आईसीजे ने म्यांमार के इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस आईसीजे के इस निर्णय के साथ ही पश्चिम अफ्रीका के मुस्लिम बहुल देश गाम्बिया की ओर से म्यांमार के शासकों के ख़िलाफ़ रोहिंग्या समुदाय के लोगों के नरसंहार के आरोपों की सुनवाई आगे जारी रहेगी. साल 2019 में गाम्बिया ने विश्व अदालत में मामला दायर कर आरोप लगाया था कि म्यांमार नरसंहार संधि का उल्लंघन कर रहा है.
द हेग: संयुक्त राष्ट्र की सर्वोच्च अदालत ने रोहिंग्या मुसलमानों के नरसंहार के लिए म्यांमार सरकार के जिम्मेदार होने के आरोपों पर उसकी की प्रारंभिक आपत्तियां शुक्रवार को खारिज कर दी है.
अंतरराष्ट्रीय अदालत यानी इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (आईसीजे) के इस निर्णय के साथ ही पश्चिम अफ्रीका के मुस्लिम बहुल देश गाम्बिया की ओर से साल 2019 में म्यांमार के शासकों के खिलाफ नरसंहार के आरोपों की सुनवाई आगे जारी रहेगी. यह बात दीगर है कि इसमें वर्षों लगेंगे.
रोहिंग्या के साथ किए जाने वाले कथित दुर्व्यवहार को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्पन्न आक्रोश के बीच गाम्बिया ने विश्व अदालत में मामला दायर कर आरोप लगाया था कि म्यांमार नरसंहार संधि का उल्लंघन कर रहा है.
इसकी दलील है कि गाम्बिया और म्यांमार दोनों ही संधि के पक्षकार हैं और सभी हस्ताक्षरकर्ताओं का यह कर्तव्य है कि वे यह सुनिश्चित करें कि इसे लागू किया जाए.
इस बीच, इस मामले में फैसला आने से पहले अंतरराष्ट्रीय अदालत के मुख्यालय ‘पीस पैलेस’ के बाहर रोहिंग्या-समर्थक प्रदर्शनकारियों का एक छोटा समूह इकट्ठा हुआ, जिनके हाथों में बैनर थे, जिन पर लिखा था, ‘रोहिंग्या को न्याय दिलाने की प्रक्रिया तेज हो. नरसंहार में बचे रोहिंग्या मुसलमान पीढ़ियों तक इंतजार नहीं कर सकते.’
आईसीजे को पहले इस बात का निर्णय करना था कि क्या हेग स्थित अदालत का (संबंधित मामले की) सुनवाई का अधिकार क्षेत्र है या नहीं और 2019 में छोटे अफ्रीकी राष्ट्र गाम्बिया की ओर से दर्ज कराया गया मामला सुनवाई योग्य है या नहीं.
मानवाधिकार समूह और संयुक्त राष्ट्र की जांच में इस नरसंहार को 1948 की संधि का उल्लंघन करार दिया जा चुका है.
अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने मार्च में कहा था कि म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों का हिंसक दमन नरसंहार के बराबर है.
म्यांमार का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों ने फरवरी में तर्क दिया था कि इस मामले को खारिज कर दिया जाना चाहिए, क्योंकि विश्व अदालत केवल देशों के बीच के मामलों की सुनवाई करती है, जबकि रोहिंग्या का मामला इस्लामिक सहयोग संगठन की ओर से गाम्बिया ने दायर किया है.
उन्होंने यह भी दावा किया कि गाम्बिया इस मामले में अदालत नहीं जा सकता, क्योंकि यह सीधे तौर पर म्यांमार की घटनाओं से जुड़ा नहीं था और मामला दायर होने से पहले दोनों देशों के बीच कोई कानूनी विवाद भी नहीं था.
गौरतलब है कि म्यांमार के सशस्त्र बलों ने अगस्त 2017 में एक सैन्य अभियान शुरू किया, जिसमें मुख्य रूप से रोहिंग्या मुस्लिम समुदाय के कम से कम 7,30,000 लोगों को उनके घरों छोड़कर और पड़ोसी बांग्लादेश में मजबूर किया गया था. यहां उन्होंने हत्याओं, सामूहिक बलात्कार और आगजनी की घटनाओं की बात कही थी. 2021 में म्यांमार की सेना ने तख्तापलट में सत्ता पर कब्जा कर लिया था.
म्यांमार की सेना ने रोहिंग्या के खिलाफ नरसंहार करने से इनकार किया है, जिन्हें म्यांमार में नागरिकता से वंचित कर दिया गया है. सेना का कहना है कि यह 2017 में आतंकवादियों के खिलाफ एक अभियान चला रहा था.
अमेरिकी विदेश विभाग की 2018 की एक रिपोर्ट में म्यांमार की सेना द्वारा गांवों को तबाह करने और 2016 के बाद से नागरिकों से बलात्कार, यातना और सामूहिक हत्याओं को अंजाम देने के उदाहरणों को शामिल किया गया है.
बर्मी रोहिंग्या ऑर्गनाइजेशन यूके (ब्रूक) के अध्यक्ष तुन खिन ने अल जज़ीरा को बताया, ‘ये आपत्तियां देरी करने की रणनीति से ज्यादा कुछ नहीं थीं और यह निराशाजनक है कि आईसीजे ने अपना फैसला लेने में डेढ़ साल का समय लिया है. नरसंहार जारी है और यह महत्वपूर्ण है कि अदालत किसी और देरी की अनुमति न दे.’
आईसीजे ने पहले ही म्यांमार को रोहिंग्या की सुरक्षा के लिए तत्काल उपाय करने का आदेश दिया है, न्यायाधीशों ने कहा कि इससे समूह के अधिकारों को अपूरणीय क्षति हुई है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)