनुमान जी को हनीमून से जोड़ा जा रहा है जो प्रत्यक्ष रूप से हिंदुओं का अपमान है क्योंकि वह (भगवान हनुमान) ब्रह्मचारी हैं. कृपया इस व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई करें.’

बाद में, यह ट्विटर हैंडल डिलीट कर दिया गया. अब यह हैंडल दोबारा सक्रिय हुआ है, लेकिन जुबैर से संबंधित ट्वीट डिलीट कर दिया गया है.

बीते दो जुलाई को हिंदू देवता के बारे में कथित ‘आपत्तिजनक ट्वीट’ करने के मामले में मोहम्मद जुबैर को अदालत ने 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

(नोट: (5 नवंबर 2022) इस ख़बर को टेक फॉग ऐप संबंधी संदर्भ हटाने के लिए संपादित किया गया है. टेक फॉग संबंधी रिपोर्ट्स को वायर द्वारा की जा रही आंतरिक समीक्षा के चलते सार्वजनिक पटल से हटाया गया है.)