ईडी निदेशक के कार्यकाल विस्तार के संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा

आईआरएस कैडर के 1984 बैच के अधिकारी संजय कुमार मिश्रा की बतौर ईडी निदेशक 2018 में नियुक्ति हुई थी, तब से दो बार उन्हें कार्यकाल विस्तार दिया जा चुका है और तीसरा विस्तार देने की संभावना जताई जा रही है. 2020 में मिश्रा को मिले पहले सेवा विस्तार को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी, जहां अदालत ने केंद्र का निर्णय बरक़रार रखते हुए कहा था कि उन्हें आगे कोई विस्तार नहीं दिया जा सकता.

संजय कुमार मिश्रा. (फोटो साभार: ट्विटर/IRS Association)

आईआरएस कैडर के 1984 बैच के अधिकारी संजय कुमार मिश्रा की बतौर ईडी निदेशक 2018 में नियुक्ति हुई थी, तब से दो बार उन्हें कार्यकाल विस्तार दिया जा चुका है और तीसरा विस्तार देने की संभावना जताई जा रही है. 2020 में मिश्रा को मिले पहले सेवा विस्तार को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी, जहां अदालत ने केंद्र का निर्णय बरक़रार रखते हुए कहा था कि उन्हें आगे कोई विस्तार नहीं दिया जा सकता.

संजय कुमार मिश्रा. (फोटो साभार: ट्विटर/IRS Association)

नई दिल्ली: प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के मौजूदा निदेशक संजय कुमार मिश्रा को टुकड़ों में बार-बार दिए गए कार्यकाल विस्तार को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा है.

प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने 2 अगस्त मंगलवार को मामले में सुनवाई की अगली तारीख जवाब दर्ज किए जाने के 10 दिन बाद की तय की है. पीठ में जस्टिस कृष्ण मुरारी और हिमा कोहली भी शामिल थे.

बार एंड बेंच के अनुसार, पीठ ने कहा, ‘हम सभी याचिकाओं पर नोटिस जारी करते हैं. मामला 10 दिन बाद के लिए सूचीबद्ध करते हैं.’

आठ याचिकाकर्ताओं में कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला, तृणमूल कांग्रेस नेता महुआ मोइत्रा, सामाजिक कार्यकर्ता और मध्य प्रदेश कांग्रेस महिला समिति की महासचिव जया ठाकुर भी शामिल थीं. उन्होंने कोर्ट से नवंबर 20201 के सरकार के उस आदेश को रद्द करने की मांग की है जिसमें मिश्रा का कार्यकाल एक साल के लिए बढ़ाया गया था.

द हिंदू ने याचिकाकर्ताओं की ओर से प्रस्तुत वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी द्वारा प्रस्तुत किए तर्कों के हवाले से लिखा है, ‘इस तरह टुकड़ों में कार्यकाल विस्तार करना कार्यकाल की स्थिरता को समाप्त कर देता है, जो स्वतंत्रता की निशानी है.’

मिश्रा को पहली बार नवंबर 2018 में दो साल के कार्यकाल के लिए ईडी निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया था. उनका कार्यकाल नवंबर 2020 में समाप्त होना था. मई 2020 में, वह 60 वर्ष की सेवानिवृत्ति की आयु तक भी पहुंच गए थे.

हालांकि, 13 नवंबर 2020 को सरकार ने एक आदेश में कहा कि मिश्रा का कार्यकाल एक साल के लिए बढ़ा दिया गया है. सरकार द्वारा कहा गया कि उनके 2018 के कार्यकाल के आदेश को भारत के राष्ट्रपति द्वारा, उनका कार्यकाल दो से तीन साल बढ़ाने के लिए पूर्वव्यापी प्रभाव से संशोधित किया गया है.

पूर्वव्यापी प्रभाव वाले आदेश को कॉमन कॉज एनजीओ द्वारा शीर्ष अदालत में चुनौती दी गई थी. हालांकि, जस्टिस नागेश्वर राव और जस्टिस गवई की पीठ ने मिश्रा के कार्यकाल को पूर्वव्यापी रूप से बढ़ाने के सरकार के निर्णय को बरकरार रखा और कहा कि अब और विस्तार की अनुमति नहीं दी जाएगी.

इसमें यह भी कहा गया कि सरकार को पूर्वव्यापी बदलाव करने का अधिकार सिर्फ ‘दुर्लभ से दुर्लभतम मामलों’ में है.

हालांकि, सरकार ने पिछले साल नवंबर में मिश्रा का कार्यकाल समाप्त होने से चार दिन पहले उन्हें नवंबर 2022 तक एक और विस्तार दे दिया था.

इसे आसान बनाने के लिए सरकार ने तब केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) अधिनियम में संशोधन करने के लिए एक अध्यादेश जारी किया, जिससे उसने खुद को ईडी और सीबीआई के निदेशकों का कार्यकाल पांच वर्ष तक बढ़ाने की शक्ति दे दी. अध्यादेश दिसंबर 2021 में कानून बन गया.

तब से ही इन बदलावों की आलोचना ईडी और सीबीआई की ‘स्वतंत्रता को समाप्त’ करने के एक कदम के रूप में की जा रही है.

मंगलवार 2 अगस्त को याचिकाकर्ताओं ने शीर्ष अदालत को बताया कि नवंबर 2022 में ईडी निदेशक के तौर पर अपने चार साल पूरे कर रहे मिश्रा को एक और कार्यकाल विस्तार मिल सकता है.

याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन भी पेश हुए. उन्होंने कहा कि ईडी निदेशक को चुनने के लिए चयन समिति पूरी तरह से कार्यपालिका से तैयार की गई थी, जिसमें कोई बाहरी अधिकारी नहीं था जैसे कि भारत के मुख्य न्यायाधीश, जो सीबीआई निदेशक के चयन के मामले में समिति का हिस्सा होते हैं. उन्होंने यह बात ईडी निदेशक की चयन प्रक्रिया के बारे में पीठ के एक सवाल के जवाब में कही.

हिंदू के मुताबिक, सिंघवी ने कहा, ‘चयन प्रक्रिया कार्यपालिका को पूरी तरह से निरंकुश अधिकार देती है.’

पिछले साल, जब मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने आया तो याचिकाकर्ताओं में से एक साकेत गोखले ने तर्क दिया था कि मिश्रा ने पांच साल तक अपनी चल और अचल संपत्ति का रिटर्न दाखिल नहीं किया, जो उन्हें इस पद के लिए ‘अयोग्य’ बनाता है.

गोखले ने कोर्ट को बताया था, ‘कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के आधिकारिक ज्ञापन में अधिकारियों को हर साल 1 जनवरी तक सालाना चल और अचल संपत्ति का रिटर्न दाखिल करना होता है. वे विभाग में दायर किए जाते हैं और वेबसाइट पर अपलोड किए जाते हैं.’ उन्होंने आगे कहा था कि मिश्रा के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई होनी चाहिए थी और इस पद के लिए उनके नाम पर विचार नहीं होना चाहिए था.

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, गोखले ने कहा था कि उन्होंने पांच सालों से रिटर्न दाखिल नहीं किया है और उन्हें पदोन्नत भी किया जा रहा है व कार्यकाल विस्तार भी दिया जा रहा है. सरकार बताए कि वह अपने आधिकारिक ज्ञापन का सम्मान कैसे करना चाहती है.

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