भारत ने म्यांमार में लोकतंत्र समर्थक चार कार्यकर्ताओं को मौत की सज़ा पर गहरी चिंता जताई

बीते 25 जुलाई को म्यांमार के सैन्य शासन ने घोषणा की थी कि उसने आतंकवादी कृत्यों को अंजाम देने में मदद करने के आरोप में चार लोकतंत्र कार्यकर्ताओं को फांसी दे दी गई है. उन पर सेना से लड़ने वाले विद्रोहियों की सहायता करने का आरोप लगाया गया था. भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि म्यांमार के लोगों के मित्र के रूप में हम म्यांमार की लोकतंत्र और स्थिरता की वापसी का समर्थन करना जारी रखेंगे.

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लोकतंत्र समर्थक चार कार्यकर्ताओं को फांसी दिए जाने के बाद म्यांमार में प्रदर्शन हो रहे हैं. (फोटोः रॉयटर्स)

बीते 25 जुलाई को म्यांमार के सैन्य शासन ने घोषणा की थी कि उसने आतंकवादी कृत्यों को अंजाम देने में मदद करने के आरोप में चार लोकतंत्र कार्यकर्ताओं को फांसी दे दी गई है. उन पर सेना से लड़ने वाले विद्रोहियों की सहायता करने का आरोप लगाया गया था. भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि म्यांमार के लोगों के मित्र के रूप में हम म्यांमार की लोकतंत्र और स्थिरता की वापसी का समर्थन करना जारी रखेंगे.

लोकतंत्र समर्थक चार कार्यकर्ताओं को फांसी दिए जाने के बाद म्यांमार में प्रदर्शन हो रहे हैं. (फोटोः रॉयटर्स)

नई दिल्ली/संयुक्त राष्ट्र: भारत ने म्यांमार की सैन्य सरकार द्वारा लोकतंत्र समर्थक चार कार्यकर्ताओं को फांसी दिए जाने पर बृहस्पतिवार को गहरी चिंता व्यक्त की और कहा कि देश (म्यांमार) में कानून के शासन और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कायम रखा जाना चाहिए.

बीते 25 जुलाई को म्यांमार के सैन्य शासन जुंटा ने घोषणा की थी कि उसने आतंकवादी कृत्यों को अंजाम देने में मदद करने के आरोप में चार लोकतंत्र कार्यकर्ताओं को फांसी दे दी गई है. उन पर सेना से लड़ने वाले विद्रोहियों की सहायता करने का आरोप लगाया गया था. मुकदमे के दौरान इन चारों को मौत की सजा सुनाई गई थी. सेना ने पिछले साल तख्तापलट कर म्यांमार की सत्ता पर कब्जा कर लिया था.

जिन चार कार्यकर्ताओं को फांसी दी गई है, उनकी पहचान लोकतंत्र प्रचारक क्याव मिन यू, पूर्व सांसद और हिपहॉप कलाकार फ्यो ज़ेया थाव, हला मायो आंग और आंग थुरा जॉ के रूप में की गई. मिन यू और ज़ेया थाव दोनों ही पूर्व राज्य सलाहकार और नोबेल पुरस्कार विजेता आंग सान सू की के राजनीतिक सहयोगी थे.

म्यांमार में कार्यकर्ताओं को फांसी दिए जाने पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कड़ी निंदा की गई है.

बीते 28 जुलाई को भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा, ‘हमने म्यांमार में इन घटनाओं पर गहरी चिंता जताई है. म्यांमार के पड़ोसी देश के तौर पर हमने हमेशा मुद्दों के शांतिपूर्ण समाधान की आवश्यकता पर बल दिया है.’

बागची साप्ताहिक प्रेसवार्ता के दौरान इस विषय पर मीडिया के एक सवाल का जवाब दे रहे थे.

एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, ‘कानून के शासन और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बरकरार रखा जाना चाहिए. म्यांमार के लोगों के मित्र के रूप में हम म्यांमार की लोकतंत्र और स्थिरता की वापसी का समर्थन करना जारी रखेंगे.’

भारत का यह बयान 10 दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के गुट (आसियान) द्वारा कठोर भाषा में फांसी की निंदा करने के दो दिन बाद आया है. इससे पहले आसियान ने म्यांमार से सजा पर पुनर्विचार करने की अपील की थी.

बीते 26 जुलाई को दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (आसियान) ने फांसी की निंदा करते हुए उन्हें अत्यधिक निंदनीय कहा था. बयान में जुंटा के कार्यों को आसियान की पांच-सूत्रीय सहमति शांति योजना का समर्थन करने के लिए इच्छा की भारी कमी के रूप में वर्णित किया था.

क्षेत्रीय संगठन, जिसका म्यांमार एक सदस्य है, ने कहा है कि कंबोडियाई प्रधानमंत्री हुन सेन द्वारा ‘व्यक्तिगत अपील’ के बावजूद हुई फांसी से वह ‘बेहद परेशान और काफी दुखी’ था. यह एक ऐसा मुद्दा है, जिसे आसियान गंभीरता से लेता है.

मलेशियाई विदेश मंत्री सैफुद्दीन अब्दुल्ला ने फांसी के समय पर सवाल उठाया, जो आसियान की बैठक से एक सप्ताह पहले हुआ है.

सैफुद्दीन ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा था, ‘हमने इसे (फांसी की सजा) ऐसे देखा, जैसे कि जुंटा पांच सूत्रीय सहमति का मजाक बना रहा है और मुझे लगता है कि हमें वास्तव में इसे बहुत गंभीरता से देखना होगा.’

उन्होंने कहा कि म्यांमार को किसी भी अंतरराष्ट्रीय मंत्रिस्तरीय बैठक में राजनीतिक प्रतिनिधियों को भेजने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. उन्होंने मलेशिया के पिछले आह्वान को विस्तृत करते हुए कहा कि शांति योजना पर प्रगति होने तक आसियान शिखर सम्मेलन से जुंटा के अधिकारियों को रोक दिया जाए.

यूएन सुरक्षा परिषद ने चार कार्यकर्ताओं को फांसी दिए जाने पर म्यांमार की निंदा की

भारत और दक्षिण एशिया के अन्य देशों के अलावा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने म्यांमार द्वारा चार लोकतंत्र समर्थकों को फांसी दिए जाने की बुधवार (27 जुलाई) को सर्वसम्मति से निंदा की और उससे सभी प्रकार की हिंसा को तत्काल रोकने तथा ‘मानवाधिकारों और कानून के राज का पूरा सम्मान’ करने का आह्वान किया.

सुरक्षा परिषद के सभी 15 सदस्यों द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि चार लोकतंत्र समर्थकों को ऐसे वक्त में फांसी दी गई, जब दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संघ (आसियान) ने सजा पर पुनर्विचार करने की अपील की थी.

परिषद के सदस्यों ने म्यांमार के लोकतांत्रिक तरीके से सत्ता हस्तांतरण के लिए पूर्ण समर्थन और म्यांमार की संप्रभुत्ता, राजनीतिक स्वतंत्रता, क्षेत्रीय अखंडता तथा म्यांमार की एकता के प्रति उनकी मजबूत प्रतिबद्धता को भी दोहराया.

गौरतलब है कि आसियान म्यांमार में शांति लाने के वैश्विक प्रयासों का नेतृत्व कर रहा है. म्यांमार में फरवरी 2021 में निर्वाचित सरकार का सेना द्वारा तख्तापलट किए जाने के बाद से व्यापक पैमाने पर अराजकता का माहौल है.

आसियान ने इस सप्ताह दी गई फांसी की इस सजा को अत्यधिक निंदात्मक बताया और कहा कि इससे सैन्य नेतृत्व तथा विरोधियों के बीच संवाद के उसके प्रयासों को झटका लगा है.

इससे पहले बीते 26 जुलाई को लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ताओं को फांसी देने की दुनिया के विभिन्न देशों ने निंदा की थी.

न्यूजीलैंड की विदेश मंत्री नानैया महुता ने कहा था, म्यांमार के सैन्य शासन ने बर्बर कृत्य किया है. न्यूजीलैंड कठोर शब्दों में इसकी निंदा करता है.

वहीं, ऑस्ट्रेलिया की विदेश मंत्री पेन्नी वॉन्ग ने कहा था कि वह राजनीतिक कैदियों को फांसी दिए जाने से हैरान हैं. ऑस्ट्रेलिया सभी परिस्थितियों में किसी भी व्यक्ति के लिए मौत की सजा का विरोध करता है. इससे अलावा यूरोपीय संघ, जापान, ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा, नॉर्वे और दक्षिण कोरिया भी एक संयुक्त बयान में म्यांमार में कार्यकर्ताओं को फांसी देने की निंदा कर चुके हैं.

गौरतलब है कि म्यांमार में सेना ने एक फरवरी 2021 को तख्तापलट कर नोबेल विजेता आंग सान सू ची की निर्वाचित सरकार को बेदखल करते हुए और उन्हें तथा उनकी पार्टी के अन्य नेताओं को नजरबंद करते हुए देश की बागडोर अपने हाथ में ले ली थी.

म्यांमार की सेना ने एक साल के लिए देश का नियंत्रण अपने हाथ में लेते हुए कहा था कि उसने देश में नवंबर में हुए चुनावों में धोखाधड़ी की वजह से सत्ता कमांडर इन चीफ मिन आंग ह्लाइंग को सौंप दी है.

सेना का कहना है कि सू ची की निर्वाचित असैन्य सरकार को हटाने का एक कारण यह है कि वह व्यापक चुनावी अनियमितताओं के आरोपों की ठीक से जांच करने में विफल रहीं.

नवंबर 2020 में हुए चुनावों में सू ची की पार्टी ने संसद के निचले और ऊपरी सदन की कुल 476 सीटों में से 396 पर जीत दर्ज की थी, जो बहुमत के आंकड़े 322 से कहीं अधिक था, लेकिन 2008 में सेना द्वारा तैयार किए गए संविधान के तहत कुल सीटों में 25 प्रतिशत सीटें सेना को दी गई थीं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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