विपक्षी नेताओं ने अग्निपथ सैन्य भर्ती योजना में जाति पूछने का आरोप लगाया

राजद नेता तेजस्वी यादव, आप के राज्यसभा सदस्य संजय सिंह आदि ने केंद्र की मोदी सरकार पर इस मुद्दे पर तीखा हमला बोला है. यादव ने कहा कि जात न पूछो साधु की, लेकिन जात पूछो फौजी की. संघ की भाजपा सरकार जातिगत जनगणना से दूर भागती है, लेकिन देश सेवा के लिए जान देने वाले अग्निवीर भाइयों से जाति पूछती है. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने आरोपों को ख़ारिज करते हुए इसे अफ़वाह बताया है.

(फोटो साभार: फेसबुक वीडियोग्रैब)

राजद नेता तेजस्वी यादव, आप के राज्यसभा सदस्य संजय सिंह आदि ने केंद्र की मोदी सरकार पर इस मुद्दे पर तीखा हमला बोला है. यादव ने कहा कि जात न पूछो साधु की, लेकिन जात पूछो फौजी की. संघ की भाजपा सरकार जातिगत जनगणना से दूर भागती है, लेकिन देश सेवा के लिए जान देने वाले अग्निवीर भाइयों से जाति पूछती है. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने आरोपों को ख़ारिज करते हुए इसे अफ़वाह बताया है.

(फोटो साभार: फेसबुक वीडियोग्रैब)

नई दिल्ली: कई विपक्षी नेताओं और भाजपा के एक सहयोगी ने मंगलवार (19 जुलाई) को आरोप लगाया कि भारतीय सेना ‘अग्निपथ’ योजना के तहत युवाओं की भर्ती में जाति को एक कारक के रूप में इस्तेमाल कर रही है.

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने तुरंत इस आरोप का खंडन करते हुए कहा कि यह केवल ‘एक अफवाह’ है.

राष्ट्रीय जनता दल (राजद) नेता तेजस्वी यादव और आम आदमी पार्टी (आप) के राज्यसभा सदस्य संजय सिंह ने सरकार पर इस मुद्दे को लेकर तीखा हमला बोला है.

वहीं, जनता दल यूनाइटेड (जदयू) नेता उपेंद्र कुशवाहा और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद वरुण गांधी ने भी सेना की भर्ती के लिए जाति प्रमाण-पत्र मांगे जाने संबंधी कथित दस्तावेज ट्विटर पर साझा कर इस पर चिंता जताई.

राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद के राजनीतिक उत्तराधिकारी माने जाने वाले उनके छोटे पुत्र तेजस्वी यादव ने अपने व्यंग्यात्मक ट्वीट में कहा, ‘जात न पूछो साधु की, लेकिन जात पूछो फौजी की. संघ की भाजपा सरकार जातिगत जनगणना से दूर भागती है, लेकिन देश सेवा के लिए जान देने वाले अग्निवीर भाइयों से जाति पूछती है.’

उन्होंने आरोप लगाया, ‘ये जाति इसलिए पूछ रहे हैं क्योंकि देश का सबसे बड़ा जातिवादी संगठन आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ) बाद में जाति के आधार पर अग्निवीरों की छंटनी करेगा.’

यादव ने आरोप लगाया, ‘केंद्र में संघ (राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ) की घोर जातिवादी सरकार अब अग्निपथ रंगरूटों में से 75 प्रतिशत की छंटनी करने के दौरान जाति और धर्म देखेगी.’

बिहार के पूर्व उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी ने कहा, ‘आजादी के बाद 75 वर्षों तक सेना में ठेके पर अग्निपथ व्यवस्था लागू नहीं थी. सेना में भर्ती होने के बाद 75 प्रतिशत सैनिकों की छंटनी नहीं होती थी, लेकिन संघ की कट्टर जातिवादी सरकार अब जाति-धर्म देखकर 75 फीसदी सैनिकों की छंटनी करेगी. सेना में जब आरक्षण है ही नहीं तो जाति प्रमाण-पत्र की क्या जरूरत.’

सत्तारूढ़ भाजपा ने आरोप लगाया कि आलोचक सेना का ‘अनादर और अपमान’ कर रहे हैं और युवाओं को सड़कों पर प्रदर्शन करने के लिए भड़काने की कोशिश कर रहे हैं.

राजनाथ सिंह ने इन आरोपों को खारिज करते हुए संसद परिसर में पत्रकारों से कहा, ‘मैं स्पष्ट करना चाहता हूं कि यह एक अफवाह है. आजादी से पहले जो (भर्ती) व्यवस्था थी, वह अब भी जारी है और उसमें कोई बदलाव नहीं हुआ है.’

गौरतलब है कि अग्निपथ योजना सशस्त्र बलों में सैनिकों की अल्पकाल के लिए भर्ती की योजना है, जिसकी विपक्ष ने कड़ी आलोचना की है. इसके तहत भर्ती होने वाले ‘अग्निवीरों’ में से 75 प्रतिशत को चार साल के बाद सेवामुक्त कर दिया जाएगा जबकि 25 प्रतिशत उम्मीदवार दीर्घकालिक सेवा के लिए चुने जाएंगे.

भर्ती के लिए आवेदकों से अन्य प्रमाण-पत्रों के साथ जाति प्रमाण-पत्र भी मांगने संबंधी सेना के कथित दस्तावेज को साझा करते हुए यादव ने कहा, ‘जब सेना में कोई आरक्षण नहीं है तो जाति प्रमाण-पत्र की क्या जरूरत है.’

उन्होंने कहा, ‘राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की भाजपा सरकार जाति आधारित जनगणना से दूर भागती है, लेकिन देश के लिए जान देने को तैयार अग्निवीरों से जाति पूछती है.’

यादव ने दावा किया कि अग्निवीरों से जाति इसलिए पूछी जा रही है क्योंकि बाद में जाति के आधार पर अग्निवीरों की छंटनी की जाएगी.

इससे पहले आप के राज्यसभा सदस्य संजय सिंह ने ट्वीट कर कहा था कि भारत के इतिहास में पहली बार सेना की भर्ती में उम्मीदवारों से उनकी जाति का उल्लेख करने को कहा जा रहा है. उन्होंने सवाल किया कि क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों को सशस्त्र बलों में अपनी सेवा देने के योग्य नहीं समझते?

आप नेता सिंह ने ट्वीट किया, ‘मोदी सरकार का घटिया चेहरा देश के सामने आ चुका है. क्या मोदी जी दलितों/पिछड़ों/आदिवासियों को सेना में भर्ती के काबिल नहीं मानते? भारत के इतिहास में पहली बार सेना की भर्ती में जाति पूछी जा रही है. मोदी जी आपको अग्निवीर तैयार करना है या ‘जातिवीर’.’

भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि सेना की भर्ती प्रक्रिया समान रूप से स्वतंत्रता पूर्व से चली आ रही है. उन्होंने कहा कि इसे औपचारिक स्वरूप वर्ष 1947 के बाद ‘विशेष सेना आदेश’ के तहत दिया गया और अब भी उसका अनुपालन किया जा रहा है.

पात्रा ने संवाददाताओं से कहा कि सेना ने वर्ष 2013 में, जब कांग्रेस नीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) की सरकार थी तब, एक जनहित याचिका के जवाब में सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया था. पात्रा के अनुसार, हलफनामे में कहा गया कि उसकी भर्ती में धर्म और जाति की कोई भूमिका नहीं है और उम्मीदवारों से यह जानकारी केवल प्रशासनिक कारणों से ली जाती है.

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जदयू) और उनके कट्टर प्रतिद्वंद्वी लालू प्रसाद की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने मंगलवार को केंद्र सरकार की अग्निपथ योजना पर सवाल उठाते हुए पूछा कि सेना की बहाली में जाति-धर्म पूछने का क्या औचित्य है.

भाजपा की सहयोगी जदयू के नेता उपेंद्र कुशवाहा ने भी यह मुद्दा उठाया और सवाल किया कि जब आरक्षण का प्रावधान नहीं है, तो सेना की भर्ती में जाति प्रमाण-पत्र की क्या जरूरत है.

जदयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को संबोधित कुछ सोशल मीडिया पोस्ट के जरिये कहा, ‘सेना की बहाली में जाति प्रमाण-पत्र की क्या जरूरत है? जब इसमें आरक्षण का कोई प्रावधान ही नहीं है. संबंधित विभाग के अधिकारियों को स्पष्टीकरण देना चाहिए.’

अपने ट्विटर हैंडल के जरिये कुशवाहा ने रक्षामंत्री से सवाल किया, ‘सेना की बहाली में जाति प्रमाण-पत्र के साथ जाति-धर्म की जानकारी देने-लेने का अगर कोई सदुपयोग है तो स्पष्ट होना चाहिए अन्यथा इसके दुरुपयोग की आशंका देशवासियों में वाजिब है. कृपया आशंका दूर करवाएं.’

उन्होंने पत्रकारों से बातचीत में कहा, ‘अग्निवीरों की बहाली के लिए जारी अधिसूचना में उनसे जाति और धर्म के बारे में पूछे जाने पर उन्हें आश्चर्य हुआ, क्योंकि इसमें आरक्षण का प्रावधान ही नहीं है. ऐसे में मैंने रक्षा मंत्री से आग्रह किया है इस पर एक स्पष्टीकारण आना चाहिए कि आखिर इसका उपयोग क्या है क्यों जब इसका कोई सदुपयोग है नहीं. जब कोई सुविधा होती जाति के कारण तो इसका सदुपयोग होता. सदुपयोग है नहीं तो ऐसे में संभव है कि बाद में इसका दुरूपयोग हो सकता है.’

भाजपा सांसद वरुण गांधी भी कुशवाहा का इस मुद्दे पर समर्थन करते नजर आए. उन्होंने ट्वीट किया, ‘सेना में किसी भी तरह का कोई आरक्षण नहीं है पर अग्निपथ की भर्तियों में जाति प्रमाण-पत्र मांगा जा रहा है. क्या अब हम जाति देख कर किसी की राष्ट्रभक्ति तय करेंगे?’

वरुण गांधी ने कहा, ‘सेना की स्थापित परंपराओं को बदलने से हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा पर जो प्रभाव पड़ेगा, उसके बारे में सरकार को सोचना चाहिए.’

आलोचकों पर तीखा हमला करते हुए पात्रा ने कांग्रेस सहित विपक्षी सदस्यों पर सेना का ‘अनादर और अपमान’ करने का आरोप लगाया.

उन्होंने कहा कि अगर सैनिक अपने कर्तव्य का निर्वहन करने के दौरान सर्वोच्च बलिदान देता है, तो उसके धर्म की जानकारी होने से अंतिम संस्कार की तैयारी करने में मदद मिलती है.

पात्रा ने कहा कि विपक्षी सदस्य समय-समय पर सेना को लेकर विवाद पैदा करते रहे हैं. उन्होंने कहा कि आप नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पहले भी पाकिस्तान स्थित आतंकवादी ठिकानों को निशाना बनाकर की गई सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल उठाया था.

उन्होंने सवाल किया, ‘भारतीय सेना कभी आवेदकों की जाति और धर्म के आधार पर भर्ती नहीं करती. वह इससे ऊपर है. क्या इन लोगों को यह जानकारी नहीं है?’

सिंह ने राज्यसभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू से अग्निपथ योजना के लिए नीति में किए गए कथित बदलाव का मुद्दा सदन में उठाने की अनुमति देने का अनुरोध किया. हालांकि, इस दौरान उन्होंने प्रत्यक्ष तौर पर जाति या धर्म के मुद्दे का उल्लेख नहीं किया.

राष्ट्रीय जनता दल (राजद) सांसद मनोज झा ने अग्निपथ योजना के कथित ‘विनाशकारी प्रभाव’ के मुद्दे पर चर्चा के लिए संसद के उच्च सदन में कार्य स्थगन प्रस्ताव पेश किया.

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जदयू के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के ‘अग्निवीर’ उम्मीदवारों से जाति विवरण मांगे जाने संबंधी बयान को बुधवार को खारिज कर दिया.

सिंह के स्पष्टीकरण से असहमत दिखे कुशवाहा ने बीते 20 जुलाई को ट्वीट कर कहा, ‘सवाल यह नहीं है कि सेना में जाति-धर्म जानने की प्रथा की शुरुआत कब से हुई. सीधा सा सवाल तो यह है कि आखिर इसका औचित्य व प्रसांगिकता ही क्या? अगर अप्रासंगिक परंपरागत कानूनों को समाप्त किया जा सकता है तो परंपरा के नाम पर इसे बनाए रखने का कुतर्क क्यों.’

बिहार में ‘अग्निपथ’ योजना को लेकर हुए हिंसक विरोध-प्रदर्शनों ने केंद्र में सत्तासीन भाजपा और राज्य में उसकी सत्तारूढ़ सहयोगी जदयू के बीच दरार को उजागर कर दिया है.

बिहार में सत्ताधारी राजग में शामिल पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के प्रमुख पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने भी जदयू और राजद की तरह सवाल किया, ‘जब सशस्त्र बलों में भर्ती की नई योजना के तहत जाति आधारित आरक्षण नहीं है तो उन्हें अपनी जाति का खुलासा करने के लिए क्यों कहा जा रहा है.’

वहीं भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता अरविंद कुमार सिंह ने एक बयान में कहा, ‘सशस्त्र बलों में उम्मीदवारों के सभी व्यक्तिगत विवरण एकत्र किए जाता रहा है. यह कोई नई बात नहीं है और कोई विवाद पैदा करने की कोई जरूरत नहीं है.

बता दें कि केंद्र सरकार ने दशकों पुरानी रक्षा भर्ती प्रक्रिया में आमूलचूल परिवर्तन करते हुए थलसेना, नौसेना और वायुसेना में सैनिकों की भर्ती संबंधी अग्निपथ नामक योजना की बीते 14 जून को घोषणा की थी, जिसके तहत सैनिकों की भर्ती सिर्फ चार साल की कम अवधि के लिए संविदा आधार पर की जाएगी.

भर्ती के नए प्रारूप की घोषणा के बाद देश के कई हिस्सों में हिंसक विरोध देखा गया. सैन्य भर्ती की नई योजना के तहत केवल चार साल के लिए साढ़े 17 वर्ष से 21 वर्ष की आयु के युवाओं की भर्ती का प्रावधान है, जिनमें से 25 प्रतिशत को और 15 वर्षों के लिए सेवा में बनाए रखने का प्रावधान है. वर्ष 2022 के लिए ऊपरी आयु सीमा को बढ़ाकर 23 वर्ष कर दिया गया है.

योजना के तहत तीनों सेनाओं में इस साल करीब 46,000 सैनिक भर्ती किए जाएंगे. योजना के तहत 17.5 साल से 21 साल तक के युवाओं को चार साल के लिए सेना में भर्ती किया जाएगा और उनमें से 25 फीसदी सैनिकों को अगले 15 और साल के लिए सेना में रखा जाएगा.

अग्निपथ योजना के तहत रोजगार के पहले वर्ष में एक ‘अग्निवीर’ का मासिक वेतन 30,000 रुपये होगा, लेकिन हाथ में केवल 21,000 रुपये ही आएंगे. हर महीने 9,000 रुपये सरकार के एक कोष में जाएंगे, जिसमें सरकार भी अपनी ओर से समान राशि डालेगी.

इसके बाद दूसरे, तीसरे और चौथे वर्ष में मासिक वेतन 33,000 रुपये, 36,500 रुपये और 40,000 रुपये होगा. प्रत्येक ‘अग्निवीर’ को ‘सेवा निधि पैकेज’ के रूप में 11.71 लाख रुपये की राशि मिलेगी और इस पर आयकर से छूट मिलेगी.

इस योजना के खिलाफ जारी विरोध प्रदर्शनों को विफल करने के प्रयास के तहत देश के सैन्य नेतृत्व ने बीते 19 जून को घोषणा की थी कि नई भर्ती योजना के लिए आवेदकों को इस प्रतिज्ञा के साथ एक शपथ-पत्र देना होगा कि उन्होंने किसी भी विरोध, आगजनी या आंदोलन में भाग नहीं लिया है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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